इंदौर। सर्वपितृ अमावस्या की संध्या पर अभिनव कला समाज के सभागार में म.प्र हिंदी साहित्य सम्मेलन ( इन्दौर इकाई) का तीसरा सारस्वत आयोजन हिंदी साहित्य के गौरव समादृत कवि-कथाकार,आलोचक और भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित स्व नरेश मेहता को भावांजलि स्वरूप समर्पित किया गया। ज्ञातव्य है कि यह स्व मेहता जी का जन्मशताब्दी वर्ष भी है।
मुख्य वक्ता संध्या राय चौधरी,आलोक बाजपेयी एवं रविन्द्र व्यास थे जिन्होंने क्रमशः उनके व्यक्तित्व पक्ष, गद्यात्मक पक्ष और पद्यात्मक पक्ष पर सारगर्भित प्रकाश डाला। खास बात ये थी कि तीनों वक्ताओं ने नरेश जी के साथ तत्कालीन अखबार चौथा संसार में लंबे समय तक कार्य किया जब वे उक्त अखबार के संपादक थे।
इस अवसर पर म प्र हिंदी साहित्य सम्मलेन भोपाल के अध्यक्ष पलाश सुरजन विशेष रूप से उपस्थित थे।
सर्व प्रथम अतिथियों ने माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया, प्रारंभिक परिचय और आयोजन की भूमिका संस्था सचिव महिमा वर्मा ने प्रस्तुत की।
स्वागत भाषण संस्था अध्यक्ष डॉ राजेश नीरव ने दिया, उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि स्व नरेश मेहता ने अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दग़ी की जद्दोज़हद को अपने साहित्य पर हावी नहीं होने दिया।डॉ राजेश ने कहा कि संस्था के ऐसे आयोजन होते रहेंगे जहां श्रोताओं की बड़ी उपस्थिति से ज्यादा स्तरीय गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित रहेगा।
स्व नरेश मेहता के व्यक्तित्व पक्ष की चर्चा करते हुए संध्या राय ने उनके साथ काम के दौरान अपने संस्मरणों के माध्यम से उनके व्यक्तित्व की ख़ूबियों को बखूबी बयान किया। उन्होंने अत्यंत हर्ष के साथ बताया कि जब श्री मेहता को भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान देने की घोषणा हुई थी तो किस तरह उस उदाहरण की वे साक्षी बनी थीं।
आलोक बाजपेयी ने स्व मेहता को बहुमुखी प्रतिभा का धनी बताया। उन्होंने कहा कि उनकी कविता,निबंध,नाटक,एकांकी,उपन्यास और रेडियो नाटक के कथ्य आज भी प्रासंगिक हैं। स्व मेहता का अपने लेखन पर अद्भुत अधिकार था उनका प्रथम ड्राफ्ट ही सदैव प्रकाशनार्थ जाता था। मेहता जी का समग्र साहित्य पारलौकिक लगता है। उनके सम्पादकीय साहित्यिक/ऐतिहासिक विश्लेषण के साथ-साथ समाधान भी लिए होते थे। उनका गद्य साहित्य अपार संभावनाओं से भरा है। नए साहित्यकारों को उनके साहित्य से भाषाई संस्कार सीखना चाहिए। आलोक वाजपेयी ने मेहता जी के पुस्तकों में कुछ अंश भी पढ़कर सुनाए के बरसों पहले लिखे उनके शब्द आज कितने प्रासंगिक हैं।
रविन्द्र व्यास ने सुमधुर साहित्यिक काव्यात्मक शैली में स्व मेहता के काव्य पक्ष को श्रोताओं से रूबरू कराया। उन्होंने कहा कि समकालीनों द्वारा उन्हें इरादतन उपेक्षित किया गया एवं उन्हें कमतर आंका गया। उनके काव्य का मूल स्वर प्रेम है। उनकी कविताओं को समझने के लिए पाठकों को रचनात्मक बोध लिए संवेदनशील होना चाहिए। उन्होंने समकालीनता के बाड़े से मुक्त होकर देश काल से परे जाकर अपना काव्य रचा। हिंदी कविता में इससे पहले प्रेम,करुणा,प्रकृति का मनोरम वैभव व्यक्त नहीं हुआ। दरअसल उनका पूरा व्यक्तित्व मधुरता लिए हुए है और यह उनकी कविताओं में परिलक्षित होता है। उन्होंने कहा कि प्रकृति के वैभव का वृहद दृष्टिकोण का पर्याय यदि कोई हैं तो वो नरेश मेहता का पद्य है।
म प्र हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल के अध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि पलाश सुरजन ने अपने उद्बोधन में सम्मेलन की भोपाल इकाई द्वारा हिंदी मनीषियों की स्मृति में किये गए सतत आयोजनों का उल्लेख किया एवं इस कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने अतिथियों के स्वागत के साथ ही संविधान फैलोशिप से नवाजे गए संस्था के सदस्य डॉ अमिता नीरव व कीर्ति राणा का भी सम्मान किया।
इस अवसर पर डॉ ज्योति सिंह ने स्व नरेश मेहता पर की गई अपनी पी.एच.डी सबके सम्मुख प्रस्तुत की एवं उसके कुछ अंश भी पढ़े।
कार्यक्रम में मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़, डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल,डॉ रजनी भंडारी, प्रकाश सोडानी, दिलीप दत्ता,शुभा जोशी,श्रुति चौधरी, सांवरी सहित अनेक हिंदी प्रेमी उपस्थित थे।
कार्यक्रम का काव्यात्मक बौद्धिक संचालन पंकज दीक्षित ने किया एवं संस्था सचिव महिमा वर्मा ने आभार व्यक्त किया।