डॉ. प्रतिभा जैन
(होम्योपैथ डॉक्टर, लेखिका, अष्टमंगल मेडिटेशन शिक्षिका होने के साथ ही “मन की थाह” नाम से लोकप्रिय पॉडकास्ट भी करती हैं।)
आज ,अपनी उम्र के इस पड़ाव पर, जहाँ जवानी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही है और अधेड़ अवस्था आलिंगन देने बाँहें फैलाए खड़ी है; एकांत में ,भीगते हुए जब पीछे मुड़कर देखती हूँ ,तब बीती हुई बातें बारिश के पानी की ठंडी बूँदें जैसे मेरे खूद को छू जातेी हैं । कभी मोटी-मोटी बूँदें तन-बदन को चुभती हैं, तो कभी रिमझिम फुहार मेरे तन- मन को भिगो देती हैं व साथ ही मिट्टी की सोंधी खुशबू ,सुनहरी प्यारी यादों को और महका देती हैं ।
लोग कहते हैं कि बूरे वक्त को भूलना ही बेहतर है तथा खुशी के पलों को याद रखना चाहिए। पर मेरे ख्याल… थोड़े जुदा हैं। हमारा मन है ना, वह मोबाइल फोन की गैलरी जैसा है । फोटो अगर हम डिलीट कर भी कर दें ,तब भी वह ‘रिसाईकिल बिन’ में सहेजे हुए रहते हैं । सेटिंग चेंज करने पर हमारे पुराने जख्म पुन: दर्द देने लगते हैं। मेरा मानना है कि आज हम जो कुछ भी है, उन सब का श्रेय सिर्फ अच्छे लोग व अच्छे अवसर को नहीं दे सकते । वह बुरे लोग एवं बुरा वक्त ,सब सहायक थे हमें मजबूत बनाने में ।आभार व्यक्त करती हूँ उन सभी के प्रति ,जिन्होंने मेरे आज को इतना सुंदर बनाने में मेरी प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष मदद की है। खो जाना चाहती हूँ आज भीगे-भीगे #पल में ,कि फिर यह पल कल एक हसीन याद हो जाएगा ।
खूद को यहीं विराम देते हुए अंत में कहना चाहूँगी …