सनातनी छंदों का साहित्यिक समूह, साहित्य वाटिका, इन्दौर ने किया हिंदी सप्ताह का शानदार शुभारंभ
इंदौर। शहर की साहित्यिक संस्था साहित्यिक साहित्य वाटिका द्वारा हिंदी सप्ताह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेई एवं विशेष अतिथि गिरेंद्र सिंह भदौरिया ‘प्राण’ थे। राखी जैन ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। वरिष्ठ साहित्यकार संतोष त्रिपाठी ने मुख्य अतिथि का एवं विशेष अतिथि का स्वागत वरिष्ठ पत्रकार विप्र जगत संपादक विजय अड़ीचवाल ने किया ।
कार्यक्रम का आगाज संतोष त्रिपाठी की इन पंक्तियों से हुआ
भाल सृष्टि के शोभित है ,
जन गण मन की अभिलाषा है।
पूजित है हिंदुस्तान सदा
सम्मानित हिंदी भाषा है।।
बोली सरल लेखनी सुंदर ,
उन्मुक्त कंठ उच्चारण है।
शब्दों का अर्थ सुशोभित है,
रसों छंदों का निर्धारण है।
स्वच्छंद प्रवाहित सरिता सी,
मनभावन की परिभाषा है।।
इसके बाद एक के बाद एक रचनाएं पढ़ी गईं
अखिलेश सोनी ने हिंदी के सम्मान में कुंडलियाँ पढ़ीं…….
आओ सब संकल्प लें,हिंदी में हो काज।
भाषा काम- काज की अंग्रेजी है आज।।
अंग्रेजी है आज चलो हिंदी में बोलें।
मधुर मधुर रस हिंदी का कानों में घोलें।।
राहुल मिश्रा ने कहा —
रौशनी चाहिए उनके जल्वो से तो
उनको अपना बनाना पड़ेगा हमें
चाहते हो की बच्चे जो सच बोले तो
पाठ सच का पढ़ना पड़ेगा हमे
चाहिये जो दुआएँ बड़ो की हमें
पाँव उनके दबाना पडेगा हमें
साथ जो चाहिए आखिरी सांस का
दिल से दिल को मिलाना पड़ेगा हमें
दिनेश शर्मा ने कहा—
हिन्दुस्तान की गौरव गाथा है हिन्दी।
एकता की मिशाल है हिन्दी।
गांव हो या शहर हर जगह बोली जाती है हिन्दी,
करुणा व प्यार का सागर है हिन्दी।
सुनील रघुवंशी ने इन पंक्तियों से सभी का मनमोह लिया….
हिंदी जानता हूँ न ,मैं व्याकरण जानता हूँ।
स्वर जानता हू न हीं व्यंजन जानता हूँ।
सिपाही हूँ अपने वतन का
शहादत को ही स्वर्ग मानता हूँ।
राखी जैन ने अनूठे अंदाज में कहा….
मेरी भाषा मेरी हिंदी मेरी रग रग में बहती है
विराजे हैं मेरे मन में ये मुझपर खूब सजती है
कभी मेरी वजह से हो न शर्मिंदा मेरी भाषा
हमेशा ही यही कोशिश हृदय से मेरी रहती है
रागिनी शर्मा ने त्रिभंगी छंद,घनाक्षरी और चामर छंद पढ़ कर वातावरण सरस् कर दिया।
हृदय से प्यार करें ,
ममता दुलार करें ,
भाषा अपनी श्रेष्ठ है ,
गुणगान कीजिए ।
वर्ण का विज्ञान यही ,
चित्त का संधान यही।
छनन -छनन- छन ,
छन्द ज्ञान कीजिए ।
अमृता अवस्थी ने कहा —
जब दिन को दीन कहा जाए
सुख भी सूख -सूख जाए
जब दिल का चैन भी चेन होने लगे
तब भाषा चैन को खोने लगे।
वरिष्ठ कवि गिरेन्द्र सिंह भदौरिया ‘प्राण’ जी ने विभिन्न छन्द पढ़कर साहित्यिक आयोजन के आनंद को चरम पर पहुंचाया ।
मैं आया हूँ वीरों की,
रग – रग में रोश जगाने को।
कायर में ही नहीं,
नपुंसक तक में जोश जगाने को।।
मेरी कविता तुमको चाहे,
कला लगे या बला लगे।
यह भारत का रौद्र नाद है,
बुरा लगे या भला लगे।।
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश तिवारी ने ‘श्रद्धा और श्राद्ध ‘लघु कथा का वाचन किया ।
धार से आयोजन में शामिल होने आईं वंदना दुबे ने कहा—-
जब भी सोचा भीतर से ,आवाज़ है आई हिन्दी में
चोट लगी तब दर्दीली-सी ,आह भरी वो हिन्दी में
नतमस्तक हो प्रभु के सम्मुख ,विनय करी थी हिन्दी में
श्वासोच्छ्वास भी हिन्दी में और जीते-मरते हिन्दी में
आत्मा की भाषा हिन्दी में और आत्मा बसती हिन्दी में
हरेराम वाजपेयी ने नवोदितों का मार्गदर्शन किया और इस सुंदर साहित्यिक आयोजन में अपने आप को कविता पाठ से नहीं रोक पाए ।
उन्होंने गीत इस तरह गुनगुनाया.—–
कैसे मैं लौट जाऊँ बीच राह से ,
उस मोड़ पर खड़ा कोई
मेरा इंतजार कर रहा है …….!
और एक गीत और पढ़ कर बहुत वाह वाही लूटी कि —
कुछ गीत लिखे हैं जो तुमको देखकर….
इस अवसर साहित्य वाटिका सदस्यों द्वारा विजय अडीचवाल को उनके जन्मदिवस पर फूलों का गुलदस्ता भेंट किया गया।
कार्यक्रम का संचालन अमृता अवस्थी द्वारा किया गया। संतोष त्रिपाठी ने आभार व्यक्त किया एवं कार्यक्रम का संयोजन रागिनी शर्मा द्वारा किया गया।