रीता माणके तेलंग

(बचपन से लेखन में रुचि। सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक विषयों पर लेखन। हिन्दी एवं मराठी भाषा में लेखों का नियमित प्रकाशन।)

गुरूवे नम:

भारत देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर मनाए जाने वाले शिक्षक दिवंस की बहुत बहुत शुभकामनाएं। वैसे तो भारतवर्ष में गुरु पूर्णिमा का अपना अलग ही महत्व है;गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समकक्ष रखा गया है।इसीलिए “तस्मै श्री गुरुवे नमः से हैप्पी टीचर्स डे”,का बदलाव मेरी समझ से तो परे है। गुरु – शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति रही है । परंतु कालांतर में इसमें काफी बदलाव आते गये हैं।

शिक्षक अपनी वास्तविक पहचान खोता गया है। शिक्षक क्या है?

जो शिक्षा दे वह।

शिक्षक आपको केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं देता, वरन जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से लड़ने में भी सक्षम बनाता है ।

आपको “समय और अनुशासन का महत्व” सिखाता है; आपके जीवन की आधारशिला है शिक्षक।

आपके अंदर की छुपी हुई प्रतिभा को बाहर निकाल कर; सवारने का उत्तरदायित्व उठाता है शिक्षक। आपको आपकी  बुराइयों के साथ स्वीकार कर; परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाते हुए, आप को सुधारने का बीड़ा उठाने वाला भी शिक्षक ही होता है। करत -करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान- कुछ इसी आशा पर रसरी को सिल पर घिस घिसकर निशान बनाने का प्रयत्न करता है शिक्षक।

आपके भविष्य को स॓वारता, बनाता अर्थात आपका सृजन करता है ।

एक शिक्षक का कर्तव्य सचमुच बहुत चुनौतीपूर्ण है। किंतु इतनी जीवटता और निष्ठा के साथ कर्तव्य पूर्ण करने वाले शिक्षक को यह समाज तुच्छ समझता है। ‘जो कुछ नहीं बन पाते वह शिक्षक बन जाते हैं’, ऐसे ताने मारता यह समाज उनके बच्चों को जरा सी डांट डपट करने पर त्यौरिंया चढ़ाता समाज;हमें तो टीचिंग लाईन ही पसंद नहीं; ऐसे उलहाने देता यह समाज अक्सर भूल जाता है कि अगर शिक्षक ही नहीं होगा तो शिक्षा की जोत जलायेगा कौन ?ज्ञान का प्रसार करेगा कौन ?

हमारे तिरंगे पर लगा अशोक चक्र, प्रतीक है उस मौर्य वंश का जिसे एक शिक्षक ने ही आकार दिया था। वह आचार्य चाणक्य की पारखी दृष्टि ही थी ;जिन्होंने बालकों के साथ खेलते उस सामान्य अबोध चंद्रगुप्त मौर्य के अंदर छुपी असामान्य प्रतिभा का सही से आकलन करते हुए; नंद वंश की दमनकारी नीतियों को रौंदा और चंद्रगुप्त मौर्य को मगध की राजगद्दी पर बिठाया।

रंक को राजा और राजा को रंक बनाने का सामर्थ्य ईश्वर के बाद किसी में है तो वह सिर्फ शिक्षक ही है

आज के बच्चे भी अपने गुरुओं की उपेक्षा करने से नहीं चूकते। मान मर्यादा छोड़कर शिक्षकों के साथ उद्दंडता से व्यवहार करने में तनिक भी संकोच नहीं करते। शिक्षक हमारे भावि भविष्य का सृजनकर्ता है ,यह भूल जाते हैं ।

आज शिक्षक दिवस के अवसर पर समाज से, आज की पीढ़ी से यही अपेक्षा है कि शिक्षक वर्ग का सम्मान करें। अनुशासन में रहें, मर्यादा में रहे।

क्या पता कहीं कोई चाणक्य आप में फिर से भारतवर्ष की नई संभावनाएं खोज रहा हो।

 

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