माया कौल की कलम से
मुंबई ने मेरे बच्चों को बहुत तरीके से बहुत प्यार से सहेजा है ,,,मुंबई ने परवान चढ़ाया है कर्मठ और श्रमशील को। निहाल घनश्याम ये इतने लगन से थिएटर की दुनिया सजाते संवारते है कि लगता है ये थिएटर के लिए नहीं,,, थियेटर इनके लिए जीता है । उसी की गोद में अपनी सारी आशाओं को परवान देते हैं।
उस छोटे से थिएटर में मैंने निहाल का प्ले “पटना का सुपर हीरो ” देखा हालांकि इंदौर से सोच कर गई थी शो पृथ्वी में होगा ,,और पृथ्वी का तो अपना ही वातावरण रहता है और अजीब सी सुगंध होती है ,,,, उसमें निहाल का प्ले तो क्या ही मस्त सुकून देने वाला होगा । निहाल को मैं बहुत दिन से जानती हूं,,,और वो मुझे खूब प्यारा सा बड़ी बड़ी आंखों वाला खूबसूरत मासूम सा बच्चा लगता है,,,उसके बहुत सारे इंटरव्यू मैने देखे है,,,इन दिनों जब वो खूब बड़े बड़े काम कर रहा है सोचती हूं अपने छुटके निहाल को देखो कितनी ज्ञान की बात करता है,,,,सबको बोलती हूं ये मेरा निहाल है,, ऐसा लगता है बच्चा मां की उंगली छोड़ यश के घोड़े पर सवार हो गया है,,,,बहुत उत्साहित हूं उसके धीरे धीरे सूरज बनने पर।
जब सुना मुंबई में पृथ्वी में इतने सारे शो हो रहे है तो रोक ही नहीं पाई…अरे बाबा निहाल का प्ले.. लेखक निहाल पाराशर।
निहाल पाराशर
लेकिन जब गई तो पता चला एक छोटे से थियेटर में पतली सी गली में शो था,,, मुझे तो भारी मायूसी हुई,,,अंदर गई तो सब अपनी अपनी धुन में,,,हरप्रीत से बातें की फिर उसने बताया मैने प्ले में संगीत दिया है,,,,बस अपने लिए तो इतना ही काफी था तुरंत आत्मीयता की डोर बंध गई।
फिर आया हमारा निहाल खुशी -खुशी मिला..आसपास दो तीन लोगों को बताया आंटी शो देखने आई है। हम भी उस वक्त थोडा घमंड से नहा से गए,,निहाल प्ले का रायटर और हम उसकी आंटी। हरप्रीत से मिलाया जिससे हम खुद पहले ही मिल चुके थे।
आंटी आप आगे बैठ जाना इतना कहकर व्यस्त निहाल ऊपर चला गया। उस दिन अति महत्वपूर्ण भारत- पाकिस्तान का क्रिकेट का खेल था जिसकी दीवानगी तो सब जानते है, इसके बावजूद लाइन लगी थी और सब टिकट बिक चुकी थी।अपने बच्चों के प्ले में सबसे सुकून देने वाली बात लगती है टिकट लेकर शो देखने वालों की लाइन ,,,वो लाइन तो मुझे ईश्वर पर चढ़ी माला सी लगती है ।और देखो निहाल के शो के लिए एसी ही लाइन लगी थी जिसे देख कर मैं परम आनंदित थी,,,दिव्य सुकून।
अंदर अपनी सहेलियों कीर्ति और ऊषा के साथ गई तो निहाल ने सबसे आगे प्रथम पंक्ति में बैठने की व्यवस्था कर दी थी,,,आखिर हम निहाल की आंटी थे।
फिर परिचय दिया अनुशासन बताया गया एक सादी सी प्यारी सी लड़की के द्वारा।
शो प्रारंभ हुआ और शो के हीरो आए,,, घनश्याम।
घनश्याम
अभी सीढ़ियों पर ही पता लगा था कि इस प्ले में घनश्याम है और प्ले भी एक ही व्यक्ति के द्वारा किया गया है…शक्कर के पांच दाने जैसा।हमारे तो हांथ पैर फूल गए.. घनश्याम क्या बहुमुखी प्रतिभावान कलाकार कुमुद मिश्रा जैसा कर पाएगा?? अकेले ,,,वो भी एक घंटा अठारह मिनट.. अल्ला अल्ला खैर सल्ला,,,कहां मंजा हुआ कलाकार कुमुद,,, और कहां ये निहाल से भी छुटका घनश्याम…।
हमने “दीन दयाल विरद संभारी हरहु नाथ मम संकट भारी” घनश्याम के लिए पढ़ना चालू कर दिया कि शो बहुत अच्छा हो । जैसे ही शो में घनश्याम ने बोलना प्रारंभ किया फिर हमको सोचना ही नहीं पड़ा ।समझ ही नही आया कि किसको देख रहे हैं घनश्याम… घनश्याम था ही नहीं ,,।
मेरे सामने था एक मजा हुआ एक्टर हमारा सबका मन उसके द्वारा बोले गए डायलॉग के पीछे पीछे चलता गया मेरा। और मेरा ही नहीं सब का ।
हंसी के गुलगुले फूटते चले गए कितनी बार ताली शो में बजी और कितनी ही बार सब की हंसी छूट गई मैं तो हंसती ही बहुत जोर से हूं आसपास वाले मुझे देख रहे थे। पूरी तरह से शो के रंग में रंग चुकी थी ।मैं भूल ही चुकी थी यह घनश्याम है ,,,और जो पिंटू भैया लप्पर सब हमारी आंखों के आगे साकार थे। जीवंत अभिनय,, गजब का अभिनय हर पात्र को साकार कर दिया।
आवाज गजब की चेहरे पर एक्सप्रेशन गजब की और शरीर संचालन की क्रिया भी उतनी ही नफासत से भरी हुई ।
बोले हुए वाक्यों की बनावट इतनी खूबसूरत थी इतनी कसी हुई थी कि,, जरा सी भी उसमें बोर होने की संभावना थी ही नहीं,,, दूर दूर तक,,। निहाल ने बहुत अच्छा लिखा और घनश्याम के अभिनय ने उसमे चार चांद लगा दिए।
दुआ करती हूं कि बहुत बहुत आगे शीर्ष पर सब पहुंचो । सबसे आगे जो हॉलीवुड में रहते हैं थियेटर वाले उनसे भी आगे …। मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं इस प्ले को बार-बार देख सकती हूं ।