बचा हुआ कुछ कश्मीर
पिता के जाने के बाद लगा था छूट गया है
पर छूटा हुआ कहीं तो जाकर टिक जाता होगा कभी कहीं पिता की पुरानी तस्वीर
हाथ लगती है तो कुछ भीतर
तेज धड़कने लगता है
मैं यह क्या देख रहा हूं??
मैं किसे देख रहा हूं??
कभी लगता है क्या यह पिता हैं मेरे??
यह कश्मीर है क्योंकि
खुशबू दोनों से बिल्कुल
एक जैसी आया करती थी
कभी उनके माथे पर
बारामुला की पहाड़ी दिख जाया करती थी
तो कभी चिनार के पत्तों में
उनके चेहरे की रेखाएं
पीली फटी हुई तस्वीर
कभी मेरा कश्मीर लगती है
तो कभी पिता का बचा हुआ चिथड़ा
खोया हुआ अंत में
एक जगह जाकर जमा हो जाता है
ऐसे वक्त में,,,
अक्सर अधिकतर आसमान ताकता हूं
वहां मुझे ,,,,,,,,
किसी अच्छे क्षणों में
झेलम का मुक्त बहना दिख जाता है
तो कभी पिता का मुस्कुराता चेहरा
बेहिसाब उड़ता दिखता है
फटे पंख वाली किसी,,,
कश्मीरी चील की तरह,,,।
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