डॉ. गरिमा मिश्र “तोष”

अंग्रेजी साहित्य में एमए, लेकिन रचनात्मकता और मन के भावों को हिन्दी साहित्य में बखूबी व्यक्त करती हैं। शास्त्रीय संगीत गायन विधा में विशारद, कई किताबों का प्रकाशन एवं साहित्य के क्षेत्र में कई सम्मान प्राप्त।लगभग अठारह वर्षों से सतत रचनात्मक ,आध्यात्मिक आत्मिक एवं संबंधात्मक गतिविधियों एवं उन्नयन हेतु सेवारत।

मनकही के इस अंक में, मैं मानवीय संबंधों पर पुस्तकों की छाप पर भाव सांझा करना चाह रही हूं .. वो कहते हैं ना पुस्तक के मानवीय ह्रदय और मन मस्तिष्क को जानने उसकी तह तक जाने का सबसे अच्छा साधन है तो हमारे साहित्य में ऐसी अनगिनत पुस्तकें रखी गई हैं जो कि तात्कालिक और आज के सामाजिक संबंधों पर हृदयों पर अमिट छाप छोड़ने में सफल रहीं हैं ,उसी श्रृंखला में जो कि मेरे लिए नितांत सच्चा सा भाव है कि पाठकों की मनःस्थिति पर पुस्तकों की क्या छाप पड़ती है ।

साहित्य के एक दीर्घकालिक खंड के सुनहरे इतिहास का साक्षी भारतीय समाज जिसमें  परतंत्रता से स्वतंत्रता, स्वतंत्रता के पश्चात आज तक अनगिनत परिवर्तन आए और सतत आ रहे हैं उसका कितना गहरा प्रभाव समाज पर,उसके मानदंडों पर,और रीति रिवाजों पर पड़ा और सतत पद रहा है,कितना परिवर्तन आया और उस कालखंड की रचनाओं से सामाजिक भाव कैसे समक्ष हुए यह जानना है तो पुस्तकें पढ़ें।

 वैसे भी साहित्य को समाज का दर्पण माना जाता है और यह सदैव सार्थक भी हुआ है इतने ही विराट साहित्यआकाश में अनगिनत रचनाकार उनकी कालजई रचनाओं ने सितारों सा आच्छादित कर रखा है मैंने तो अपने आपको बचपन से पुस्तकों रचनाकार और उनकी छाया उनके चरित्रों से ही घिरा पाया और जिसका परिणाम मेरे अगाध साहित्य प्रेम की परिणिति से हुआ। आज की स्थिति में मैं कहूं कि लगभग 3:30 हजार पुस्तकें मेरी निजी लाइब्रेरी में है तो अतिशयोक्ति न होगी अब जबकि मैं स्वयं रचना श्रम कर रही हूं सतत और उस निजी संग्रह में अब मेरी भी 12 पुस्तकें शामिल है तो साहित्य के गलियारे में शरद साहित्य हो प्रेमचंद हो रविंद्र नाथ जी की बात हो महाश्वेता देवी प्रसाद हो परसाई जी , आशापूर्णा देवी , निराला हो महादेवी हो , हरिवंश राय बच्चन जी हो, हजारी प्रसाद द्विवेदी जी या कबीर हो रसखान हो मीराबाई अमीर खुसरो ग़ालिब निदा फ़ाज़ली ,बशीर बद्र ,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ यह सारे ऐसे नाम हैं जिन्होंने समाज को उनके नजरिए से जिस तरह से नवाजा है वह वाकई काबिले तारीफ है । इन सब की रचनाओं ने समाज की न केवल गहरी से गहरी परतों को हमारे समक्ष रखा बल्कि मानवीय संबंधों भावों और भावनाओं को भी पूरी तरह से निचोड़ कर हमारे लिए प्रेषित कर दिया ,मैं तो आश्चर्यचकित हो जाती हूं कि किन पुस्तकों को हम कहें की पढ़िए या किन्हें कहें की ये अतुल्य हैं और इतने अनमोल मोती  के जैसे हमारे पास साहित्य के नगीने हैं जिन्हें हम गिनते रह जाएंगे तो कई रातें पूरी नहीं होंगी और ये सितारे साहित्यकाश के कभी खत्म नहीं होने वाले ।

आज मैं मानवीय संबंधों को दर्शाने वाली बहुत ही भावुक दृष्टि से तीन चार पुस्तकों में सांझा किए गए चरित्रों और किरदारों के माध्यम से रचनाकारों के भीतर की गहरी भाव तलछट को छानने और जानने का प्रयास करूंगी। इस कड़ी में प्रथम दृष्टया मेरी दृष्टि में एक उपन्यास आया जिसे हर किसी ने पढ़ा होगा….

गुनाहों का देवता… धर्मवीर भारती

गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती का रचा हुआ उसमें जो सुधा और चंदर के बीच बसे अनोखे भाव संग की रचना रची है वह न केवल अनोखी रही बल्कि कड़े तौर पर प्रासंगिक भी रही समाज में ,क्योंकि रिश्ते की सबसे नाजुक डोर विश्वास को पकड़े प्रेम से भरकर सदा के लिए किस तरह से दो व्यक्तित्व एकात्मिक स्वरूप बन जाते हैं यह बताया है उसमें ,प्रेम की सच्ची दशा और दिशा को दर्शाता हुआ जब मैंने प्रथम दृष्टया इस उपन्यास को पढ़ा था तब 19 वर्ष की थी मैं । मां ने मना किया था कि ना पढ़ना अभी समझोगे नहीं फिर भी क्योंकि किताबों से घिरी रहती थी जानती थी चीजों को तो यही सोचना था मेरा कि पढ़ना चाहिए तो मैंने पढ़ा मुझे अच्छा नहीं लगा बाद में जब कहीं कुछ सालों बाद  मैंने उसे पढ़ा तो समझ पाई थी कि सामाजिक मानवीय संबंधों पर किस तरह से भावों का जाल गिरता है और उसके रचनाकार के गहरे भाव को मैं आत्मसात कर पाई थी सुधा और चंदर के द्वारा जहां संबंधों में फंसकर किस तरह से बहुत सारे मानदंडों को जिसकी हम एक कड़ी होते हैं समाज के ठेकेदारों के लिए, वे मानदंड किस तरह से धराशाई होते हैं जब भावों का गहरा जाल उन पर गिरता है। सुधा और चंदर के माध्यम से धर्मवीर भारती ने अनसुलझी पहेली से प्रेम को शाश्वत सत्य की तरह पाठकों के समक्ष रख दिया था ,ऐसा प्रेम जो सामाजिक दृष्टिकोण से अनैतिक तो नहीं कहा जाएगा पर हां इतना बोला जा सकता है कि सैद्धांतिक नहीं था, दो विभिन्न प्रवृत्ति और मानस के लोग एक भाव प्रेम के साथ जुड़ जाते हैं और अंत तक जीवन के अंत तक जुड़े रहते हैं। इस प्रेम को पढ़ने के बाद मुझे और गहरे समझ  आया था कि सब कुछ देह से नहीं आत्मा से भी होता है और मानवीय संबंधों में आत्मा ही प्रमुख होती है देह तो वैसे भी मुट्ठी भर राख हो कर छूट ही जानी हैं आत्मा तत्व ही जीवन में भक्ति मुक्ति का साधन और मार्ग बन जाति है।

 तो उस आयु में मैंने प्रेम के इस गहरे तत्व को इस पुस्तक के माध्यम से समझा था हालांकि रसखान कबीर और मीरा बाई यह सब हिंदी साहित्य के अनमोल खजाना में से रहे हैं जिनको पढ़कर मै भाषा के अलंकार को और भक्ति के भाव को और निष्ठा के सत्व को समझ सकी थी। साहित्य पर सामाजिक बंधनों के साथ मानवीय परिप्रेक्ष्य में प्रेम के गहरे से गहरे क्षण को गुनाहों के देवता के द्वारा समझा और बहुत सारे लोगों से बात करने के बावजूद यह जान पाई कि उस उपन्यास ने बहुतेरे हृदयों पर अमिट छाप छोड़ी थी ,मैं सच में चंदन और सुधा ढूंढने लगती थी अपने आसपास के लोगों में ।

 सुरंगामा.. गौरा पंत शिवानी

उसी तरह एक और उपन्यास आया था सुरंगमा गौरा पंत शिवानी का लिखा हुआ। उनकी खासियत थी कि वह स्त्री चरित्रों पर ही लिखा करती थी ,क्योंकि गौरा पंत शिवानी की लेखनी पर बांग्ला और कुमाऊनी सामाजिक रीति-रिवाजों का साहित्य का अभिरुचि और रुचि ओं का बहुत ज्यादा असर था इसीलिए उनके रचनात्मक अभिलेखों में भी वह उपस्थिति दिख पड़ती थी ,””सुरंगामा “”में भी नायिका के आसपास का माहौल उसके सौंदर्य उसके आचरण उसकी भाव भाषा और उसके जीवन के संघर्ष सब कुछ मिलकर जीवंत छाया सा पाठक के मानस पटल पर कहीं बहुत गहरे बैठकर अपने ही जीवन की कथा से लगने लगता था । शिवानी जी ने किस सुगढ़ता से ,सुंदरता से कुमाऊनी सुंदरता को बंगला प्रतिवेशिनी बनाकर हमारे समक्ष ला कर बैठा दिया था ,यह उन्हीं की विशेषता थी कि उनका चरित्र न्यास इस तरह हम को घेर लिया करता  कि, पाठकों के साथ उठता बैठता खाता पीता चरित्र दिखाई देता था ,और लोग उससे न केवल मन से बल्कि आत्मा से अपने आप को ढला हुआ पाते थे ।

,उनकी एक ऐसी ही असाधारण रचना थी कृष्णकली जो कि धर्म युग के ही अंकों में धारावाहिक से छपी थी और जिसके लिए उसके अंत को पाठकों ने निर्धारित करना चाहा था यानी पाठक कृष्णकली के चरित्र से यूं जुड़ गए थे मनो उनके जीवन में रहकर ही उन्होंने जाना था उसको और उस चरित्र के उपन्यास में मृत्यु या जीवन को अपनाने के लिए लेखिका से चिट्ठियों के माध्यम से अनुनय की थी पाठकों ने, कि उसे बचा ले। मानवीय भाव पर मात्र कल्पना के चरित्रों की भी महत्ता उपस्थित सजीव सी रहती है और पुस्तकों में दर्शाए गए चरित्र और उन में बताए गए भाव कहीं ना कहीं बहुत गहरे मानव मन पर हृदय पर अपनी गहरी छाप छोड़ जाते हैं।

पिंजर.. अमृता प्रीतम

इसी श्रंखला पर अंतिम बहुत गहरे कहीं बैठी हुई या कहीं बहुत गहरे से आती हुई रचना अमृता प्रीतम की पिंजर मुझे याद आती है जिसमें कि भारतीय स्वतंत्रता के समय और उसके बाद पिछले देश में रह गए और इस देश में आ गए लोगों की व्यथा कथा पर। एक स्त्री एक नायिका जो कि वहां रह जाती है उसके जीवन में क्या उतार-चढ़ाव आते हैं और वह किस मानसिक शारीरिक यंत्रणा से बीतती है किस तरह से अपने ह्रदय और मन और आत्मा को पुनः प्राप्त करती है उसकी कथा है पिंजर । वह भी मानवीय संबंधों पर कहीं बहुत गहरे जाकर छाप छोड़ती है और ह्रदय पटल पर घात करती और उठापटक मचाते हुए सागर की लहरों से जिस तरह किनारों पर अमिट निशानी रह जाती है जिसको हम समय के साथ भी कभी नहीं मिटा सकेंगे उसी तरह पाठकों के हृदय पर संवेदना के चिन्ह छोड़ जाती है।

 साहित्य आकाश में यह कुछ ऐसी रचनाएं हैं जिन्हें हम हमेशा मानवीय संबंधों पर ,मन पर ,ह्रदय पर पड़े हुए अमिट छाप के तौर पर उदाहरणार्थ कभी भी पढ़ सकते हैं परख सकते हैं और जी सकते हैं उन चरित्रों के माध्यम से उस समय को और उस कालखंड को, इसी श्रंखला में आगे और भी कई पुस्तकों और उनके द्वारा मानवीय संबंधों पर हृदय पर पड़ी छाप पर पुनः प्रकाश डालूंगी तब तक इति शुभम।

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