डॉ. प्रतिभा जैन
(होम्योपैथ डॉक्टर, लेखिका, अष्टमंगल मेडिटेशन शिक्षिका होने के साथ ही “मन की थाह” नाम से लोकप्रिय पॉडकास्ट भी करती हैं।)
बारिश की बूँदें जब प्रकृति और धरा को छूती हैं,तब खिल उठती है प्रकृति और सौंधी खुशबू से महक उठता है पर्यावरण ।
बादल गरजते हैं,बिजली कड़कती है , हवा ठण्डी-ठण्डी बहती है .. और जब झमाझम बरसती है तब कैसे रोक सकते हैं हम स्वयं को भीगने से ।
जब शीतल बूँदें तन-बदन को स्पर्श करती हैं, तब मन को जो सुकून मिलता है,उसे बयाँ नहीं किया जा सकता है ।
प्रकृति कितना कुछ देती है, निस्वार्थ भाव से,सभी को एक जैसा ,बिना यह तनिक भी विचारें कि किसने मेरा संरक्षण किया है या किसने मेरा दोहन!
सीखनी चाहिये हमें, यह परोपकार की भावना,यह बिन कुछ बदले में चाहे बस सहयोग करते रहना … ताकि जब हम गुजरे कहीं से भी बरसात की तरह … कर दें सबको सरोबार स्नेह और खुशी से ।
अन्त में कुछ पँक्तियाँ ….
घुमड- घुमड मेघ देखो बरसे,
गरज -गरज बादल यूँ गरजे ।
सावन आया झूम- झूम के,
नाचे मन मयूर घूम-घूम के ।
दहके- दहके जो विष मन में,
तरबतर हो धो ले मल्हार में ।