सुषमा शुक्ला
1- वस्तु स्थिति,,,
देश नाइजीरिया शहर लागोस
मैं अपनी यात्रा कैसे कहां से प्रारंभ करूं थोड़ा कठिन लग रहा है। 1983 का काफी रोमांचकारी अनुभव, हालांकी बात पुरानी है पर पहली हवाई यात्रा वह भी परदेस के लिए काफी रोचक खट्टे मीठे अनुभवों से बहुत रोमांचकारी रही। प्रथम बार एयरपोर्ट पर पहुंची थोड़ा घबराहट भी थी। कारण कि मेरे पति को पहले ही लागोस बुला लिया था जॉब के सिलसिले में ।,,परिवार को 6 महीने के उपरांत बुलाने की परमिशन थी। मैं 6 महीने की बेटी 3 वर्ष के बेटे के साथ वो भी विदेश यात्रा करने में थोड़ा डर लग रहा था पर पति से मिलने की खुशी भी अपार थी। हवाईजहाज की यात्रा, दो छोटे बच्चे, ढेर सारा सामान, किसी विकट समस्या से कम न था। परंतु अंदर का जज्बा भी कम न था
2- यात्रा विवरण
एयरपोर्ट जाकर पीछे स्वजन को छोड़ते हुए आंखें नम। मैं जो कभी अकेले भोपाल से इंदौर की बस में सफर नहीं किया अब दो छोटे बच्चों के साथ विदेश जाना मेरे लिए कठिन तो था पर हिम्मत नहीं हारी। ईश्वर का नाम हनुमान चालीसा जाप, आदि से संबल मिला। अब फ्लाइट की घरघरराहट कानों में दर्द होना, डर, खुशी का मिश्रण ऊपर से टेक ऑफ होने पर सिर्फ रुई के बादल,,सब नया अनुभव, और झांकने की कोई खिड़की भी नहीं।
अब आया लंच का समय मैं शुद्ध शाकाहारी आर्डर पहले से दिया था, पर भूलवश जब खाना आया तो प्लेट तो भरी थी परंतु चावल पर चिकन देखकर एकदम उल्टी सरिखा हुआ। घर का खाना एयरपोर्ट पर निकलवा लिया था ।अब मैंने उनको रिक्वेस्ट किया कि शाकाहारी हूं तो गगन सखी( एयर होस्टेस) पैंट्री में जाकर प्लेट लाई और चावल पर से चिकन निकाल दिया मतलब अब खाना शाकाहारी है।सोचिए भूख से व्याकुल ऊपर से खाना इस प्रकार का हालत और खराब। हिम्मत रखते हुए वहां की पैंट्री में गई और निवेदन करके दूसरी प्लेट लगवाई खाना खाया राहत हुई। बीच में नैरोबी शहर में 4 घंटे का स्टे था फिर जिस जगह ठहराया वहा का दरवाजा भी नहीं खुले फिर वही परेशानी में, स्टाफ को उन्हें फोन लगाया और परेशानी से निजात पाया ।
लागोस के लिए रवाना हुए इस बीच बच्चों ने तंग तो किया लेकिन थोड़ी देर बाद में सो गए।
अब गगन सखी ( एयर होस्टेस) बार बार कह रही थी कि, good afternoon ladies and gentlemen we are landing soon at lagos, मन को राहत मिली लागोस शहर आ चुका था लगेज ढूंढना भी कठिन लग रहा था। जैसे- तैसे सामान मिला पर एक बैग गायब, वही बैग जिसमें बच्चों का दूध पावडर के डब्बे आदि था। बाहर एयरपोर्ट पर खड़े हुए पति अंदर भी नहीं आ सकते थे । गुमे हुए लगेज की खोजबीन की गई तो पता चला कि 2 दिन बाद आएगा जिसने बच्चों का सारा खाने पीने का सामान था।
जैसे तैसे बाहर आई
बाहर पतिदेव को देखकर यात्रा की आई कठिनाइयों को भूल गई। मन खुशी से झूम गया।सारा रंजो गम दूर हुआ।
नाइजीरियन को देखकर एकबारगी लगा कि श्रीराम के राज में राक्षस क्या ऐसे ही होते होंगे प्रतीक स्वरूप। पर उन लोगों का प्यार व्यवहार, एटीट्यूट सब बहुत ही अच्छा लगा। भले ही वे तन के सुंदर नहीं थे पर नाइजीरियन जिनको काला , काली पुकारते हैं मन के बहुत अच्छे हैं यह मेरा अपना अनुभव है।
बहरहाल पति के साथ फुल फर्निश्ड घर देख कर खुशी हुई। सर्व सुविधा युक्त आवास ने मन को अभिभूत किया। इतना सुविधा युक्त सब कुछ उस टाइम में तो भारत में मैंने देखा भी नहीं थाl
फिर 12 वर्ष परिवार के साथ कहां गुजर गए पता ही नहीं चला। इन वर्षों में मैंने परिवार के साथ कम से कम 6 बार मधुर यात्रा का आनंद उठाया और सारा डर एक तरफ छोड़ कर अकेले भी कई बार आना जाना लगा रहा फिर मुड़कर देखने की नौबत नहीं आई ।
हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार और बच्चों को हिंदी की शिक्षा देने का कार्य भी तहे दिल से किया नाइजीरियन मित्र बन गए साथ ही भारतीय लोगों की मैत्री जिंदाबाद जो आज तक निभाई है। बच्चों की शादी में भी में आए इस प्रकार हमारी कर्मभूमि लागोस में पति ने अपने 25 वर्ष की सर्विस की और शानदार अजब-गजब शहर से प्रस्थान करके भारत भूमि को अपना स्थाई निवास बनाया।
आज बेटा आदित्य भी लागोस में अपनी जॉब कर रहा है,। बेटी तेजस्विता शिकागो में सपरिवार रह रही है।
3-एक हादसा भी
एक बार हवाई यात्रा के दौरान अबुजा शहर में जा रहे थे। प्लेन पूरी तरह से एक तरफ झुक गया था आसमान में, सारे विदेशी लोग तो हाथ ऊंची करके हरे रामा हरे कृष्णा का डांस स्टाइल में जाप करने लगे। एक्जेक्टली डांस तो नहीं कहेंगे प्रभु को याद करने लगे उस वक्त अपना तो वही ईश्वर स्मरण सबसे बड़ा संबल बच्चों को गले से लगा कर हम दोनों ने परमात्मा को याद किया। ईश्वर की कृपा से हादसा टल गया
4-जहां-जहां आनंद लिया,
जहां पर हवाई भ्रमण किया उनके नाम अबुजा इबादन पोर्ट हार्कोर्ट।लागोस शहर चारों तरफ बीचेस से घिरा हुआ है। जहाज से बार- बीच ,मोरक्को बीच, विक्टोरिया आईलैंड बीच का आनंद उठाया।
काश तब मोबाइल होता तो ढेरों यादें क्लिक कर लेती। खैर…
इस प्रकार विदेश की यात्रा संपन्न हुई और भारत की रज मुंबई में आकर सुकून मिला ऐसा लगा मानो पंछी उड़ कर वापस अपने भारत रूपी घोसले में आ गए हौ।