अदिति सिंह भदौरिया
अंगदान की शपथ लेकर करें अनुकरणीय कार्य
मानवीय जीवन बहुत ही अनमोल है | अपने जीवन- काल में हमने कभी यह सोचा है कि ऐसा क्या काम है जिसको करके हम अपने जीवन के बाद भी दूसरों की भलाई कर सकते हैं ? हां, ऐसा ही एक वरदान है (अंग दान )
18वर्ष या इससे अधिक आयु के व्यक्ति अपनी इच्छानुसार मृत्यु पूर्व अंग दान की इच्छा वयक्त इसकी कानूनी प्रक्रिया को पूरा कर सकता है | जिससे की ऐच्छिक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके अंग दान किए जा सके | कई बार यह भी देखा गया है कि 18 वर्ष की कम आयु के किसी व्यक्ति की आकस्मिक मृत्यु के बाद अभिभावक समाज कल्याण के लिए मृतक के अंगदान देकर किसी ना किसी का जीवन बचाकर समाज के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं | जिससे किसी को जीवन तो मिलता ही है साथ में अपनों के हमेशा होने का अहसास भी बना रहता है | यह सोचना ही एक खूबसूरत अहसास है कि मृत्यु के बाद भी आपकी आँखें दुनिया को देख रही हैं , आपका दिल अभी भी अपनों के लिए धड़क रहा है |
लेकिन कितने लोग इस बात का महत्व जान पाते हैं ? अभी भी अंग दान को लेकर कुछ भ्रांतियां है जिनके कारण समाज में डोनर की संख्या बहुत कम है |
एक रिसर्च के अनुसार भारत में ही लगभग 5 लाख लोग आर्गन ट्रांसप्लांट के इंतज़ार में हैं | भारतीय सरकार ने मानव अंग अधिनियम (1994) केप्रत्यारोपण को अधिनियमित किया , जो अंग दान की अनुमति देता है और मस्तिष्क की मृत्यु की अवधारणा को वैध बनाता है |
इस सबके बावजूद जागरूकता की कमी के कारण आज भी हमारा समाज अंग दान के महत्व से अपरिचित है | अपने सपनों को अपनी मृत्यु के बाद भी सच होते देखने को ही अंग दान कहते है | जिसने अपनी मृत्यु के बाद भी किसी का जीवन सवारने का सोचा उससे बड़ा महानायक और कौन हो सकता है ? आज के दौर में जब लगभग हर व्यक्ति किसी ना किसी बीमारी से ग्रस्त है | ऐसे में अंग दान के माध्यम से यदि हम किसी के जीवन को बचाने में सहायक हो सकें तो ऐसे सराहनीय कदम के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना सरकार एवं अन्य गैर सरकारी संस्थाओं के लिए आवश्यक हो जाता है | कठिनाई आती है जब हमें जागरूकता के साथ – साथ समाजिक रुढियों के प्रति किसी की भावनाओं को बिना ठेस पहुचाए अपनी बात समझानी पड़ें |