भयावह समय बदला रचनात्मक काल में
इंदौर। डॉ. अंजुल कंसल ने कोरोना काल के भयावह समय को अपनी लेखनी से रचनात्मक काल में बदल दिया। उस दौरान जब भीषण स्थिति थी, अंजुल समय को लेखनीबद्ध कर रही थीं। और इस तरह उन्होंने 72 कविताएं लिख डालीं। 72 कविताएं ही क्यों.। इसके पीछे भी खास वजह है कि 2021 में उन्होंने 72 बसंत देख लिए और यह कवियित्री की ही कल्पना हो सकती की 72 बसंत का उत्सव 72 कविताओं से मनाया जाए। अंजुल की पुस्तक बोल लेखनी बोल का लोकार्पण कार्यक्रम संस्था अखंड संडे के तत्वावधान में ऑनलाइन किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि कवि,प्रो. डॉ.राजीव शर्मा थे अध्यक्षता की मप्र साहित्य अकादमी निदेशक डॉ. विकास दवे ने।
डॉ विकास दवे ने कहा संवेदनाएं ही कवि को भावुकता के साथ कुछ व्यक्त करवाती हैं। संवेदनशील मन अपने अंदर की सोच को सबके सामने कविताओं के माध्यम से पाठकों के सामने लाता है। प्रो. राजीव शर्मा ने कहा कवि से ईश्वर ही लिखवाता है क्योंकि ईश्वर लेखन के रास्ते कवि के अंतर्मन की बात कहलवाता है। काव्य संग्रह के चर्चाकार वरिष्ठ साहित्यकार आशीष त्रिवेदी ने कहा सभी कविताओं के लिए कह सकते हैं अनेकता में एकता। हर कविता अलग लेकिन समान अनुभवों का समावेश है।
लेखिका अंजुल कंसल ने कहा 2021 वर्ष में बहुत बदलाव हुए
“दो गज दूरी, मास्क है जरूरी”
” बार-बार हाथ धोइए,जीवन सुरक्षित करिए”
आदि नारों ने मेरे अंदर जैसे जान फूंक दी और मेरे अंतर्मन की भावनाओं को मेरी कलम, कागज पर उकेरने को मचलने लगी। तभी मुझे यह नाम भी सूझा-” बोल लेखनी कुछ तो बोल”। 2021 में मैंने 72 बसंत देख लिए थे अतः 72 कविताओं का संग्रह संजोने का सपना साकार हो उठा। हमने अपनी भाव- अभिव्यक्ति, वेदना- संवेदना, सुख-दुख की अनुभूति को, 72 कविताओं के माध्यम से एक कंठहार के रूप में काव्य- सुमनों को पिरोने का प्रयास किया है। इस प्रयास में,मैं कितना सफल हुई हूं, इसका निर्णय पाठकगण ही कर सकेंगे।काव्य संग्रह का पुरोवाक आशीष त्रिवेदी ने लिखा है,एवं प्रकाशक, संपादक, मुकेश इंदौरी हैं ।