डॉ. गरिमा मिश्र “तोष”,

अंग्रेजी साहित्य में एमए, लेकिन रचनात्मकता और मन के भावों को हिन्दी साहित्य में बखूबी व्यक्त करती हैं। शास्त्रीय संगीत गायन विधा में विशारद, कई किताबों का प्रकाशन एवं साहित्य के क्षेत्र में कई सम्मान प्राप्त।लगभग अठारह वर्षों से सतत रचनात्मक ,आध्यात्मिक आत्मिक एवं संबंधात्मक गतिविधियों एवं उन्नयन हेतु सेवारत।

“गाइड” हृदय और मस्तिष्क का आत्म संवाद…

मनकही में इस दफे अपनी प्रिय चलचित्र  की समीक्षा साझा कर रही हूं ।कहते हैं ना कि व्यक्ति को अच्छी खुराक के साथ-साथ मानसिक खुराक का भी ध्यान रखना चाहिए अच्छा खाइए, अच्छा देखिए ,अच्छा बोलिए और अच्छा सुनिए.. वैसे ही भारतीय सिनेमा में बहुत सी सार्थक फिल्में बनी हैं जिनमें से यदि उनकी सूची बनाऊं तो बहुत बड़ी हो जाएगी। फिर भी उनमें से एक मैं साझा करती हूं जो कि अवश्य ही आप सबकी भी प्रिय होगी।किसी भी फिल्म की सफलता उसके कलाकार, कहानी, छायांकन निर्देशन तो होता ही है उसका संगीत भी बहुत-बहुत आवश्यक होता है ।यह वह सतरंगी दुनिया होती है जहां जगमग तारों के बीच घनी धूप और साथ ही इंद्रधनुष भी झलक जाता है जहां तितलियां मछलियों की जगह हो जाती हैं और नदियों में सागर सी लहरें पड़ती हैं ,कुल मिलाकर हर असंभव इस दुनिया में संभव लगने लगता है , और हम दर्शक कल्पना को सत्य मान भवानुबंधित हो जाया करते हैं।

कभी-कभी दर्शन को भी भाव में ला देता है और आप जादुई नगरी से एक आध्यात्मिक दुनिया में भी आ जाया करते हैं। ठीक वैसे ही भावों को धरती मेरी एक बहुत प्रिय फिल्म है  “गाइड” – आर के नारायण के मशहूर उपन्यास द गाइड पर आधारित यह फिल्म 1965 में विजय आनंद ने बनाई थी ,जिसमें निर्देशन उनका था और प्रोड्यूसर देव आनंद थे। सुमधुर गीतों से सजी गाइड में देवानंद साहब का अभिनय सबसे आकर्षक रहा। यह दो भाषाओं में बनाई गई पहले अंग्रेजी वर्जन में , जिसमें उतनी सफलता नहीं मिली, पर जब हिंदी में आई तब उसे दर्शकों का जो प्रतिसाद प्राप्त हुआ वह अतुलनीय है।यहां तक उसके बाद स्वयं देवानंद साहब ने अपने कई  साक्षात्कार में अपने भीतर हुए परिवर्तन को कहा और साझा किया है, वह कहते थे कि इस भूमिका के पश्चात उन्होंने स्वयं में छिपे नकारात्मक दोषों की  झलक को पहचाना और दूर भी करने में सफल हो सके साथ ही अपने मूल उद्देश्य को जीवन दर्शन को स्वाध्याय के माध्यम से गहनता से ना केवल समझ सके थे बल्कि उन्नत भी किया था।

राजू, रोजी दो प्रमुख चरित्रों को जिस सुघड़ता से आर के नारायण ने लिखा है उसी सहजता से वहीदा रहमान  और देव साहब ने पर्दे पर जीवंत कर दिया है। उस दौर में जिस परिपक्वता से बोल्ड विषय पर रचना रही, उसी कुशलता से विजय आनंद के निर्देशन में चित्रांकन रहा।स्वार्थ प्रेम वासना समर्पण फिर मोक्ष को मात्र कुछ घंटों में लोगों के समक्ष कर देना अपने आप में कठिन है पर गाइड की पटकथा सभी छोरों को पकड़ते हुए अंत में जो आत्मा संवाद  स्थापित करती है वह दर्शन के साथ-साथ आस्था को भी सत्यापित करता है।

ईश्वर के काम और नाम को जीवन की संगति विसंगति सहित प्रेम को, साथ को महत्वपूर्ण बना जाती है ,तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं, जब पर्दे पर अंत के दृश्य में होता है तब आत्मा और परमात्मा के अमिट प्रेम की याद दिलाता है। दुनिया को चलाने वाले बनाने वाले की प्रासंगिकता पर जीव की, आत्मा की स्वतंत्रता सोते से जागा देने वाले भाव पर इच्छा की पूर्ति ही राजू की अंतर आत्मा के परमात्मा से संवाद पर जिस तरह से देव साहब ने किरदार को जिया है वह अद्भुत और असाधारण है ।पटकथा आशा- निराशा और सतत चलाएमान दृष्टि को समक्ष रखते हुए एक गीत लेकर आती है आज फिर जीने की तमन्ना है..जिसमें वहीदा रहमान ने मध्यम आयु की स्त्री के जीवन में पुनः नवीन ऊर्जा और प्रेम के आगमन के चित्रण को इतना सहज जीया है कि हम रोजी को अपने ही बीच से पाते हैं। वहीं, सफलता प्राप्त करने के बाद जिस प्रेम ने उस चरित्र को पुष्ट किया था स्वयं से मिलवाया था उसे ही संशय में ठुकरा देने का अभिनय भी ह्रदय को छू लेता है ।

सम्मान सफलता और संपन्नता रोजी को कहीं ना कहीं पाषाण हृदय भी बनाती है और यही उसके चरित्र की कमजोरी को दर्शाता है। राजू का जेल से सजा काटकर आने पर स्वयं को परिस्थितियों के चलते स्वामी के सम्मानीय पद पर स्थिर रखने की जद्दोजहद और अंततः स्वयं को जानकर हृदय और मस्तिष्क के मध्य आंतरिक संवाद का दृश्य भी अद्भुत बन पड़ा है ,जिसमें देव आनंद  के अभिनय का छौंक भारी पड़ जाता है ।देखा जाए तो यह फिल्म सिनेमा इतिहास में मील का पत्थर है जिसमें निर्देशन अभिनय संगीत और छायांकन सभी अद्वितीय है।

उपन्यास से सर्वथा भिन्न अंत के लिए जितना प्रयास पटकथा लेखक का रहा उतना ही बराबरी से कथाकारों, निर्देशक का भी रहा। गाइड ने जिस बेबाकी से  दुनियावी मानदंडों की खोखली परतों को खोला है ,वह सोचने पर मजबूर कर देती है।एक स्त्री जिसका पति परस्त्रीगामी ही नही , नशा भी रखता है शक्ति का,पुरुष होने का और समाज के ठेकेदार होने का दंभ स्वरूप नशा उसकी मति का ही नहीं सामाजिक छवि का भी नाश करदेता है और तब उसकी पत्नी विद्रोह कर उसके सभी अत्याचारों का मुंहतोड़ जवाब देती हुई स्वयं को स्थापित करती है। उस पुरुष के साथ जो उसके सम्मान और स्वतंत्रता को वरीयता देता है। आगे की कथा में जिस तरह से राजू गाइड और रोज़ी का भावनात्मक संबंध पनपता है और मित्रता प्रेम की सीढ़ी पर पैर रखता पुनः अविश्वास ,स्वार्थ,और विश्वासघात की काई पर फिसलकर भौतिक लालची प्रेम से आध्यात्मिक आत्मिक जागृति लिए अंत में परिपक्व होता है वह आर के नारायण  की अद्भुत भवाभिव्यक्ति को प्रस्तुत कर देव साहब और वहीदा रहमान के अभिनय यात्रा में मील का पत्थर साबित कर सकने में पूर्णतः सफल हो जाता है। निर्देशक की सफलता ही यहीं साबित हो जाती है की उस मील के पत्थर से ही उनकी कला यात्रा को उदाहरण स्वरूप जांचा जाता रहा आखिर तक।

संगीत का तालमेल हर दृश्य को पूर्ण कर जाता है और साथ ही सुंदर छायांकन रोजी और राजू को मात्र दैहिक नहीं आत्मिक सुंदरता से भर देता है ,जब राजू स्वामी बनकर विश्वास को आधारभूत शक्ति सा स्थापित करता है तब वह स्वयं उसके सामर्थ्य को जान पाता है। ज्ञान के रास्ते बड़े टेढ़े -मेढे होते हैं ,वह उस राह ले जाते हैं जहां विश्वास की पूर्ति ही शक्ति बन जाती है ।

कमर्शियल सिनेमा में दर्शन का अध्यात्म का ऐसा संयोजन दर्शनीय ही नहीं बल्कि गृहणीय भी है।अपने समस्त विकारों चरित्र दोषों को यदि मानकर राजू की तरह परम शक्ति को स्वयं को सौंप दिया जाए तो पूर्ण जागरण और मुक्ति अवश्य ही हो जावे। ,दूसरा परहितर्थी राजू जब गांव भर के लोगों के लिए विश्वास का आव्हान करता है वर्षा के स्वरूप में तब वह मानो स्वयं को पुनर्स्थापित कर रहा होता है। निःस्वार्थ तपस्या जो कि बिना मन के आरंभ होती है उसका अंत परमशक्ति को पूर्णतः समर्पित हो जाने से होता है और सभी गांववासियों की समस्या निवारणार्थ वर्षा का जाना भी मानो विश्वास का बरसना हो जाता है। गाइड में सभी रस सभी भावों का चित्रण बखूबी किया गया है,फिर चाहे प्रेम रस हो,श्रृंगारहो, क्रोध, वीभत्स,दया करुणा, अहंकार,भक्ति,हास्य,रस हो सभी की झलक इसकी पटकथा की विशेषता रही है।

मैं  जब भी ओल्ड क्लासिक की बात करती हूं तो गाइड उसमें अवश्य रहती है और जानती हूं की आप सभी की भी यही राय होगी, इति शुभम् भवतु फिर मिलती हूं नई मनकही के साथ तब तक के लिए अपना खयाल रखिए।

 

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