रीता माणके तेलंग,
(बचपन से लेखन में रुचि। सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक विषयों पर लेखन। हिन्दी एवं मराठी भाषा में लेखों का नियमित प्रकाशन,गुरुग्राम( हरियाणा) में निवास)
संस्कृति को टिकाकर रखने की जिम्मेदारी नई पीढ़ी पर डालना होगी
अभी कुछ दिन पहले मैं महा ज्योतिर्लिंग त्र्यंबकेश्वर के दर्शन करने गई । त्र्यंबकेश्वर का महत्व मुझे उल्लेखित करने की जरूरत नहीं ।वहां का वातावरण थोड़ा अलग था भक्त जनों के साथ साथ अंत क्रिया अर्थात श्राद्ध करने वालों का भी अच्छा खासा हुजूम था ।उत्सुकतावश मैंने श्राद्ध के बारे में विशेषत: वहां पर होने वाले कार्य विशेष के बारे में दक्ष लोगों से काफी जानकारी प्राप्त की ।
श्राद्ध तीन पीढ़ियों के लिए किया जाने वाला कर्म है; अर्थात थर्ड जनरेशन से भी पितरों की अपेक्षा। मेरी दृष्टि में श्राद्ध, अर्थात अपने परिवार के उन सदस्यों के प्रति जिनके कारण आप इस भूतल पर हो ;कुल के प्रति संवेदनशीलता, आभार प्रकट करने का, उनके अच्छे कर्मों को याद करने का अथवा उनसे जो बुरे कर्म हुए हैं वह भूले हम ना करें इस समर्पित भाव से प्रार्थना करने का कर्म है। मुद्दा यह है कि पितर अर्थात दिवंगत आत्माओं का भी थर्ड जनरेशन से तर्पण करवाना हमारा हिंदू धर्म कहता है।सीधे-सीधे शब्दों में तीनों पीढ़ियों के बीच समन्वय स्थापित करने की पद्धति। यदि दिवंगत आत्माओं की थर्ड जनरेशन से कुछ अपेक्षाएं रह सकती है तो क्या जीवित आत्माओं की अगली पीढ़ियों ने उपेक्षा करना सही है?
पर आजकल हम जनरेशन गैप, थर्ड जनरेशन जैसे भारी भारी अंग्रेजी शब्द बोल कर अपनी इन पहली पीढ़ी की बूढ़ी जीवित आत्माओं को चुप कर दिया करते हैं। वास्तव में पहली और तीसरी पीढ़ी के बीच यह गैप हम ही(बीच की पीढ़ी) निर्माण करते हैं। काल या समय पता है क्यों बदलता है ?क्योंकि हम बदलते हैं; अपने बच्चों को संस्कार लगाने में।
हम कहीं ना कहीं चूकते हैं ।
मैं नई पीढ़ी को कतई नाम नहीं रखती ,ना ही कोसती हूं ।उल्टा हमेशा उनकी तारीफ ही करती हूं। आखिर भविष्य है वह, आधारशिला है भावी समाज की ।पर एक जिम्मेदारी तो उन पर डालनी ही पड़ेगी; संस्कृति को टिकाकर रखने की जिम्मेदारी । जीजामाता संस्कार डालती है तभी तो शिवाजी और फिर संभाजी गढे जाते हैं। राम का वनवास जाना ,उनका निर्णय नहीं; बल्कि दशरथ के संस्कार हैं ।सौमित्र का साथ चल देना सुमित्रा के और जानकी के ऊपर जनक के।
यहां रामायण में भरत मुझे लिखने को बाध्य करते हैं। उस परिस्थिति में जहां राम को अपनी सौतेली माता कैकयी पर तनिक भी क्रोध नहीं आता ,वही भरत अपने भाइयों की दुर्दशा करने वाली उसकी सगी माता का त्याग करने में रत्ती भर संकोच नहीं करते। कुल और पितरों की वचन निभाने की परंपरा को राम जहां खुशी-खुशी निभाते हैं वही माता कैकई को उसकी गलती बता कर त्याग और न्याय का आदर्श भरत स्थापित करते हैं, वहीं दूसरी तरफ महाभारत में दुर्योधन के अहंकारी संस्कार हस्तिनापुर का पतन कर देते हैं।
परिवार टूटते हैं तो समाज टूटता है और एक समृद्ध देश श्मशान बन जाता है।कुल को एकत्र करना एक चुनौती नहीं संस्कृति है।
रामायण ,महाभारत भारत के महाकाव्य नहीं ;कोई ग्रंथ नहीं अपितु इस हिंदू राष्ट्र की संस्कृति है ।संस्कार दो, आदर्श स्थापित करो संस्कृति टिकेगी ।वसुधैव कुटुंबकम की भावना जगेगी.कुल को साथ लेकर चलने की; परिवार में स्नेह- प्रेम स्थापित करने की।क्योंकि संवेदनशील परिवार ही एक संवेदनशील समाज का निर्माण करते हैं और ऐसे ही समाज संवेदनशील राष्ट्र की आधारशिला बनते हैं।
जयतु भारतम्
4 Comments