मनकही
जब मनकही के लिए किसी पुस्तक को आप सबसे बांटने को विचार आया ,जो पहला भाव था वह शिवाजी सावंत द्वारा रचित श्री कृष्ण का जीवंत चित्रण युगंधर मेरे हृदय को आंदोलित कर गया ,कृष्णा अनुरागी हूं इसके चलते मेरे मन की हर तह को पूर्णता से खोलता सहेजता समेटता भाव चित्रण है युगंधर का ।
गरिमा मिश्र तोश
श्री कृष्ण जिनको हजारों वर्षों से व्यक्त अव्यक्त भाव चरित्र की तरह भारतीय जनमानस युगपुरुष विचार बिंदु बनाकर भागवत महाभारत हरिवंश और पुराणों में विराजे ईश तत्व सा सापेक्ष विचार तत्व बनाकर ,अद्भुत चमत्कारी व्यक्तित्व बनाकर वास्तविकता से योजन दूर करके मात्र भगवान या इष्ट बनाकर पूजते रहे, मेरे लिए श्री कृष्ण जीवन में श्वास की तरह से हैं, देह में आत्मा की तरह से हैं ।
मेरे अनुभव पर यदि मैं जाऊं तो मैंने साहित्य को ही खाया पिया ओढ़ा बिछाया है इसलिए रचनाओं को बुनते पढ़ते जी ने भी लगी और लिखना भी तभी आरंभ हुआ , हितआर्थी चिंतन सदैव सृजन की राह पर ले जाता है यह तो सभी जानते रहे हैं और इसी के माध्यम से विचारों की पौध को साहित्य की खाद पानी और निखार देती है।
मैंने शिवाजी कृत् युगंधर 2005 में पढ़ी थी जिसका पांचवा संस्करण छप कर आया था ,मैंने उसके पूर्व शिवजी द्वारा रचित मृत्युंजय पढ़ी थी और शिवाजी की लेखन शैली की मुरीद हो चुकी थी पर उनके लेखन को भक्ति के रूप में मैंने युगंधर में अपनाया ,जी हां युगंधर ने मेरी कृष्ण भक्ति को और परिष्कृत और मजबूत बना दिया था ।
शिवाजी सावंत जो मराठी साहित्य की अद्भुत अनोखी और दीर्घकालजई रचनाकारों की सूची में प्रथम ही है उनका भाषा संकलन ,अलंकरण उनकी भाव शैली और तात्कालिक समाज की अनूठी प्रस्तुति आश्चर्यचकित कर देती है और उसी संस्कार समाज काल में ले जाकर खड़ी कर देती है ,जिसको हम जीने भी लगते हैं पढ़ते हुए, ठीक उसी तरह का अनुभव उन्होंने युगंधर के स्वरूप में कालजई रचना रचकर प्रकट की है, युगपुरुष युग नायक श्री कृष्ण को साधारण जनमानस से सीधा संपर्क और संवाद में ला खड़ा किया उन्होंने।
श्री कृष्ण को मात्र कृष्ण और कान्हा के स्वरूप के साथ प्रेमल हृदयों में नवीन स्वरूप में स्थापित कर दिया युगंधर सहस्त्रों वर्षों पूर्व जी जा चुकी कृष्ण कथा को ,लीला को साक्षात कर देती है ।
जीवन दर्शन के स्वरूप में जितनी सघनता से सरलता से श्री कृष्ण ने जीवन जिया होगा उसी सघनता से समिपता से युगंधर ने श्रीकृष्ण को अपने आप में समेटकर हर पाठक ह्रदय को अंगीकृत किया है ।मैंने जब प्रथम दृष्टया पुस्तक को अपने हाथों में लिया था तब मैं नहीं जानती थी कि जीवन दृष्टि मिलने वाली है एक संजीवनी सा कृष्ण तत्व साक्षात अनुभूत करने जा रही हूं एक एक पृष्ठ कई कई दफे पढ़कर भीतर तक उतारने का ह्रदय में उछाह रहा आता था भूमिका में आचमन में जिस तरह से श्री कृष्ण के प्रति लेखक श्री शिवाजी सावंत का समर्पण भाव मिलता है उसी से समझ आ जाता है कि श्री कृष्ण ने उन्हें भी कुरुक्षेत्र में भाव ज्ञान दे दिया होगा या वृंदावन में स्वयं सौंधे सौंधे दही के मृतिका पात्र को उनके हाथों में देकर कहा होगा कि लो शिवाजी आप देख लो मेरे वृंदावन गोकुल को इस पात्र में जमा दधी यही है मेरा गोकुल या स्वयं यमुना तट पर बैठकर कान्हा ने मोह लिया होगा उनको बांसुरी धुन से ।
युगंधर में बहुत ही बारीकी से रचनाकार ने उस काल को समवेत स्वरूप में समेट कर रख दिया है वैसा ही खानपान वस्त्र आभूषण व आचार विचार सामाजिक मूल्य धार्मिक रुचियां सामाजिक प्रक्रिया , राजनीतिक आचरण सभी कक्षों को बडी ही सूक्ष्मता से खोलते हुए लपेटते हुए श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए सभी के साथ और पास ला खड़ा किया उन्होंने। यदि एक शब्द में युगंधर को उसकी विशिष्टता को समेटना हो तो सर्वश्रेष्ठ शब्द ही है जो उसकी उच्चतम श्रेणी के पासंग होगा।
श्री कृष्ण को बाल रूप में देखते उनकी लीलाओं को पढ़ते जिन भी कृष्णा अनुरागी सुधी पाठकों ने जब युगंधर से साक्षात्कार किया होगा तो कान्हा को कृष्ण के विराट स्वरूप में अवश्य ही अनुभूत किया होगा, वैसे भी शिवाजी की शैली का अपना ही आकर्षण होता है जिसमें बंधे बिना रचना के रस को जाना नहीं जा सकता है।
युगंधर की विशेषता ही यही है कि वह यूं घुल जाती है मनो दूध में शक्कर ,आत्म संवाद से श्री कृष्ण पाठकों से जुड़ते हैं और अनेक जीवन के पड़ावों पर से होते हुए अंत में पुनः युगपुरुष की सार्थकता को पूर्ण करते हुए उनके ह्रदय में घर कर जाते हैं। श्री कृष्ण जो स्वयं एक विचारक होकर विचार बन गए उनके वृहद जीवन को भी प्रासंगिक काल खंडों में विभक्त करते शिवाजी रचनात्मकता के परम सोपान पर आरूढ़ हो गए और इसी एक विशिष्ट भावाभीव्यक्ति ने सारे प्रतिसाद पुरस्कार उन्हें उनके उपन्यास को दिलवा दिए युगंधर की विवेचना और प्रस्तुति अपने आप में ही ग्रंथ का भान रखती है, इसमें श्री कृष्ण केवल ईश्वर नहीं सखा भ्राता पुत्र पति गुरु सारथी के पद की महिमा को प्रकट करते हुए मिलते हैं एक तरह से भागवत गीता के परम सृजक महाभारत के युद्ध को साक्ष्य और सारथ्य देने वाले ,राधा को धारा बना देने वाले द्रौपदी के परम सखा और रुक्मणी के स्वामी श्री कृष्ण ,बलदाऊ के कान्हा उद्धव के माधव और अपने माता-पिता के गोपाल गोपियों के बंशीधर कितनी सहजता से हो जाते हैं और अपने जीवन की सारी विषमताओं को मात्र अपनी मोहनी मुस्कान से कैसे फीकी कर जाते हैं उसका अत्यंत सटीक सजीव चित्रण है ।
युगंधर को पढ़ना तो समस्त प्रश्नों को कान्हा को सौंप कर पढ़िए अवश्य ही कभी सारे उत्तर प्राप्त हो जाएंगे, मैंने तो अनुभव किया है कि अपने व्यक्तित्व में समस्त कलाओं को भर लाने से जो आत्मविश्वास और अंतर गठन होता है वह अतुलनीय है,
श्री कृष्ण पर बहुत लिखा पढ़ा और बोला गया है पर मैंने शिवाजी की कृति युगंधर को सबसे अनोखा इसीलिए पाया क्योंकि एक तो यह श्री कृष्ण का आत्मकथ्य के स्वरूप में एकात्मिक संवाद ही है जिसमें श्री कृष्ण रचनाकार के माध्यम से अपने ही जीवन अनुबंधों अनुभवों और सार्थकत्व को पाठक गण से बड़े ही सरल तरीके से सांझा करते दिख रहे हैं मनो वह साथ बैठकर एक आत्मिक संवाद कर रहे हैं भान होता है कि कृष्ण साथ ही हैं , हमारे साथ रच बस रहे हैं और दूसरे युगंधर निरापद रूप से पुरुष को पुरुषोत्तम होने का गुर सिखा रहे हैं ,इस पुस्तक ने इतिहास से लेकर आज तक के परिदृश्य में हर पुरुष को सर्वोत्तम होने का मार्ग अवश्य बतलाया है क्योंकि श्री कृष्ण यदि पुरुषोत्तम हो सके तो उसके पीछे कौन-कौन और किस किस तरह से उनका अवलंब रहा इसको बहुत ही गंभीरता से उद्धृत किया है ।शिवाजी सावंत कृत युगंधर की अगणित विशेषताओं में यह प्रमुख विशेषता है कि युग प्रवर्तक कृष्ण को एक विचारक की तरह प्रस्तुत कर पाठक गणों के मन में एक विचार की तरह बीज आरोपित कर गए शिवाजी और उपन्यास शैली में एक ग्रंथ सा कुछ जुड़ा है तो वह है युगंधर।
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