माया कौल…. एक संवाद खुद से
अब्भी अब्भी तो शर्ट के तीसरे बटन ने अपनी कहानी सुनाई थी,,,उसका नशा ही नही उतरा और ये देखो कि,,
रूह ने दस्तक दे दी।
सच है, कहते हैं न खुशी कभी अकेले नहीं आती और किताबें भी अकेली नहीं आतीं वो भी अपनी सहेलियों के बिना रह नहीं पाती,अब यही देख लो
इस अकेले तीसरे बटन ने रूह को आवाज दे ही दी।
रूह सब पर चढ़कर आई ट्रेन, हवाई जहाज, बस, टैक्सी, ऑटो , बैलगाड़ी..हां साइकल पर भी …वो आ गई है। पैदल नहीं आई। इतना गुरूर तो है उसमें,, लिखा भी तो मानव है उसके ऊपर वो तो इसी में इतराती है।
और हम भी कुछ नहीं बोलते,,ऐसे देखा जाय तो गुरुर तो हमको होना चाहिए ,,यूं कि मेरे तो बदन में ही रहा है वो महीनों तक,,फिर गोद में,,फिर उंगली पकड़ के चला फिर उसकी वो कहानी भी हजार हजार बार जिसमे हमेशा एक जंगल होता था एक राक्षस होता था एक जादूगरनी होती थी एक आदमी होता था और एक गड्ढा होता था,,रोज आदमी जंगल मे गुम होता रोज उसे राक्षस पकड़ता रोज जादूगरनी छुड़ाती और रोज गड्ढा पर होता,,, बार बार,,सैलून तक सुनी,,,पर अपन को तो घमंड छू के भी नहीं गया।
अब ये बात किताब रूह को कौन समझाए,
वैसे हम बहुत बहुत बेताब थे उसके स्वागत को।
उसको पता नही सारी किताबें मेरे आंगन में ही गप्पा और मारकुटोवल, सितोले, छुपम छुपाई खेलती रहती है और मुझे चिढ़ाती भी है फिर मुझे मनाती भी बहुत प्यार से हैं,, ये मेरा संयुक्त परिवार बहुत रंग भरा है,, ये सब दौड़ते दौड़ते “प्रेम कबूतर” पकड़ती छोड़ती रहती है और हिमाकत देखो उसी से पूछती भी है,,, जा देख के आ “बहुत दूर कितना दूर होता है।”
फिर बरसाने की राधा की तरह मेरी तरफ आंख नचा के कहती है “तुम्हारे बारे में” ही पूछने के लिए उसे इतनी दूर उड़ाया है फिर जब मैं गुस्सा होती हूं तो हड़बड़ी में अशुद्ध व्याकरण याद करने लगती है,,”कर्ता ने कर्म से,”,,,,मुझे उनकी अशुद्धता पर हंसी आ जाती है,,,,
मेरी विद्रूपता भरी हंसी देख,,, सब की सब हत्थे से उखड़ जाती है,,,,और मुंह मुंह में बड़बड़ाती है इस बुड्ढी “अंतिमा” को तो सब मिल कर देखेंगी,,,इन्हें समझ तो किताबे आती नहीं,,,, राजा रानी की कहानी से आगे का ज्ञान बस माशा अल्ला ही है,,,,इनका फिलॉसफी क्या ख़ाक समझेंगी?
“शर्ट का तीसरा बटन” अलगनी पर टँगा बहुत उड़ रहा है,,,,खूब खिलखिला रहा था,,,,मैंने भी मन ही मन सोचा बेटा आने दो “रूह” को ,,तुम सब को पछाड़ न दिया तो मेरा नाम बदल देना,,,बड़ी आई किताबें,,अमेजन पर बेस्ट सेलर क्या हुई,,,आसमान पर उड़ने लगीं,,,मेरी विद्वता का मजाक बनाती है,,,,मेरे ही आंगन में।
उनकी धमाचौकड़ी देख के मैं रसोई में चली गई पर मन मे लालच तो था उनका खेल देखने का,तो रसोई की बड़ी सी खिड़की से उन सबके तमाशे देखने लगी,बहुत चौकीदार छोड़े है,,मेरे लिए, मानव ने ,,सब मेरे ही आगे पीछे भागते दौड़ते रहते हैं, सच कहूं तो मुझे भी बहुत मज़ा आता है,, दुनिया भूल चुकी हूं सब के आने से ।
4 Comments