उपमा कौल

आज बचपन बरबस ही याद आया, वो छोटी छोटी सी चीजों का चुराना और छुपके से खाना, पर इन सबके के लिए माँ और दादी के दिन में सोने का बेसब्री से इंतज़ार करना और भाई बहनों की टोली लेकर निकल जाना

हमारा सामूहिक परिवार दादाजी का प्यार हम बच्चों पर फूल बरसाता था, उनके साये में हम सब छोटी छोटी चालाकी कर लिया करते थे। एक मटके वाली कुल्फ़ी खाने की लालसा वो ठेले बाले से सेटिंग बिठा लेना उससे घर के पहले घंटी न बजाना वो खुश होता उसकी एक दिन की बिक्री 100 रुपये हमारे घर से । वो खुश होकर हमको इशारे में एक घंटी बजा देना घर से बहुत दूर फिर हमारी टोली हरक़त में आ जाती सबसे छोटा सड़क पर फिर एक खिड़की के पास रिले रेस की तरह कुल्फी एकदूसरे के हाथ में होती फिर मुँह पोंछ सीधे साधे बच्चे अपने अपने काम में लग जाते।

काश वो दिन कोई वापस ला दे ,वो निश्छल एकदूसरे के प्रति अथाह प्रेम की भावना वापस दिला दे ।

पापा पोस्ट मास्टर थे रुपये भरपूर होते थे पर चुराकर खाने का मज़ा निराला था। गर्मी की छुट्टियों का पूरे साल भर इंतज़ार रहता यही वो समय तो था जब सभी भाई बहनों का एकसाथ होना और नटखट शरारत का करना, दादाजी के साथ दहला पकड़ खेलना फिर इशारे करके जीत जाना ताश के पत्तों की बरिक पिसाई बोलकर हारने वाले को चिढ़ाने का सुख आज भी याद करो तो अनोखा है।

एक दिन की बात है सबको डांट कर दोपहर में सुला दिया हम सब सो गए मतलब सोने का नाटक कर रहे थे जैसे ही मां और दादी की नींद लगी चुपके से एकदूसरे को इशारा किया और सब बाहर निकल गए । नींबू का शरबत जो बनाना था शक्कर को गिलास में चम्मच से इतने धीरे से हिलाना की किसी को आवाज न पहुंचे । बस  आराम से शरबत बना सबने पिया किसी ने रसोई में अमूल मिल्क पॉवडर देखा और मेरे भाई ने नई खोज़ की , दीदी अमूल मिल्क पाउडर मे एक चम्मच शक़्कर डालकर खाने से मुंह मे चिपकेगा नहीं खा!!  किसी को पता नहीं चलेगा की अपन ने मिल्क पाउडर खाया उसके इतने प्यार से बोलने पर न चाहते हुए मैंने खाया।

मैं घर में सबसे बड़ी पर शरारत में सबसे आगे बढ़कर सबसे छोटी बन जाती । एक दिन की बात है बहुत बारिश हो रही थी तीन दिन हो गए पानी रुकने का नाम ही नही ले रहा घर में बैठे बैठे पक गए तभी खुरापाती दिमाग हरकत में आया सबको इकट्ठा किया सारे भाई बहन मेरे पीछे मैं आगे आगे निकल पड़े पानी मे मस्ती करने जबकि घर मे दोपहर में सब आराम कर रहे थे। हम खेत मे पानी जो कि बड़े बड़े गड्डे में उछल कूद मचा रहे थे खूब मस्ती की पर पापाजी अचानक आ गए बहुत मार पड़ी और पापा ने भूसे (जहाँ गाय का खाने का ) वाले कमरे में गीले कपड़े बन्द कर दिया मुझे और मेरी बहन को । फिर क्या पूछना मेरी बहन महिमा का रो- रो कर बुरा हाल और मैं कहा पीछे रहने वाली बोली देख हमको तीन चार घंटे से पहले कोई नही निकालने वाले तुम चुप हो जाओ  अपन सो जाते है वो नही मानी और रोती रही। अपन तो पागल बनने कहाँ वाले थे! मै बोली चल फिर तुम रो लो। मै तो गाय के चारे वाले डलिया में सो गई यह बोलकर की कमरा खुले तो मुझे आवाज दे देना तेरे साथ मे भी रो लुंगी। तीन घंटे तक महिमा रोती रही और मै सोती रही। तीन घंटे बाद कमरे खुलने की आहट आयी तभी महिमा बोली जीजी उठ कोई आ गया हमको निकालने बस फिर क्या था जो राग से राग मिलाकर रोये की मम्मी घबरा गई बाप रे तुम्हारे पापा ने कैसे बंद कर दिया मेरी लड़कियों को  कब से रो रही है। खूब गले लगाया , बढ़िया चाय नाश्ता मिला मेरी बहन तो तीन घंटे रोई और मै तीन घंटे सोयी। बहुत हँसी आती है जब हम ये वाकया अपने अपने बच्चों और पति को बताते है हँसी के ठहाके रुकते ही नहीं। ओह आज क़ुछ ज्यादा भावुक हो गई वो क्या बचपन था ये सारा बचपन आज मोबाइल ने खा लिया।

 

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