अंजु श्रीवास्तव निगम
(साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन, देश के प्रमुख प्रकाशनों में रचनाओं का लगातार प्रकाशन, कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त, आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण, लखनऊ में निवासरत )
यात्रा वृत्तांत में इस बार पिछले वर्ष संपन्न कुंभ यात्रा का विवरण।
आलौकिक यात्रा का दिव्य सम्मोहन
उन दिनों मेरा निवास देहरादून में था। वहां से हरिद्वार जाने का कार्यक्रम तय किया। देहरादून से हरिद्वार करीब 55 किलोमीटर है। आजकल अप्रैल में होने वाले कुंभ की वजह से जगह जगह रास्ता बनाने का काम प्रगति पर था। सारा काम जनवरी के शुरु तक खत्म करने का टारगेट था पर कोरोना के चलते काम काफी पीछे छूट गया।
हरिद्वार पहुँचते ही देखा, हर तरफ कुभं की तैयारी युद्ध स्तर पर चल रही थी। हरिद्वार में प्रवेश करते ही शिवजी की विशाल मूर्ति के दर्शन हुये। यहीं पास में “चौधरी चरण सिंह घाट”(वी.आई.पी के लिये) भी बनाया गया है। प्रत्येक घाट के पास पार्किंग की समूचित व्यवस्था की गई है। हर की पौढ़ी से एकदम करीब” दीन दयाल उपाध्याय पार्किंग” बनाई गई है जिसमें करीब दो सौ कार पार्क करने की व्यवस्था की गई है और उसमें प्रवेश करने के लिए बाकायदा इलेक्ट्रॉनिक कार्ड भी बनाये गये है। हम वहीं कार पार्क करके पैदल घाट की ओर चले। रास्ते में ही” कुंभ मेला कार्यालय”बनाया गया है जिस पर कुंभ मेले की सुचारु व्यवस्था देखने का भार है। गंगा पर एक नहीं कई पुल बनाये गये है ताकि भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न न हो। हर की पौढ़ी के मुख्य “स्नान घाट” का पूरी तौर पर कायाकल्प किया जा रहा है। संगमरमर के ही ढांचे में पूरे घाट को उज्ज्वल,धवल छवि प्रदान की जा रही है। मुख्य घाट के पास ही” राजा मानसिंह के द्वारा बनाई गई छत्री का पुनः निर्माण हो रहा है।

हमने हर की पौढ़ी के निकट ही बने भोजनालय “मोहन पूड़ी वाले” के यहाँ तृप्त हो कर खाना खाया और वहीं चौराहे से लगती मशहूर ” हरिद्वार आचार वाले” की दुकान से तरह तरह के आचार बंधवाये (दोनों, भोजनालय और आचार की दुकान करीब चालीस साल से स्थापित है) और बाजार घूमने निकल गये। हर की पौढ़ी में भी साढ़े चार बजे से ही ” बह्म कुंड” के पास बने घाट पर शाम की आरती के लिये भीड़ जुटनी शुरु हो गई थी। यहाँ हमने पहली बार अलग अलग कार्य करने के लिए वोलिटिंयर भी देखे। “गंगा सभा, हरिद्वार” और “सेवा समिती,हरिद्वार” किसी गुमशुदा की, किसी का समान खोने या मृत्यु होने की स्थिति में भी ये ,लोगों की पूरी मदद करने के लिए तत्पर रहेगे।
यहीं खड़े एक वोलिटिंयर ने बताया कि यहाँ आरती कराने के लिए एक एक साल तक की बुकिंग होती है और तिथी तय होने पर सपरिवार आकर भक्त यहाँ आरती करते है। भक्ति से पूर्ण वातावरण ने समस्त जन समूह को अपने में समेट लिया। निःशब्द करता ,ओजस्विता से ओत प्रोत ,जल, वायू,अग्नि, आकाश, पृथ्वी(पंच तत्व) को एकाकार करता।
आरती खत्म होते ही ऐसा लगा मानो एक दिव्य सम्मोहन से हम बाहर आ गये है। ऐसे वातावरण को कैसे कोई शब्दों में बांध सका है। यह तो एक परम अनुभूति है। उसी अनुभूति में डूबे हम वापसी के लिए रवाना हो गये।