रीता माणके तेलंग
जन्म:- ग्वालियर (मध्यप्रदेश)
-शिक्षा:-M.C.A., B.Sc (PCM)
-कम्पयूटर में मास्टर डिग्री
-महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए 2019 मे सुश्रुतदीप इवेंट्स नामक संस्था बनाई।
-बचपन से लेखन में रुचि रही। लेख, कविताएं, कहानियां आदि लिख रही हैं।
-लेखनी के माध्यम से समाज में चेतना, स्फूर्ती और सकारात्मकता लाने का प्रयास करती हैं।
-सामाजिक विषयों के अलावा राजनीतिक, आध्यात्मिक विषयों पर भी लिखती हैं।
रचना कर्म
कविता संग्रह-: “कहीं कुछ शेष न रह जाए”, “शायद मै स्वयं”, “मेरा बचपन”, “मम् आकांक्षा”, “अतीत”, “बदलते रिश्ते”, “राम की पीड़ा”, “एक दिया जलाना है” ,”घाटी की पुकार”, “काॅमन मैन”, “माझी आई “, “मोठी आई “
लेख संग्रह-: नारी शक्ति “निर्भय भव”, “स्वर्ग-नरक “, “गुड प्रभातम”, “माॅल देवता नमो नम” कॉमन मैन “(मराठी लेख)।
कहानी संग्रह:- “बुआ”, “करवा चौथ “
हिंदी और मराठी भाषा में लेखों का नियमित प्रकाशन।
गुरुग्राम में निवास।
मातृ देवो भव: ब्रह्म के तुल्य
ईश्वर की सबसे सुंदर रचना अर्थात मां जिसे प्रतिसृष्टीकर्ता भी कहते हैं। ब्रह्म के तुल्य ।
मां एक भावना है, एक स्पर्श है ,एक शक्ति है, एक आशीर्वाद है, एक अनुभव है।
मां किसी भी रूप में हो सकती है । आपके किसी भी रिश्ते में मां हो सकती है ।
कभी वह छोटी मां बनकर अपना वात्सल्य उड़ेलती हो,कभी बड़ी मां बनकर अपने अंचल समेटती हो।कभी बुआ, कहीं मौसी। कहीं दादी,मामी,काकी,भाभी,नानी,सासू मां या आपकी बड़ी बहन ही क्यों न हो। बस इन रिश्तो को संभालते आना चाहिए ।और हमारी संस्कृति तो हमें यह खूब सिखाती है।
भई हम तो राम और कृष्ण की संस्कृति वाले देश के वासी हैं।वह कृष्ण ही है जो “देवकी और यशोदा” में किंचित भी प्रतिस्पर्धा नहीं होने देते। वह कृष्ण ही है जो प्रसव वेदना सहनकर जन्म देने वाली देवकी और उनके हजारों नखरे उठा कर उनको पालने वाली यशोदा मैया दोनों को समानरूप से थामे रहते हैं।
हमारे पास राम हैं जो कौशल्या सुमित्रा और कैकयी में तनिक भी भेद नहीं करते । ‘हे माते अगर तुम मुझे वनवास ना देती तो मैं आज तीनों लोकों का स्वामी ना हो पाता’, माता के द्वारा दिए विष को अमृत मानकर सिर्फ राम ही पी सकते हैं । ऐसे राम और कृष्ण की संस्कृति के देश में जहां माता को नित्य ही मातृ देवो भव: कहा जाता है, मेरे उस देश की सभी माताओं को
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