मां तो अपने बच्चे को तब से प्यार करती है ,जब बच्चा उसकी कोख में होता है ।बच्चे की हर धड़कन में मां का श्वास होता है। बच्चा मां का स्पर्श पहचानता है।
शोभारानी तिवारी
बच्चा जब जन्म लेता है तो सबसे पहले मां की गोद को ही अपनी दुनिया समझता है ।मां बच्चे को दूध पिला देती है ,और वह तृप्त हो जाता है ।गोद में अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है ।मां का अर्थ है ममता का भाव ।मां शब्द सुनकर खुशी होती है ।मां तो अपने बच्चे को तब से प्यार करती है ,जब बच्चा उसकी कोख में होता है ।बच्चे की हर धड़कन में मां का श्वास होता है। बच्चा मां का स्पर्श पहचानता है ।ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनुपम कृति उपहार है मां ईश्वर नहीं तो ईश्वर ने अपनी जगह मां को ही भेज दिया ।मां मामता और वात्सल्य से परिपूर्ण होती है। मां परिवार के नींव का पत्थर होती है ,जिस पर परिवार रूपी महल मजबूती से खड़ा रहता है। मां बच्चे को सभ्यता और संस्कृति की घुट्टी पिला -पिला कर बड़ा करती है ।मां मैं विनम्रता ,दया, त्याग ,करुणा क्षमा इत्यादि गुण विद्यमान होते हैं ।मां अपने बच्चे को रोता हुआ देखकर व्याकुल हो जाती है ।और उसकी एक हंसी पर अपना दुख दर्द सब भूल जाती है। मां में समर्पण की भावना होती है ,और उनका मन फूलों से भी कोमल होता है मां अपने प्रेम की डोर से परिवार को बांधकर रखती है ।
पहला निवाला बच्चे को खिलाती है
परिवार में रिश्तो में मिठास लाने के लिए वह हर बार सूत्रधार बन जाती है ।ईश्वर ने नारी को बनाया है क्योंकि नारी के बिना इस सृष्टि की रचना संभव नहीं है ,वही इस संसार की धूरी है ,और बिना नारी के इस सृष्टि की कल्पना भी अधूरी सी लगती है ।माँ ही बच्चों की प्रथम गुरु है और परिवार ही बच्चे का प्रथम पाठशाला है ।यहीं पर बच्चा में प्रेम ,त्याग ,विनम्रता, शौर्य, आदि गुणों का विकास होता है ।किसी ने सच ही कहा है कि केवल “मां “शब्द में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है, बड़े-बड़े ऋषि मुनि भी मां के त्याग के आगे अपना शीश झुकाते हैं ।मां के चरणों में जन्नत होता है ,और जो भी उनके रजकण को अपने माथे से लगाते हैं वह अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। माँ अपना हर वसंत अपने बच्चे पर निछावर कर देती है और खुद अपने जीवन को पतझड़ से भर देती है । पहला निवाला बच्चे को खिलाती है ,और सब को तृप्त करने के बाद कुछ खाती है । वर्तमान समय में बच्चा बड़ा होकर अपनी दुनिया में मस्त हो जाता है ,और माता -पिता उसकी आंखों में किरकिरी की तरह चुमने लगते हैं ।जिस छाती का दूध पिलाकर मां ने बड़ा किया ,उसी की छाती में खंजर चुभता है। माँ ने लोरियां सुना -सुना कर जिसे सुलाया था वहीउसे ताने सुनाता है। जिसे गिनती सिखाई थी ,वही उनकी गल्तियाँ गिनाता है ।उंगली पकड़कर मां ने चलना सिखाया था ,वही बच्चा बड़ा होकर हाथ पकड़कर घर से बाहर निकाल देता है ।और वृद्धाश्रम में छोड़ देता है ।
मैं आज की पीढ़ी को एक नसीहत देना चाहती हूं ,कि माता-पिता को सताओगे तो खुद भी सुखी नहीं रह पाओगे ।कहते हैं ना कि जैसे बोवोगे वैसा ही काटोगे इसलिए वृद्ध माता-पिता को अपने मन मंदिर में रखना चाहिए। क्योंकि माता- पिता के आशीर्वाद से बढ़कर और कुछ नहीं होता है । याद रहे कि माता पिता की आंखों में कभी आंसू ना आए ।माँ दुख और तकलीफ़ मिलने के बाद भी अपने बच्चों को कभी बद्दुआ नहीं देती है। क्योंकि मां तो बस मां होती है।
619 अक्षत अपार्टमेंट,खातीवाला टैंक,
इन्दौर, मध्य प्रदेश
मोबाइल 8989409210