डॉ. दविंदर कौर होरा
काव्य कुंज (त्रैमासिक पत्रिका की प्रधान संपादक),शिक्षिका, कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त, विविध विषयों पर लेखन में रुचि।
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अन्न का अपव्यय : दोषी कौन
*धरा की कोख को कर छलनी
कृषक ने श्रमसीकर से सींचा है
नीर की बूंदों ने तपाया इसे
“ऐ दविंदर” भोजन तेरी थाली में
बड़ी मशक्कत के बाद आया है*|
” मम्मा पेट भर गया और नहीं खाना”- कनिका ने दाल – चावल से भरी प्लेट एक और सरका दी|
उसने मुश्किल से दो – चार चम्मच ही खाए थे| थोड़ी देर पहले ही वह भाई के साथ बैठकर नूडल्स खा रही थी |
रजनी ने कहा “कोई बात नहीं बेटा”| खाना डस्टबिन में डाल कर रजनी ने प्लेट- चम्मच धोने में डाल दी |
डैनी अपने परिवार के साथ होटल खाना खाने गया | सब ने अपनी- अपनी पसंद का खाना यथा.. इडली -सांभर, पनीर – टिक्का, छोले – भटूरे मंगवा लिए |
फिर रसगुल्ले और अंत में आइसक्रीम आर्डर कर दिया| कविता मना करती रह गई कि इतना नहीं खाया जाएगा और वही हुआ, जितना पेट में गया उससे अधिक डस्टबिन में |
हम अपने आस – पास नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि यह एक – दो नहीं बल्कि हर घर की कहानी है |
कहीं इस कहानी के किरदारों में हम भी शामिल तो नहीं ?
*अन्न देवता है | अन्न जीवन की जरूरत है , इसका सम्मान करें| हमें भोजन अपनी थाली में उतना ही लेना चाहिए जितना आवश्यक हो | अपने बच्चों को भी शुरू से ऐसी आदत डालनी चाहिए कि वह जितना खाना ले रहा है, पूरा खत्म करे|
रोज सुबह की ताजा खबर में हम सुन रहे हैं कि पेट्रोल महंगा , रसोई गैस महंगी , बिजली महंगी हो रहे हैं
| महंगाई का दोषी कौन है?
क्या हम स्वयं नहीं हैं ?
सबसे अधिक भोजन का अपव्यय बर्थडे पार्टियों , शादियां और होटलों में होता है| हम में से अधिकतर प्लेट में जरूरत से ज्यादा खाना ले लेते हैं | जितना पेट में जाता है उतना ही डस्टबिन में |
यदि हम खाने के दानों को बचाना शुरू कर दें , जितना जरूरत है उतना बनाएं और जितना थाली में परोसें उसे खत्म करें , तो अनाज का अपव्यय भी नहीं होगा और कृषक को भी मेहनत कम करनी पड़ेगी , साथ ही धरा का दोहन भी कम होगा | सोने पर सुहागा .. अनाज की कीमतें कम हो जाएंगी|
इसी तरह से यदि हम थोड़ी- थोड़ी दूर के काम के लिए टू व्हीलर का प्रयोग करने की बजाय पैदल जाते हैं तो ना सिर्फ पेट्रोल की बचत करेंगे वरन अपने स्वास्थ्य को भी ठीक रखेंगे |
महंगाई के इस दौर में अन्न फेंकना ना सिर्फ अन्न का अपव्यय है वरन घर और देश की अर्थव्यवस्था भी चरमरा सकती है|अन्न के कुछ दाने बचाकर हम भंडारण भर सकते हैं और कुछ बूंदें पैट्रोल बचाकर हम अर्थव्यवस्था में सुधार कर सकते हैं
तो हम सुधर रहे हैं…
आज से… अब से |
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