–आशा जाकड़

शिक्षा -एम.ए (हिन्दी , समाज शास्त्र )बीएड .

व्यवसाय – सेवानिवृत्त शिक्षिका (28 वर्ष अध्यापन , सेन्टपाल.हा सेकेंडरी स्कूल इन्दौर से सेवानिवृत्त)।       कुल अध्यापन – 38 वर्ष

 विशेष – हिन्दी विभाग की इन्चार्ज ,सांस्कृतिक कार्यक्रम  की प्रबन्धक , 10 वर्ष  विद्यालय पत्रिका की सम्पादक ।

 उपलब्धियाँ  –

1 -काव्य रस धारा की अध्यक्ष          

  2-  इन्दौर लेखिका संघ की उपाध्यक्ष        

  3-  इन्डियन आथर्स आफ सोसायटी की सह सचिव 

  4-  अखिल भारतीय हिन्दी परिषद इन्दौर की सदस्या

  5-    हिन्दी परिवार की सदस्य       

   6- रोटरी क्लब की सदस्य

   7- फिल्म राइटर्स एसोसिएशन की सदस्य

   8-अखिल हिन्दी साहित्य संस्था की सदस्य

   9-  शुभ संकल्प  समूह  की सदस्य      

 10-थैलेसीमिया चाइल्ड वेलफेअर  ग्रुप  की सदस्य  

11-  सांई कृपा महिला मण्डल की सचिव

12-अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद की अध्यक्ष जिला इन्दौर

प्रकाशित  रचनाएं – 400 से  अधिक

       6 पुस्तकें प्रकाशित –

            1- राष्ट्र को नमन (काव्य संग्रह )

            2 –  अनुत्तरित प्रश्न( कहानी संग्रह )

            3-    नये पंखों की उड़ान (काव्य संग्रह)

           4-   सिंहस्थ महोत्सव 2016(निबन्ध)

            5  –  कश्मीर हमारा (काव्य संग्रह )

            6-  दास्तान -ए-कोरोना (काव्य संग्रह)

  सम्मान –       

  1. संस्था साहित्य कलश इन्दौर द्वारा प्रदेश  स्तरीय सरल  अलंकरण सम्मान   2011      
  2. साहित्यिक संस्था रंजन कलश, भोपाल द्वारा माहेश्वरी सम्मान 2011 एवम् शिव सम्मान 2016

    3-   जे.डी .पब्लिकेशन दिल्ली सम्मान 2013 

     4- इतिहास एवम् पुरातत्व शोध संस्थान द्वारा  साहित्य मणि श्री  सम्मान 2013

      5-अहिल्या  केन्द्रीय पुस्तकालय इन्दौर  द्वारा अनुत्तरित प्रश्न पर “कृति कुसुम” सम्मान2014

      6 -पूर्वोत्तर हिन्दी  अकादमी  शिलान्ग द्वारा श्री कृष्ण महाराज    सम्मान   2015               

     7- अ. भा .हि .सेवी संस्थान इलाहाबाद  द्वारा राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान  2015

8- अस्मिता साहित्य सम्मान  (बड़ौदा) 2015

 9 – राष्ट्रीय कवि संगम मध्यप्रदेश द्वारा शब्द शक्ति सम्मान 2016

10 -इन्दौर साहित्य  सागर  संस्था द्वारा पूर्णोपमाश्री सम्मान 2017

11-  “मैं  हूँ बेटी सम्मान “लखनऊ से

12- सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी खण्डवा द्वारा महिला गौरव सम्मान 2018

13-  अन्तराशब्दशक्ति सम्मान 2019 महादेवी वर्मा सम्मान 2019

14 कल्पना चावला सम्मान 2019

15 लक्ष्मी बाई मेमोरियल सम्मान 2019 अग्निशिखा साहित्य गौरव सम्मान 2019

16 मध्य प्रदेश नारी गौरव सम्मान 2020

17 अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी परिषद द्वारा कोरोना योद्धा सम्मान 202

18 अवनि सृजन  क्षेत्रीय सम्मान 2020

19 मध्य प्रदेश महिला सम्मान 2021 साहित्य शिरोमणि 2021

20 अखंड संडे सम्मान 2021

21भारत माता सम्मान 2021 अग्निशिखा मंच द्वारा  श्रेष्ठ समीक्षक सम्मान 2021

22 श्री श्री साहित्य सभा द्वारा श्रेष्ठ कलमकार सम्मान

 इसके अतिरिक्त लॉकडाउन में ऑनलाइन सम्मान 150

ऑनलाइन लाइव कार्यक्रम में भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद संस्था के अंतर्गत 150 ऑनलाइन कवि सम्मेलन ,परिचर्चा और 6 बच्चों के ऑनलाइन कार्यक्रम।

काव्य पाठ –साहित्यिक संस्था ,काव्य गोष्ठी  और काव्य मंच पर  नियमित काव्य पाठ ।

आकाशवाणी व दूरदर्शन पर वार्ताए व काव्य पाठ ।

#लेखिका संघ की 6″ ई पुस्तकों “में संस्मरण और कविताओं का  प्रकाशन #हिंदी परिवार की 10″ई पुस्तकों “में कविताओं का प्रकाशन:

” मनभावन सावन “और” शक्ति स्वरूपा माँ”काव्य संग्रह और 6 साझा काव्य  संग्रह का सम्पादन।

फोन नंबर – 9754969496

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सफरनामा

लंका दर्शन ( भाग 1)

बचपन में रामायण पढ़ी थी ,हर वर्ष रामलीला देखते थे कि रावण ने सीता का अपहरण कर लंका में अशोक वाटिका में रखा था। अतः श्रीलंका देखने की बड़ी इच्छा थी मेरे पति के मित्रों ने जब श्रीलंका जाने का प्रस्ताव रखा तो प्रस्ताव तुरंत स्वीकृत हो गया और हम पुलकित हृदयसे बड़े उत्साह पूर्वक 01 मार्च को 2:00 बजे  मुम्बई एयरपोर्ट पहुँचे वहाँ हमारे मित्र प्रतीक्षा कर रहे थे। चेकिंग के बाद हम लोग कुर्सियों पर आराम से बैठे, नाश्ता किया और थोड़ी गपशप की । अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बहुत विशाल व बड़ा ही शानदार बना है । वहाँ आभूषण, घड़ियाँ ,फ्लावर्स आदि की दुकानें थी। हमने वहाँ कॉफी पी ।एक कप कॉफी 120 की थी अतः दो दो लोगों ने एक कप.लेकर आधी -आधी करके पी। 5:30 पर अनाउंसमेंट हुआ, बसआई ,बस में बैठकर हम प्लेन में पहुंचे ।  6:00 बजे प्लेन ने टेकआफ किया ।सूर्यास्त की लालिमा समुद्र पर पड़ रही थी उसी सुंदर दृश्य को आँखों में बसाए हमारा जहाज उड़ान भरता रहा । धीरे-धीरे लालिमा कालिमा में बदलने लगी। ठीक 8.20 मिनट.पर रात्रि को कोलंबो एयरपोर्ट पर  प्लेन ने लैंडिग की, हम सभी अपना अपना सामान लेकर जैसे ही आगे बढ़े तो एयरपोर्ट पर  खड़ी परिचारिकाओं ने हम सब का मुस्कुरा कर स्वागत किया और थोड़ा आगे बढ़ने पर गाइड मि. कुमार ने सभी का मुस्कुराकर स्वागत किया। हम सभी एयरपोर्ट से बाहर निकले जहाँ बस द्वारा लगभग 9:00 बजे हम नीगोम्बो में होटल रमाडा पहुंचे । एक लेडी होटलकर्मी ने हम सबका मुस्कुरा कर अभिनंदन किया और 15 मिनट के अंदर सभी को अपने -अपने कमरे की चाबी  दे दी गई ।चाबी लेकर कुछ अपने रूम में  सामान रखने चले गए ।कुछ जल्दी से जाकर सो गए और कुछ ने वहीं डायनिंग हाल में बैठकर थेपले, अचार ,पापड़ ,सेव आदि खाया जो मुंबई से गाइड द्वारा दिए गए थे ।खाना खाकर तृप्त होकर अपने अपने कमरे की सभी ने शरण ली । गाइड ने सुबह 7:30 बजे नीचे आने का  निवेदन किया ।श्रीलंका बहुत छोटा देश ( टापू ) है।

हरियाली का सर्वत्र साम्राज्य  ,स्वच्छ वातावरण

दूसरे दिन सुबह 6:00 बजे उठकर सभी तैयार हो गए और अपना सामान पैक कर 7:30 बजे नीचे हॉल में आ गए ।वहाँ  डायनिंग हाल में नाश्ता किया। नाश्ते में कई तरह के जूस ,फ्रूट्स थे ,भिन्न- भिन्न प्रकार की ब्रैड केक आदि थे और आम की चटनी व नॉन वेज भी था ।  पूरे हाल में घूम कर हमने देखा फिर वेज नाश्ता ,जूस, फ्रूट्स ,ब्रेड और आम की चटनी ली और अंत में चाय पी ।ठीक 8:15 पर हमारी बस चल पड़ी अगले पड़ाव के लिए ।चलने से पहले सभी ने श्री राम की जय-जयकार की।गाइड ने बताया कि श्रीलंका बहुत छोटा देश है ,यह टापू है ।यह साउथ इंडिया से 50 किलोमीटर दूर है यहाँ की आबादी 22 मिलियन है 15% हिंदू है 6% क्रिश्चियन है।यहाँ हमेशा गर्मी जैसा मौसम रहता है।हमेशा 29 डिग्री से 36 डिग्री तापमान रहता है। अशोकवाटिका यहाँ से 110 किलोमीटर दूर है। 89% यहाँ लिटरेसी है और फ्री एजुकेशन 11वीं कक्षा तक है।बस में से हम सभी मंत्रमुग्ध होकर खिड़की में से नजारा देख रहे थे। हरियाली का सर्वत्र साम्राज्य था ,स्वच्छ वातावरण दृष्टिगोचर हो रहा था।ज्यादातर भवन 1 मंजिला बने हुए थे।ऊपर कवेलू की ढालदार छत थी ,मकानों के आसपास खूब हरियाली और नारियल के पेड़ लगे हुए थे। गाइड ने बताया कि अनुरागपुर एक ऐतिहासिक क्षेत्र है वहाँ से एक्सपोर्ट खूब होता है। यहाँ आयुर्वेदिक दवाइयों का प्रयोग अधिक होता है क्योंकि यहाँ हर्बल संजीवनी बूटी एक प्रकार की दवा है ।ड्रग्स के कारोबार से कोई देश अछूता नहीं है। श्रीलंका भी उसी श्रेणी में आता है। ड्रग्स का आयात पाकिस्तानी तस्करों के द्वारा समुद्री मार्ग से किया जाता है। रास्ते में कोचीकड़ी सिटी मिली।यहाँ से कोलम्बो 45कि.मी. दूर है। यहां हर शहर में एक झील है जो खेती करने के काम आती है।यहाँ 260 नदियाँ,45 झीलें हैं ऐसा गाइड से बात करते-करते हम चिलाओ पहुँच गये।

चिलाओ मैं मंदिर के दर्शन किए ।मंदिर का नाम मोनेश्वर मंदिर था,वह शिव मंदिर था। वहाँ शिवजी की बहुत  पुरानी काले पत्थर की  छोटी -छोटी मूर्तियां थीं। शिव मंदिर में छोटे -छोटे मंदिर बने हुए थे। एक मंदिर में गणेश जी  ,दुर्गा जी व लक्ष्मी जी की मूर्तियां थीं। वहाँ विष्णु जी शेषनाग पर लेटे हुए थे। एक हाल में ,दुर्गा ,सरस्वती देवी , व लक्ष्मी  की मूर्तियां थी, दशावतार भगवान नटराज की मूर्ति थी., हिरण्यकश्यप और रावण की मूर्ति थी जिसके हाथ में शनि का सिर था। मंदिर देखकर सभी बड़े आनंदित हुए । उस समय सूर्य  अपने पूरे जोश पर था 11:00 बजे का समय था  गर्मी से राहत पाने के लिए सभी मंदिर से बाहर निकलकर हरे नारियल  का पानी पीकर तृप्त हुए क्योंकि धूप के कारण गर्मी बढ़ती जा रही थी। नारियल पीकर सभी तृप्त होकर चल दिए। वहाँ पहुँचने पर सभी के मोबाइल बंद थे क्योंकि कुमार ने सभी को दूसरी सिम दिलवाई थी। सिम को एक्टिवेट करने के लिए हम लोग बस से आगे गए और हमारी बस एक शॉप के सामने रुकी ।कुमार के साथ कई लोग अपने मोबाइल लेकर शॉप के अंदर गए। उस शॉप के सामने शॉपिंग माल था ,जहाँ साड़ियां ,फ्राक,और  बच्चों के परिधान की  दुकानें थी। वहाँ लेडीज  स्कर्ट पहने घूम रही थी। दुकानों पर जो बोर्ड थे ,वहाँ कही सिंहली भाषा में लिखा था ,कहीं इंग्लिश में ,पर ज्यादातर इंग्लिश में ही लिखा था इसलिए हम लोग आसानी से पढ़ कर समझ लेते थे।दोपहर का समय था इसलिए प्रायः लोग छाता लेकर घूम रहे थे धूप से सुरक्षा हेतु ।पास ही एक बौद्ध मंदिर था,बौद्ध मन्दिर गोलाकार में था जहाँ बुद्ध की मूर्ति थी। श्रीलंका की आबादी कम है बूढ़ी औरतें भी वहाँ लॉन्ग स्कर्ट पहने थी ,इक्का दुक्का औरते जीन्स पहने थीं और साड़ी कोई नहीं पहने हुए था। कुछ वृद्ध औरतें  पेटीकोट पर तैमद जैसा लपेटें थीं।कुछ दूरी पर  एलीफेंट रॉक दिखाई दिया। एक बहुत बड़ी चट्टान थी चट्टान के दोनों तरफ.बाजार था, बाजार में खूब चहल-पहल थी, थोड़ी देर में 1:30 बजे के करीब हम लोग रेस्टोरेंट लंच के लिए गए ।रेस्टोरेंट में बड़ी ठंडक थी चारों तरफ खूब हरियाली थी टेबल पर प्राकृतिक पौधे वातावरण को और सुगंधित बना रहे थे ।नारियल के पाट में ही पौधे लगाकर सजावट की गई थी।वहाँ बैठकर बड़ा आनंद आया। वहाँ दो तीन तरह के सूप , जूस ,फ्रूटस थे पर खाना समझ में नहीं आ रहा था। हाथ धोकर जूस पिया फ्रूट्स खा लिए

फिर दृष्टि ब्रैड पर पड़ी और आम की चटनी पर ,फिर बड़े-बड़े बॉउल को खोलकर देखा तो दाल -चावल सब्जी दिखाई दिए ।सब्जी तो उनकी आधी कच्ची रहती थी ।चावल दो तरह के होते थे वाइट और ब्राउन राइस हमारे ग्रुप में ज्यादातर वेजीटेरियन थे। पाँच तो बिल्कुल जैन थे जो आलू शकरकंद भी नहीं खा सकते थे । नॉनवेज चार ही थे, दही देखकर सब के चेहरे खिल गए। दाल- चावल खाया और कुछ ने चावल- दही खाकर अपनी भूख मिटाई। आइसक्रीम खाकर तृप्त होकर वहाँ से चल दिए ।चारों तरफ हरियाली ,सुंदर भवनों, छोटे-छोटे शहरों को पार करते हुए हम लगभग 5:00 बजे डेम्बुला पहुँचे।

गोल्डन कलर में गौतम बुद्ध की विशाल मूर्ति

डेम्बुला में अंतर्राष्ट्रीय बुद्धिस्ट केंद्र था ।इस मंदिर में एक कॉन्फ्रेंस हॉल था, अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन और रिसर्च इंस्टीट्यूशन था, अंतर्राष्ट्रीय बुद्धिस्ट वाचनालय , अंतर्राष्ट्रीय बुद्धिस्ट मेडिटेशन और ट्रेनिंग इंस्टिट्यूशन है ।ये चारों स्पॉन्सर होते है कोरिया ,श्री लंका ,बुद्धिस्ट फ्रेंडशिप संगठन से ।वहाँ गोल्डन टेंपल स्वर्ण मंदिर था जिसे किंग मलखान ने 5 वीं शताब्दी में बनवाया था । स्वर्ण मंदिर बहुत विशाल मंदिर था , यह मंदिर गोल्डन कलर में है इसलिए इसे गोल्डन टेंपल कहा जाता है । गोल्डन  टैम्पल में 1 किलोमीटर की गुफा थी जिसमें हम लोग नहीं गए। मंदिर में एक संग्रहालय था पर उस दिन बंद होने के कारण हम देख नहीं सके।  संग्रहालय के ऊपर  गौतम बुद्ध की विशाल मूर्ति थी जो गोल्डन कलर में थी।मूर्ति को देख कर ऐसा प्रतीत होता था  जैसे वह हमको देख रहे हों ।मूर्ति के पास जाने के लिए सीढियाँ थी ,ऊपर की सीढ़ी पर कुछ बौद्ध भिक्षु की  मूर्तियाँ थी   जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि वे मूर्ति पर पुष्प चढ़ाने जा रहे हों ।प्रारंभ में एक छोटा सा बौद्ध मन्दिर था जिसमे दो बड़ी मूर्तियां थीं और कुछ छोटी मूर्तियां थीं। कुछ स्त्रियाँ दीप जलाने मंदिर में आ रही थीं। मन्दिर के बाहर दरवाजे पर दोनों ओर दीप जलाएँ जाते हैं। एक लोहे की स्टैन्ड रखी थीं  जिसमें दीपक जलाए जाते हैं। कुछ स्त्रियाँ  पूजा करने आई और दीप जलाकर आंखें बंद करके मूर्ति के सामने खड़ी रहीं। वहाँ कुछ बौद्ध भिक्षु बालक घूम रहे थे उनसे बातचीत की तो पता चला कि वे बौद्ध धर्म की शिक्षा ले रहे हैं ।उनके साथ हमने फोटो भी लिए, मंदिर के पास ही स्कूल था वहाँ के बच्चे अपने टीचर के साथ घूम रहे थे कुछ खेल रहे थे। टीचर ने बताया कि वह स्टूडेंट्स को मंदिर दिखाने लायी हैं। डेम्बला शहर अनुराधापुरा रोड पर स्थित है कुछ स्त्रियां वहांँ साड़ियां पहनी थी ,साड़ी पहनने का ढंग उनका बिल्कुल अनोखा था पर शानदार था मंदिर के बाहर रेस्टोरेंट था जहाँ लोग खाने का लुत्फ उठा रहे थे ।वहाँ से बस में बैठकर हम हरियाली का आनन्द लेते हुऐ सब होटल पहुँचे। होटल पहुँचते ही हम सबको जूस दिया गया और 10 मिनट के अंदर सबको अपने अपने रूम की चाबियां प्राप्त हो गई कुछ लोगों को ग्राउंड फ्लोर पर.कमरे मिले थे ,किसी को फर्स्ट फ्लोर पर मिले थे पर होटल बहुत ही शानदार था ।उसके अंदर गजब की हरियाली थी। सभी के रूम विशाल व व्यवस्थित थे सभी कमरों के सामने बालकनी थी जहाँ एक टेबल चेयर विद्यमान थी वहाँ से प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन हो रहे थे।कमरों के आगे काफी हरियाली थी । वहाँ 220 पेड़ थे और  पेड़ों के बीच रास्ते बने थे ,वहाँ एक कॉटेज बनी हुई थी। इसमें करीब 12 कुर्सियां थी जिस पर पुरुषों ने वहाँ बैठ कर गप – शप.की और मदिरापान का आनंद लिया।हमने भी कमरों के आगे जो बालकनी थी,वहाँ कुर्सियों पर बैठकर गीत गाए ,मैंने कविता पाठ किया ,और एक भाभी ने डांस किया।उसके पश्चात सभी डिनर  के लिए पहुँचे । वहाँ सर्व प्रथम देखा  कि डिनर में क्या है? वहाँ भी जूस, फ्रूट्स ,आम का जैम, मिकस्ड वैजीटेबल ,आलू्  फ्रायड थे,साथ में पिंक कलर का प्याज के पीस जैसा दिखा तो थोड़ी शंका हुई यह क्या है ?मालूम पड़ा नॉनवेज है। तो हमने गाइड से कहा प्लीज मेक अरेंज सेपरेटली वेजिटेबल और नॉन वेजिटेबल।इस प्रकार निरीक्षण करके  फ्रूट्स, सलाद, ब्रैड जैम ,आलू खाकर भूख मिटाई अंत में चाय पीकर हंसी मजाक करते हुए अपने -अपने कमरों की ओर सभी ने प्रस्थान किया ।

3 मार्च को सुबह उठकर सबसे पहले चाय पी फिर बालकनी में सुबह का नजारा देखने के लिए सभी  भ्रमण करने के लिए निकल पड़े। कुछ ने होटल के अंदर गार्डन में ही  भ्रमण किया और कुछ थोड़ा दूर  घूमने गये। 8:00 बजे के लगभग सभी डाइनिंग हॉल में नाश्ता करने के लिए पहुंच गए। नाश्ते में वही जूस, फ्रूट, चाय ,कॉफी ब्रेड, जैम,था ,जब दूध और कार्नफ्लैक्स देखे तो खुशी हुई कि कुछ तो चेंज है,। नाश्ता कर ,सभी अपना सामान लेकर 8.50 बजे हॉल में पहुँच गए ।ठीक 9:00 बजे हमने डेम्बुला से प्रस्थान किया। डेंबुला बहुत ही शानदार हरियाली से परिपूर्ण सुंदर स्थान है ।हरियाली का सौंदर्य सर्वत्र बिखरा हुआ है। रास्ते में उद्यान मिले,  स्कूल जाते हुए बच्चे दिखें ,फुटपाथ पर जगह-जगह पीले नारियल का विक्रय हो रहा था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम किसी पहाड़ी प्रदेश में भ्रमण कर रहे हों। कहीं कहीं सागवान लकड़ी  का व्यवसाय हो रहा था हरियाली के मध्य भ्रमण करते हुए मन बड़ा आनंदित हो रहा था।छोटी मोटी दुकानें मार्ग की शोभा बढ़ा रही थी ।डेम्बुला से कैंडी 100 किलोमीटर दूर स्थित है। हरियाली के बीच छोटे-छोटे घर दिखाई दे रहे थे ।ईश्वर ने हमें कितनी सुंदर सलोनी धरती प्रदान की है ।यहाँ आने पर प्रतीत हुआ नारियल के ऊँचे -ऊँचे पेड़ सर्वत्र स्वागत करते हुए प्रतीत हो रहे थे। रंग-बिरंगे पुष्प प्रसन्नता बिखेर रहे थे, यहाँ की क्राकरी की फैक्ट्री संसार में प्रथम स्थान पर गिनी जाती है ।यह श्रीलंका की प्रसिद्ध फैक्ट्री है ,विविध प्रकार के वृक्ष मन को मोहित कर रहे थे ।हरियाली से पूर्ण शीतल वातावरण मन  को बड़ा सुकून दे रहा था ।सुकून भरे वातावरण का आनंद लेते हुए हम आगे बढ़ रहे थे तभी गाइड ने बताया यहाँ नारियल से फ्लावर पॉट तैयार किए जाते हैं, फ्लावर पॉट बनाकर सजावट की जाती है और नारियल के जूट की रस्सी ,चटाई भी बनाई जाती है ।

रास्ते में नउला पड़ा जहाँ गौतम बुद्ध की विशाल प्रतिमा बनी हुई थी ।कुछ देर पश्चात एक और गौतम बुद्ध के दर्शन हुए , यह प्रतिमा खड़ी अवस्था में दिखाई दिए।रास्ते में  खेत दिखाई दिए जिनमें झोपड़ियां बनी हुई थी कहीं पेड़ पौधे के बीच में सुंदर भवन दिखाई दे रहे थे ,कहीं लकड़ियों का फर्नीचर बन रहा था ।खजूर के पेड़ एक जगह  सौ -सौ की संख्या में थे ,बीच-बीच में चिनार के वृक्ष शोभायमान थे।वहाँ एक बौद्ध मंदिर दिखाई दिया जहाँ बाहर की ओर छोटी-छोटी प्रतिमाएं स्थिति थीं।सफेद पत्थर रास्ते की शोभा बढ़ा रहे थे, लाल मिट्टी में हरी -हरी घास बड़ी सुंदर प्रतीत हो रही थी ।रास्ते में आयुर्वेदिक ग्राम मिला इसका नाम  इसीवार आयुर्वेदिक ग्राम था ,सभी लोग बड़े उत्साह से आयुर्वेदिक ग्राम को देखने के लिए बस से उतरे क्योंकि गाइड ने बस में बता दिया था कि यह वही पहाड़ है जिसे हनुमान जी लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी के लिए उठा लाए थे गाइड ने अरुणाचलम मनोहर से मिलवाया ।डॉक्टर मनोहर जी के मुखसे हिंदी में नमस्ते सुनकर हम सब बड़े आश्चर्य चकित हुए उन्होंने कहा कि मुझे हिंदी आती है तब हम सभी बड़े प्रसन्न हुए। मनोहर जी ने बताया दुनिया की प्राकृतिक दवाइयां यहाँ प्राप्त होती हैं ।अलग-अलग पेड़ों के पास ले गए और उनसे जो दवा बनती थी उसके विषय में उन्होंने बहुत अच्छी तरह से समझाया। डायबिटीज के लिए हर्बल दवा होती है ।नीम की पत्ती के साथ 12 हर्बल मिक्स करते हैं ,गर्म करते हैं और1 महीने के बाद दवा तैयार होती है शरीर पर तेल लगाने से पहले बाद में मिक्स करके उसको लगाते हैं । लवंग का तेल कैसे बनाते हैं ,बादाम क्रीम वेरीकोस वेंस के लिए उन्होंने दवाएँ बताई फिर दवाई कैसे बनाते हैं उनका बनाने का स्थान बताया और बड़े-बड़े  कड़ाहों में  पेड़ पोधों के अर्क को  महीने भर गर्म करते हैं उसके बाद फिर उसे दवा के रूप में इस्तेमाल करते हैं ।डायबिटीज दवा का लाइसेंस लेना पड़ता है अन्यथा दंड होता है। हर्बल वाइन कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए.प्रयोग करते हैं।आयुर्वेदिक ग्राम इसीवारा में लंच लेकर हम बुटीक फैक्टरी पहुँचे।     बुटीक फैक्ट्री में बुटीक कैसे किया जाता है वहाँ की इंचार्ज ने समझाया ।सीनरी ,कपड़े ,साड़ियां बहुत सुंदर थे लेकिन बहुत महंगे थे जो चीज हमें इंडिया में ₹1000 में मिलती है वहां ₹5000 की थी इसलिए सभी निराश होकर लौटे ।बस एक साथी ने दो शर्ट खरीदी बुटीक की। फैक्ट्री देखकर हम अलवीहार होते हुए मातले सिटी पहुँचे जहाँ रास्ते में सुंदर भवन, खेत, नर्सरी ,फेब्रिकेशन की फैक्ट्री और छोटी-मोटी दुकानें मिली घर बड़े सुंदर व व्यवस्थित दिखाई दिए। कुछ दूर चलने पर खेत मिले  जिसमें लाखों की तादात में नारियल के पेड़ थे।सिटी में बहुत विशाल मंदिर था जिसमें सभी देवी देवताओं कीश मूर्तियाँ थी। वहाँ गौतम बुद्ध की मूर्ति थी । गौतम बुद्ध की मूर्ति वहाँपर जगह-जगह दिखाई  दे जाती थी ।मातले से कैन्डी 20 किलोमीटर दूर है मातले से कुछ दूर जाने पर ऐसा प्रतीत होने लगा कि हम किसी हिल स्टेशन जा रहे हैं ।रास्ते में एक तरफ पहाड़ थे दूसरी तरफ नीचे की ओर मकान थे । घुमावदार रास्ते से होते हुए बस जा रही थी ,पहाड़ों पर कहीं-कहीं मकान थे थोड़ी देर में हमें अल्वाथगोड़ा शहर मिला ।अल्वाथगोड़ा छोटा शहर था पर साफ सुथरा शहर था ।अल्वाथगोड़ा के एक तरफ पहाड़ी थी। पहाड़ों को काटकर बिल्डिंग बनाई जा रही थी। पहाड़ पक्के दिखाई दे रहे थे और पहाड़ पर ऊँची- नीची सड़कें दिखाई दे रही थी ।जो मकान ऊपर थे उनके लिए सीढ़ियां बनी हुई थी ।वहां लकड़ियों का व्यापार  हो रहा.था और वहाँ कार बनाने का कारखाना था ।  कुछ दूरी पर गौतम बुद्ध  का शानदार मन्दिर था ।अन्दर एक बड़ी मूर्ति ,पास में  छोट छोटी  मूर्तियाँ थी।महावैल नदी के पास बुद्ध की विशाल खड़ी मूर्ति थी ।

कैन्डी अच्छा शहर है वहाँ कारों का व्यापार बड़े पैमाने पर होता है। कारों के वहाँ कई शोरूम थे । वहाँ पुरानी जेल भी देखी और उसके साथ स्टेडियम देखा जो बड़े विशाल आकार में था ।कुछ दूरी पर  पेरेडोनिया रोड पर गौतम बुद्ध का मंदिर था । करीब 6:00 बजे हम लोग होटल पहुंच गए। वहाँ हमने चाय पी और सभी ने थोड़ी देर अपने कमरे में आराम किया फिर उसके बाद हम लोगों ने अंताक्षरी खेली, जेंट्स लोगों ने ताश पत्ते खेले।

4 तारीख को सुबह हम लॉर्ड बुद्धा  टेंपल गए ।मंदिर बहुत विशाल था, बाहर बहुत सुंदर बगीचा था ।वहाँ एक उज्जैन के राजा – रानी की प्रतिमा थी। अंदर जाने पर मंदिर के अंदर जाने का मार्ग था ।काफी ऊपर जाने पर मंदिर के अंदर प्रवेश मिला उससे भी ऊपर जाने पर गौतम बुद्ध की चाँदी की मूर्ति थी जिसके द्वार को समय-समय पर खोला जा रहा था ।मंदिर की मूर्ति एक कमरे में स्थित थी उसके बाहर चौकोर प्रांगण था जिसमें छोटे-छोटे बच्चों को लेकर उनके माता-पिता बैठे हुए थे ,वे उनके नामकरण व आशीर्वाद लेने के लिए आए हुए थे। मंदिर के अंदर और भी छोटे-छोटे मंदिर थे।मंदिर को बहुत सुंदर ढंग से सजाया हुआ था एक स्थान पर अखंड ज्योति जल रही थी।नीचे आने पर एक ऐसा स्थान था जहाँ पर लोहे की बड़ी सी  स्टैंड रखी हुई थी जिसमें हजारों दीपक एक साथ जल रहे थे,।  वहाँ चायनीज व जापानी लोग बहुत घूम रहे थे। एक जापानी लेडी साड़ी पहने थी। हमनें उसके साथ फोटो खिंचवाया। गार्डन में इधर -उधर फोटोग्राफी करने के पश्चात हम लोग बस में बैठ कर हम डायमन्ड  के शो रूम गए। वहाँ पहले एक झांकी दिखाई कि हीरा कैसे निकाला जाता है ,फिर उसे कैसे तराशा जाता है।उसके बाद  हमने डायमन्ड देखे , अन्त में सभी ने कुछ न कुछ खरीदा। वहाँ से सीधे एक इंडियन कॉफी हाउस में पहुँचे जहाँ सुना था कि मसाला डोसा बहुत अच्छा प्राप्त होता है  लेकिन वहाँ बहुत भीड़ थी ।कुछ समय पश्चात हमें बैठने की जगह मिली उसके बाद  उन्होंने हमें पूरी सब्जी दी और वह  पूरी सब्जी ऐसे दे रहे थे  जैसे कि हम फ्री में खाना खा रहे हैं। सर्विस बिल्कुल अच्छी नहीं थी इसलिए अपने होटल का ही खाना याद आने लगा। खाना खाकर अपने होटल में पहुँचे।शाम को हम लोग  जापान की क्रोकरी के शोरूम पर गए। शोरूम बहुत विशाल था और हर सामान बहुत सुंदर लेकिन महंगा भी उतना ही अधिक था। अतः किसी ने कोई सामान नहीं खरीदा । थोड़ा बाजार घूमने गए बाजार से हमने थोड़ी शॉपिंग की जो चीज हमारे यहां एक रुपए में थी वहां दो रुपए की आ रही थी लेकिन फिर भी हमनै थोड़ी बहुत शॉपिंग कर ली ।5 तारीख को सुबह ब्रेकफास्ट करके 9:00 बजे हम लोगों ने कैंडी से प्रस्थान किया। मिस्टर कुमार ने बताया कि हम टी फैक्ट्री जाएंगे कैंडी बड़ा ही खूबसूरत शहर है उसको देखते हुए टी फैक्ट्री जाएंगे ।सड़क के दोनों तरफ खूबसूरत भवन थे। कैंडी में एक यूनिवर्सिटी का प्लेग्राउंड काफी बड़ा था बरगद का झाड़ जो 300 साल पुराना था। विश्वविद्यालय में दोनों तरफ गजब की हरियाली थी और व्यवस्थित ढंग से पेड़ पौधे मन को मोह रहे थे कहीं कहीं घने पेड़ ऊँचाई पर कहीं घाटी में दिखाई दे रही थी बीच-बीच में मकान भी निर्मित है ऊँचे पर्वत पर हरीतिमा के मध्य भवन दिख रहे थे तो कहीं घाटी में पौधे सुंदरता में वृद्धि कर रहे थे। मार्ग के एक तरफ पहाड़ी और दूसरी और घाटी थी ।कैंडी से 20 किलोमीटर दूर क्षेत्र में ऊंची पहाड़ी पर सभी धर्मों के मंदिर विद्यमान थे बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म ,इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म।

 

 

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