माया कौल
माह में मधु का प्रवेश हो रहा है, और जीवन में बसंत का उद्भव, कामदेव ,
अपनी सज धज में मगन है,
उनकी भावनाएं
लता, फूल, पेड़, सब समझते हैं, इसलिए वे अपनी ठिठुरन को भूल, नए पत्ते, बोर और,
फूलों को खिलाने में,
धरा को सजाने में,
उन्मत्त से मगन है,
सबके लिए,
एक सा ही मधुमास है ,
हम मनुष्यों को छोड़कर,
हमारी अभीप्सायें, अक्सर, अतृप्त ही रहती हैं,
हम पौधों को,
बोनसाई बनाने में लगे हैं,,
मन का बसंत खिलने ही नहीं देते, हमने मधुमास की,
परिभाषा ही बदल दी है,
सीखना होगा प्रकृति से,,
तृप्ततता की परिभाषा,,
फिर होगा महल भी मधु मासी,
और ,
झोपड़ी भी मधु मासी,
मधुमास तुम सबके मन,
रंगों से भर देते हो,
तुम्हारे आम के बौरों के नीचे,
हम भी बौराने का आनंद लें,
बस ऐसा ही मन बना दो,,
लता फूल प्रकृति हरित कर दे,
हम सबको तृप्त कर दें,,
फिर तो मधुमास ही मधुमास है, जीवन कितना सुंदर है,
और मधुमास ?
श्रृंगारिक नायिका के,
मधुर हास्य सा,, मदिर,,,।
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