डॉ. दविंदर कौर होरा
(काव्य कुंज (त्रैमासिक पत्रिका की प्रधान संपादक),शिक्षिका, कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त, विविध विषयों पर लेखन में रुचि)
कहीं देर ना हो जाए
अपनी संतान को पैसा कमाने वाले रोबोट और ऐश करने वाली मशीन बनने से रोक लीजिए | उसे एक घर की जरूरत है मकान की नहीं | घर जहां हंसी हो , चुहलबाजी होती हो ,बातें हो , कहकहे हो , एक – दूसरे की परवाह और प्यार हो|
वक्त बदलता है , मौसम बदलता है , ऋतुऐं बदलती हैं और इन सब के साथ ही जरूरतें भी बदल जाती हैं |
आज से कुछ वर्षों पूर्व तक किसी भी साधारण व्यक्ति की जरूरतों में शामिल रोटी, कपड़ा और मकान ही होता था | उसमें भी दो जून की रोटी और नग्न बदन को ढकने के लिए धोती मिल जाए बस… |
सिर तो छप्पर -खपरैल की झोपड़ी में भी ढक लेते थे | सुकून की रोटी प्याज और छांछ के साथ खाकर सुखी रहने वाले मानव को तरक्की की चटनी ऐसी जुबान पर लगी कि वह अंधी दौड़ में दौड़ते – दौड़ते कहां से कहां पहुंच गया |
छोटे – छोटे घरों में माता-पिता की शीतल छाया में बसने वाला परिवार पहले तो गांव त्याग कर शहरों की तरफ लपका | शहरों की चकाचौंध में अंधे हो चुके मानव को बड़े घर, फिर अलग बैडरूम, लिविंग रूम , किचन ,डायनिग रूम सब अलग- अलग बनाने और साफ- सफाई के चक्कर में बूढ़े माता-पिता का सफाया कर डाला | किसी ने घर से निकाला, किसी ने गला घोटा तो किसी ने जिंदा जलाया |
घर में पति- पत्नी और एक या दो संतानें रहने लगीं। लेकिन अभी भी दम घुट रहा था | स्पेस चाहिए.., और इस नामुराद स्पेस के चक्कर में बच्चों को हॉस्टल में छोड़ दिया |
ना मां की ममता ,ना पिता का पहरा | दादा – दादी का लाड- प्यार और बुआ – चाचा का सत्कार करना तो पहले ही नहीं सीखा था ,रही – सही कसर मोबाइल ,इंटरनेट ने पूरी कर दी|
अब बंदे के पास स्पेस ही स्पेस है| शांति ही शांति |
माता- पिता वृद्धआश्रम में बच्चे हॉस्टल में और हम शांति से कभी जुआ खेलते हुए ,दारू पीते हुए,पोर्न फिल्म देखते हुए न्यूज़ चैनल पर बिगड़ती हुई नई जनरेशन को देख कर दुखी हो रहे है |
क्या कर सकते हैं ?
कुछ नहीं |
क्यों …?
क्योंकि यह जनरेशन हमने बोई है | हमने अपने अहंकार, ख्वाहिशों और आजादी की खातिर बच्चों को दादा – दादी के लाड – प्यार से दूर किया | एक बच्चे के चक्कर में हमने उन्हें अकेलापन दिया | पैसे कमाने की हवस ने हमें मानव से मशीन बना दिया और हमने अपने कर्तव्य को ताक पर रख कर दिया | बच्चों को गीता – रामायण के श्लोक याद करवाने की बजाय भद्दे गानों पर अर्धरात्रि तक छोटे -छोटे बेकलेस ड्रैसों में डांस करवाने का आनंद उठाया |
मंदिर सूने होते जा रहे हैं और होटलों और पबों में वेटिंग बढ़ती जा रही है |
जब कोई पुरूष दारु के नशे में किसी महिला को ऊपर से नीचे तक घूर रहा होता है, उस वक्त उनकी बीवी, बहन और बेटी भी कुछ वैसी ही नजरों का सामना कर रही होती हैं | लेकिन तब पुरूष को होश कहां होता है|होश तो आज भी नहीं हैं |
यदि हैं तो ..!
जाइए वृद्धाश्रम लौटा लाइए अपने माता -पिता को |
अपनी संतान को पैसा कमाने वाले रोबोट और ऐश करने वाली मशीन बनने से रोक लीजिए | उसे एक घर की जरूरत है मकान की नहीं | घर जहां हंसी हो , चुहलबाजी होती हो ,बातें हो , कहकहे हो , एक – दूसरे की परवाह और प्यार हो|
झांकिए अपने गिरेबान में…!
घर को घर बनाइये, धर्मशाला नहीं |
जल्दी कीजिये, कहीं बहुत देर ना हो जाए |