स्मृति श्रीवास्तव

 

निवास स्थान- इन्दौर

 शिक्षा- एम ए (इतिहास)

पेशा – एन एलपी काउंसलर एवं लेखिका

उपलब्धियां- हिंदी भाषा डॉट कॉम एवं पिछले ५ सालों से इंदौर लेखिका संघ और इस के अलावा और भी कई साहित्यिक ग्रुप से जुड़ी हुई हूं।

 एक और मीरा,सारा जहां हमारा (राष्ट्रीय कहानी संग्रह), कथा सागर (लघु कथा कहानी संग्रह), हम और तुम (साझा काव्य संग्रह), सिलवटें (लघु कथा संकलन), अंगदान महादान (कहानी संकलन), भारत – नेपाल (लिटरेचर कलेक्शन) राइजिंग स्टेप मैगजीन आदि में रचनाएं छप चुकी हैं

एन एलपी ट्रेंड काउंसलर और लाइफ कोच

              सम्मान नहीं पहचान की हकदार है स्त्री

साक्षात लक्ष्मी स्वरूप हो तुम

नारी नारायणी हो तुम।

लक्ष्मी स्वरूप इस नारायणी को मेरा शत-शत प्रणाम है सनातन धर्म में नारी को देवी का स्वरूप माना है, नासिर्फ माना है।बल्कि नारी को देवी स्वरूप पूजा भी गया है। और भारतीय नारी ने भी आदि अनंत काल से ही इस देवी स्वरूप की गरिमा को सदा बना के रखा है। जो त्याग और समर्पण जो त्याग और समर्पण भारतीय नारी अपने समाज देश और परिवार के लिए करती है वह निश्चित ही किसी साधारण व्यक्ति विशेष के बस की बात नहीं है। किंतु अपने कर्तव्यों को निभाने में और एक मकान को घर और घर में रहने वाले  परिवार के सदस्यों को सम्हालने में वह खुद कहीं खो जाती है।

पति व बच्चों को के सपनों को पूरा करते-करते वह अपने सपनों  से कब दूर हो जाती है पता ही नहीं चलता।

ऐसे में साल में एक दिन महिला दिवस मना लेने से क्या सच में कोई स्त्री प्रसन्न हो सकती है? क्या इससे उसका वजूद उसे वापस मिल जाएगा? क्या इससे उसका सपना पूरा होगा? क्या वह हमेशा के लिए खुश रहेगी ?शत-प्रतिशत इन सवालों का जवाब नहीं ही होंगा।

चंद संस्थानों द्वारा चुनिंदा महिलाओं का सम्मान हर स्त्री को प्राप्त नहीं कर सकता उसके लिए जरूरी है कि उसकी खुद की पहचान हो। वह खुद को जाने और खुद के लिए भी जिए। और इसके लिए जरूरी उसे यह एहसास कराना कि तुम एक औरत हो देवी नहीं ।

इसलिए तुम्हें अपनी जिंदगी जीने का, खूश रहने का और  अपने सपने पूरे करने का पूरा अधिकार है ।और इसके लिए जरूरी है कि हर दिन हर महिला को डेली रूटीन में से कम से कम एक घंटा अपने लिए मिले जिसमें वह सिर्फ वह काम करे जो उसको खुद के लिए करना पसंद हो फिर चाहे वह डांस करें किताब पढ़े सोए या फिर चुपचाप बैठी रहे, पर जो करना है खुलकर करे ।

और सिर्फ और सिर्फ खुद के लिए जिए।और परिवार वाले उस के इस घंटे का सम्मान करें और उसे इस एक घंटे में डिस्टर्ब न करें। ताकि यह एक घंटे का आइसोलेशन उसे हमेशा के अवसाद से दूर रख सके और उसमें ऊर्जा और उत्साह भर सके एक महिला की जिंदगी का यह एक घंटा निश्चित ही किसी भी महिला दिवस के बड़े आयोजन से बढ़कर होगा।


 

1 Comment

  • Deepshikha khare, March 15, 2022 @ 11:22 am Reply

    Very nice ,

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