एक महान महिला को स्वरचित रचना समर्पित
डॉ माणिक वेलणकर
लता”
जिंदगी के हर रंग को स्वर देने वाली स्वर कोकिला
कान्हा की भक्ति हो या राम का सुमिरन,
मीरा की अभिव्यक्ति हो या सीता का क्रंदन,
नई दुल्हन की मनःस्थिति हो या विरह में जलती प्रेमिका का रुदन,
बारिश में भीगी धरती हो या मेघों का हो प्रचंड गर्जन,
कोई नारी पूजा की थाली सजाती हो या खिलौना बेचने वाली का आवाहन,
लता कभी हिन्दुस्तान से विदा नहीं हो सकती
सुबह होती हैं लता की प्रार्थना से,
दोपहर की तीक्ष्णता में शीतल बयार लता की शीतल आवाज से,
शाम की अलसाई धूप भी अठखेलियाँ करती लता के सुरों से,
रात में नींद के आगोश में जाते हैं लता की लोरी से,
“लता” सी बल खाती लता की आवाज सर्द
तुम्हारें सुरों से हम पर चढ़ा हैं सात जन्मों का कर्ज
आप गौर करें तो प्रत्येक उपमा में आप लता जी का कम से कम एक गीत गुनगुना सकते हैं
माणिक : शब्दों के साथ कला का भी बेमिसाल तालमेल