आजकल महिला सशक्तिकरण की जो बात चल पड़ी है और महिला को उत्थान का डंका बजाया जा रहा है…
पर नारी तो पहले से ही सशक्त है। ये बात साबित करने के लिए महिला को स्वयं घर- परिवार, समाज, प्रान्त और राष्ट्र में अपनी पहचान बनानी होगी।
माधुरी व्यास “नवपमा “
महिलाओं के सशक्त हुए बिना सशक्तिकरण सम्भव नहीं है ,मानव का विकास तक अकल्पनीय है। नारी सम्पूर्ण शक्ति का केन्द्र है और इसी के द्वारा विभिन्न बिरादरियों की उन्नति हुई है। यह समाज ,राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संबल प्रदान करती है। नारी वैश्विक विकास चक्र की गति है और यह जितनी विकसित होंगी विकास चक्र की गति तीव्रतम होगी।
सनातन काल से ही नारी धृति, श्रुति, मेघा,स्मृति, वाणी, विद्या, लक्ष्मी और शक्ति के रूप में उत्तपन्न हुई है और नारी के यही रूप शक्ति से सम्पन्न है इसी के फलस्वरूप नारी सदैव ही ऊर्जा से ओत-प्रोत रही है। समय और परिस्थिति की बदलती मान्यताओं ने उसके रूप को ही नहीं स्वरूप को बदला जरूर है परंतु उसके महत्व को सैद्धांतिक रूप से सदा स्वीकार किया गया है किंतु व्यवहारिक रूप से नही। नारी के बिना उत्तपत्ति सम्भव नहीं है और विनाश का यदि कोई शक्तिशाली स्वरूप है तो वो भी प्रकृति के कोप के रूप में नारी का स्वरूप ही है।नारी नारायणी, कल्याणी और काली भी है। आधुनिक समय में पर्वत के दुर्गम शिखर, अंतरिक्ष के सफर और पाताल तक अपनी शक्ति का सम्पादन कर चुकी है और इन सबके लिए प्रशासनिक नीतियों का उसके हक में होना एक महत्वपूर्ण कारण है।
नारी सशक्तिकरण हो अथवा किसी भी क्षेत्र की जागृति हो शिक्षा वह माध्यम है जिसके द्वारा ज्ञान का परिष्कार होता है तथा विवेक की कसौटी पर कसकर निर्णय लिए जाते हैं।यदि नारी शिक्षित है तो वह अपने और अन्य महिलाओं के सर्वांगीण एवं चहुमुखी विकास के मजबूत कदम उठा सकती है। शिक्षा के महत्व से स्पष्ट है कि शिक्षा अन्य वर्ग की अपेक्षा नारी के लिए अधिक आवश्यक है क्योंकि नारी यदि शिक्षित है तो शिक्षा का प्रसार और विस्तार व्यापक क्षेत्र में होगा। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संस्कार के साथ-साथ सभ्यता और व्यक्तित्व के विकास का हस्तांतरण सहज तरीके से हो सकेगा।एक शिक्षित महिला तीन पीढ़ियों और दो कुलों का उद्धार कर देती है।वह एक कुल जिसमे उसने जन्म लिया और वह दूसरा कुल जिसमें विवाह द्वारा उसने पदार्पण किया। एक वह पीढ़ी जिसमें उसने शिक्षा पाई और दूसरी स्वयं की पीढ़ी और तीसरी आने वाली सन्तानों की पीढ़ी तक का उद्धार होता है।शिक्षा में प्रभाव से परिवार में नारी का अस्तित्व बनता है।परिवार के प्रत्येक निर्णय में सलाह और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है, साथ ही परिवार की आर्थिक सहायता करने में भी नारी सक्षम होती है और पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर परिवार को मजबूत आधार प्रदान करती है।परिवार के बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी को वहन कर,उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान कर बच्चों के भविष्य का निर्माण करती है।
समाज के विकास में भी नारी का शिक्षित होना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना पुरुषों का। अशिक्षित समाज सदैव पिछड़ा होता है। रूढ़ियों, कुरीतियों और कुंठित परम्पराओं का खंडन करने में समर्थ नहीं होता और इन सबको ढोते रहने से विकास अवरुध्द हो जाता है। महिलाएँ यदि शिक्षित है तो बदलाव बहुत तेजी से होगा। प्रत्येक मान्यता तर्क और बुद्धि द्वारा स्वीकार की जाएगी और खरी ना होने पर उनका परित्याग किया जा सकेगा। पिछड़े हुए समाज मे महिला का शिक्षित होना अन्य समाजजनों के लिए मिसाल बनता है। शिक्षा के माध्यम से जहाँ नारी ने सामाजिक विकास में योगदान दिया है, परिवार की आर्थिक सहायता की है वहीं स्वयं को भी आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर बनाया है। आज के समय मे नारी शिक्षा पूर्ण करते ही आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनती है ताकि जीवन मे मजबूती के साथ स्वयं के पैरों पर खड़ी हो सके,योग्य होने पर अपना पालन-पोषण स्वयं कर सके।ये सारी परिस्थितियाँ शिक्षा के माध्यम से ही अनुकूल होती है।अशिक्षित नारी भी आत्मनिर्भर हो सकती है परंतु शिक्षा के साथ सोने पे सुहागा है। इससे समस्याओं के समाधान का विवेक उत्तपन्न होता है और समाधान शीघ्र कर पाने से समय, ऊर्जा और शारिरिक शक्ति का ह्रास नहीं होता एवं लक्ष्य की अधिकतम प्राप्ति होती है अतः शिक्षा वह साधन है जो न्यूनतम संसाधनों से उच्चतम लक्ष्य तक पहुँचाती है।अब बात करें पुरुष प्रधान समाज में नारी के आगे बढ़ने के अवसर कैसे मिल सकते हैं तो इसके अवसर नारी को खुद ही निर्मित करना होंगे। समाज की विचारधारा को बदलने के लिए स्वयं के परिवार से शुरुआत करनी होगी। परिवार में पिता, भाई और बेटे की सोच को बदलना होगा ।बेटे को ऐसे संस्कार दिए जाय कि वह स्वयं की बहन और पत्नी को आगे बढ़ने के लिए मार्ग प्रशस्त करें। दकियानुसी मान्यता रखने वाले पुरूष चाहे वो भाई हो ,पिता हो अथवा पति हो इन पुरूषों को वैचारिक परिपक्वता और शिक्षा के द्वारा बदलाव लाने के लिए प्रेरित करें।आगे बढ़ने के अवसर प्राप्त होने पर मार्ग की बाधाओं से पीछे न हटने का संकल्प करें और अन्य महिलाओं को भी प्रेरित करें। यह मशाल स्वयं नारी को नारी उत्थान के लिए अपने हाथों में थामनी होगी और अवसर की प्रतीक्षा करने के बजाय आगे बढ़ने के अवसर निर्मित करने होंगे।