अनिता पाठक

नारी ही इस जग का आधार , इनसे ही है यह सुन्दर संसार .  प्रेम, करुणा में बहती हर दम ममता से पूर्ण होता इनका मन पर शक्ति से होती भर पूर  ,  समय पड़ने पर  दुर्गा रूप मे धरती पर कर उद्यम ये लक्ष्मी बन उभरती है खुद होती शिक्षित तो घर भर को शिक्षित करती है। अत्याचार की अति हो ने पर काली का रुप धरती है  धरती से लेकर आकाश नाप लिया है और पाताल भी कहाँ छोड़ा है। सर्वत्र इसने झण्डे गाड़े और  अपने सशक्त स्वरूप में ये उभरी है।  महिला दिवस पर उनके  हर रंग  के चर्चे     आज ये कलम करती है।

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