Mediapalten ओपन माइक की सदस्यों ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर व्यक्त किए मन के भाव अपने शब्दों में
*हाँ, मैं नारी हूँ *
मित्रा शर्मा
जब भ्रूण बनकर आई थी
दादी के मन में यह बात आई थी
मेरा कुल का चिराग है या मनहूस
मां ने अपनी वेदना छुपाई थी।
मां कहने लगी भगवान से
आने दो इसको संसार में
मेरा हिस्सा है यह अनोखा
सीचूंगी अपनी कोख़ में ।
मैने सोचा आऊंगी जरूर आऊंगी
सब को समझाने के लिए
सबकी सोच को बदलना है
मै अब हार नहीं मानने वाली।
नारी होकर नारी पर ही अत्याचार
कभी होता दुर्व्यवहार
कभी लगते उसपर लांछन
कभी मिलता व्यभिचार।
मैं अहल्या, पत्थर बन तप करने वाली
सावित्री हूँ , सत्यवान को जगाने वाली।
दुर्गा हूँ राक्षस का संहार करने वाली
लक्ष्मी हूँ , धनधान्य करने वाली।
हाँ, मैं नारी हूँ !
हां मैं सरस्वती, वीणावादिनी हूँ
ज्ञान देने वाली
मैं यशोदा हूँ ,कान्हा को दुलारने वाली।
द्रोपदी बन कृष्ण को पुकारने वाली ,
सीता बन सहन करने वाली ।
हां, मैं नारी हूँ ! हाँ, मैं नारी हूँ !!
महू (म प्र)
—
नारी न कभी हारी
सुषमा जयेंद्र दुबे
मैं हूं नारी पर न कभी हारी।
संघर्ष से तपती हुई मैं हूँ एक चिंगारी।
जींवन मेरा ,कभी हो न सका मेरा।
फिर भी पूरी करना होगी, मुझको अपनी पारी।
स्नेह से पगी हूँ मैं, प्रेम में ठगी हूँ मैं।
हर पल नया कुछ करने को आतुर,
दिनभर दौड़ी भागी हूँ मैं
मैं हूँ नारी, नारायणी बनू न बनू,
पर सम्बल पूरे परिवार का हूं।
फिर भी नाजुक लता समान हूं।
सब कुछ होते हुए खाली हाथ रही,
अपने कहीं भी हो सदा उनके साथ रही।
और अंत में कहूंगी जींवन के पथ पर सदा ऐसे ही चलती रहूंगी।
क्योंकि मैं हूँ नारी,मैं हूँ नारी
मैं हूँ नारी।
—
जब सब हमारा है
मीना गोदरे ,अवनि
जमीं भी हमारी आसमां भी हमारा है
पंख भी हमारे हौसला भी हमारा है
रोकेगा कौन गर विश्वास भी हमारा है
जिएंगे जी भर वादा हमसे हमारा है
परिवार जोड़ने का चुनाव हमारा है
सबके सपने पूरे करना सपना हमारा है
रिश्तों को निभाना स्वभाव हमारा है
ममता प्यार लुटाना गुण हमारा है
जननी बनने का अधिकार हमारा है
मातृत्व का पोषण जन्मों से पाया है
संस्कार बीज बोने में सुख हमारा है
संवेदना से जुड़ा हर निर्णय हमारा है
क्यों अपेक्षा हो जब सब हमारा है
मान ,सम्मान, स्वाभिमान हमारा है
खोल दो सब बेड़ियां,नव गढ़ों संसार
समझ हमारी है आत्मविश्वास हमारा है
(अध्यक्ष -अवनि सृजन साहित्य एवं कला मंच इंदौर)
—
सबकी आस
नीति अग्निहोत्री
नारी जीवन की सानी नहीं कोई
सारे जग की शान व जान
नारी प्रेम की वह अविरल धारा
जिसका ओर-छोर पा नहीं सकता कोई।
नारी ही रचयिता सारी सृष्टि की
ब्रम्हांड का अलौकिक व दिव्य तेज
नारी से है ये दुनिया उजियारी
वह प्रतिमूर्ति त्याग व तपस्या की ।
नारी का वर्चस्व हर क्षेत्र में
साहित्य,राजनीति ,खेल या समाज हो
नारी ने सफलता का परचम लहराया
पीछे नहीं है किसी दौड़ में ।
नारी चेतना की अनुगूंज के स्वर
जिनसे बचपन का समय खिलखिलाया है
नारी के बिना घर-गृहस्थी नहीं चले
वह ईश्वर का दिया अद्भुत वर ।
नारी का सम्मान वहां देवताओं का वास
नारी से चमन में होती बहार
नारी तो जीवन की मधुर सुरभि
जो पूरी करती है सबकी आस ।
—
अंतपर्यंत नारी
कुसुम सोगानी
मैं हूँ नारी , है अभिमान
मेरा वजूद है स्वाभिमान
नहीं सहूँगी मैं अपमान
निज का मैं करती सम्मान
नित्य कर रही बडे कार्य
चिंता नहीं , ना करूँ विश्राम
सह लेती मैं कष्ट तमाम
बिन मेरे न घर आवाम
देश से मुझको इतना प्यार
प्यारा मुझको घर संसार
ईश्वर का मैं हूँ वरदान
पर्याय स्त्री में हूँ इंसान
नर की हूँ आजन्म सहायक
संतति की मैं उदर रक्षक
मैं पर्यावरण प्रकृति प्रशंसक
करुणा दया स्नेह की पूरक
मैं हूँ नारी माता भार्या
धैर्या भगिनी हूँ आर्या