Mediapalten ओपन माइक की सदस्यों ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर व्यक्त किए मन के भाव अपने शब्दों में
* हां अब मैं जीने लगी हूं*
वन्दना पुणतांबेकर
हां.अब मैं जीने लगी हूं।
अपने दिल की सुनने लगी हूं।
सुबह की ताजी हवा में बैठ।
सुकून से चाय पीने लगी हूं।
सूरज,तितलियों से बातें करने लगी हूं।
हां,अब मैं जीने लगी हूं।
बच्चों की जिम्मेदारियां निभाकर।
अब खुद बच्चा बन कागज की कश्ती बनाने लगी हूं।
सुबह पहले नाश्ता कर,मैं खुद ही अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखने लगी हूं।
भविष्य की चिंता छोड़,वर्तमान में मौज करने लगी हूं।
हां, अब मैं जीने लगी हूं।
भीड़ में खिलखिलाने लगी हूं।
बीमार होने की फिक्र छोड़। मनपसन्द खाना बेझिझक खाने लगी हूं।
सबकी फिक्र करने के बाद।
अब मै अपनी फिक्र करने लगी हूं।
हां,अब मैं जीने लगी हूं।
मन की उदासियां छोड़
नए गीत सुनने लगी हूं।
बालो का कलर कर।
नए डिजाइनर कुर्ते पहनने लगी हूं।
मन की क्यारी के मुरझाए
फूलों को फिर से खिलाने लगी हूं।
आघुनिक सशक्त नारी बन, नए आयाम अभिव्यक्त करने लगी हूं।
हां. अब मैं जीने लगी हूं।सारे रिश्तो के दायित्वों को निभाकर।
अब,खुद उन्मुक्त गगन में आशाओं के पंख फैलाए उड़ने लगी हूं।
अपने दिल की सुनने लगी हूं।
हां, अब मैं जीने लगी हूं।
—
“ मैं सबला नारी हूँ “
रश्मिता शर्मा
मैं अबोध नादान नारी नहीं हूँ।
मैं दबी सहमी हुई पहचान नहीं हूँ।
मैं आत्मसम्मान से जीती नारी हूँ।
मैं लक्ष्मी,दुर्गा, काली का रूप हूँ।
मैं ही मातृशक्ति कल्याणकारिणी हूँ।
मैं ही आधुनिक भारत की आधुनिक नारी हूँ।
मैं लोपामुद्रा पतिव्रता नारी का गर्व हूँ।
मैं ही विदुषी भारती हर नारी का मान हूँ।
मैं ही जगजननी, जग पालक नारी हूँ।
मैं नारी हूँ न किसी से हारी हूँ।
मैं अस्तित्व रही सदा सृष्टि पर भारी हूँ।
मैं शक्ति स्वरूपा सबकी भाग्य विधाता हूँ।
—
नारी
कुमुद दुबे
उलाहने,
पैदा होते ही
सहकर बड़ी होती
सहती रहती
ता उम्र
पुत्री के रूप मे
बहू के रूप में
सहना और
जीना
देखकर
देखते देखते
काश!
सहना आ जाये
सभी को
और
सहज हो जाय
जीवन्
—
नारी
अर्चना मंडलोई
(1) जीवन का आधार है नारी । आदि का श्रृंगार है नारी ।।
(2) नारी रचती आसमां, घर, देहरी संसार ।
नारी से रिश्ते सजे, नारी रूप अपार ।।
(3) नारी की अस्मिता— है, उसका विश्वास ।
फिर भी देती परीक्षा, सीता सहती वनवास ।।
(4) नारी प्रेम की पराकाष्ठा रही ।
कभी राधा तो कभी मीरा रही ।।
(5) मीरा ने विष पिया, राधा प्रेम का पर्याय ।
प्रेम लूटा तन-मन दिया, दिया जगत को ज्ञान ।।
(6) सप्तपदी के पद संग, सात जनम का साथ ।
सती अनुसुइया बनी, ले ईश्वर का वरदान ।।
(7) नारी हर युग में छली गई ।
कभी सीता, कभी अनुसूया कभी द्रोपदी भेंट चढ़ी ।।
(8) नारी रणचंडी बनी, होती जब तिरस्कार ।
रक्त केस धोती वह, रण में करती चित्कार ।।
(9) नारी लक्ष्मी सरस्वती है, दुर्गा का रूप ।
जीव – जगत सृजित करें, धर-धर रूप अनूप ।।
(10) नारी रचित देह को, देती उसमें प्राण ।
जन्म दिया जिस पौरुष को, उसने ही रौंदे प्राण ।।
(11) पूजी जाति नवरूप में, शक्ति नवरात्र में ।
और क्षण दूसरे ही मारी जाती कोख में ।।
(12) युग गया है, बीत अब, स्वर्णिम इतिहास रचना है ।
पंख खुले हैं, आसमान में, नई उड़ान भरना है ।।
—
नारी हूँ
विनीता दुबे
सृष्टि की सुंदर रचना हूँ ,
कोई प्रवंचना नहीं नारी हूँ ।
लक्ष्मी-दुर्गा सज्जनों के लिए,
दुष्टों हेतु दहकती चिंगारी हूँ ।
सुंदर, कोमल काया की धनी,
सद्गुणों के मिश्रण से हूँ बनी ।
चूड़ी और पायल की खनक,
है व्यक्तित्व में एक चमक ।
मैं कोई दया की पात्र नहीं,
सजावटी वस्तु मात्र नहीं।
अटल हौसलों से भरी हूँ ,
आगे बढ़ने से कब डरी हूँ?
मेरे जन्म पर जो होते दुखी,
ऐसे कुबुद्धि वालों को क्या कहूँ?
अपने अंश को जो वंश न समझे,
उसको भी मैं अपना ही समझूँ।
आँचल-सी कभी लहराती हूँ,
फूलों-सी मैं मुस्कुराती हूँ ।
अपनी वाणी के जादू से ,
मुश्किलों में धीरज बँधाती हूँ ।
भावनाओं में बह जाती हूँ,
पर सीमा में ही रहती हूँ ।
ज़िंदगी की धूप-छांव में ,
अपना हर फ़र्ज़ निभाती हूँ ।
बाहर से हूँ कोमल भले,
पर आँधियों से टकराती हूँ ।
चार-दिवारी में क़ैद बेचारी नहीं,
मैं उड़ने की अधिकारी हूँ ।
जीवन के आदर्शों पर चलकर,
काँटों में राह बनाती हूँ ।
—
नारी तू नारायणी
सुषमा शुक्ला
नारी तू नारायणी,
तू हे जीवनदायिनी।
प्रभु तेरे गुण गाए
तेरे आगे मस्तक झुकाए।
/ नारी तेरा आभार, तू अपने आप में ही है एक चमत्कार
नारी है बहन, पत्नी और माता,,,,
वही तो है बच्चों की संस्कार
विधाता ।
रहती है धरा पर नजर आसमां पर ,,,,
कल्पना की ऊंची उड़ान भर्ती है हर पल💐
नारी दुर्गा, कालीका शारदा ,
के रूप में,,,,
सभी रिश्तो की जान होती है। नारी उसके पिता का गर्व और अभिमान होती है।
ममता के आंचल में लिपटाए मधुर मुस्कान होती है।🌹
अधरों की मुस्कान हो तुम, तुम हो मस्तक का चंदन।
नारी तुम नर का संबल ,,दोनों कुल का अभिमान हो तुम🙏
तुम बिन अर्थहीन है जीवन ।
तुम नर के जीवन का हेतु। अवसाद हृदय से पार उतारे,,,
तुम हो उसके सुख का सेतु।
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