2021 सात सबसे गर्म वर्षों में से एक: WMO
पृथ्वी एक अनूठा ग्रह है। यह सौर मंडल में एकमात्र ऐसा है जिसमें वायुमंडल और महासागर दोनों हैं। इसी कारण जीवन के विकास और फलने-फूलने के लिए आदर्श परिस्थितियों का निर्माण हुआ है। वायुमंडल की तरंगे और महासागरों की धाराएँ दुनिया भर में गर्मी और नमी ले जाती हैं, इसलिए जीवन लगभग हर जगह पनप सकता है। यह तरंगे एवं धाराएँ मौसम भी बनाती हैं।
डॉ. अभिजीत चौहान
जलवायु बदल रही है, ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है
मौसम प्रतिदिन बदलता है, लेकिन अनुमानित पैटर्न में। किसी स्थान विशेष के मौसम का स्वरूप उसकी जलवायु होती है। समय के साथ जलवायु धीरे-धीरे बदलती है, जीवन को नई परिस्थितियों के अनुकूल बनाने के लिए मजबूर करती है, लेकिन हाल ही में जलवायु परिवर्तन की दर तेज़ हो गई है। तापमान जलवायु परिवर्तन के संकेतकों में से सिर्फ एक है। अन्य में ग्रीनहाउस गैस सांद्रता, महासागरीय ताप सामग्री, महासागर पीएच, वैश्विक औसत समुद्र स्तर, हिमनद द्रव्यमान और समुद्री बर्फ सीमा शामिल हैं।अधिकांश मानव इतिहास में दुनिया की जलवायु असामान्य रूप से स्थिर रही है, जिससे सभ्यताओं को बढ़ने और समृद्ध होने में सहायता मिली है। लेकिन जलवायु बदल रही है, ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है, समशीतोष्ण क्षेत्र अधिक गर्मी के थपेड़ों और गंभीर तूफानों का सामना कर रहे हैं, और उष्णकटिबंधीय शुष्क हो रहे हैं।लगभग 1900 में वैश्विक औसत तापमान बढ़ना शुरू हुआ। तब से वे कई बार बढ़े और गिरे हैं, लेकिन प्रवृत्ति ऊपर की ओर बढ़ी है – पहले धीरे-धीरे किन्तु 1970 के दशक के बाद से अधिक तेज़ी से। तापमान में वृद्धि मोटे तौर पर आधुनिक उद्योग के उदय, विशाल शहरों के विकास, कोयले और तेल जैसे ईंधन की बढ़ती मात्रा से मेल खाती है जिसे हम हीटिंग, विद्युत शक्ति और परिवहन के लिए ऊर्जा प्रदान करने के लिए जलाते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के लिए मनुष्य स्पष्ट रूप से दोषी है
1890 के दशक में, स्वीडिश रसायनज्ञ स्वंते अरहेनियस ने निष्कर्ष निकाला कि कम ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण वातावरण में CO2 जैसी गैसों की मात्रा बहुत कम थी जो पिछले कई हिमयुगों का कारण हो सकता है। उन्होंने महसूस किया कि तीव्र औद्योगिक गतिविधि और कोयले जैसे जलने वाले ईंधन दुनिया को गर्म कर देंगे। इस प्रकार स्वंते ने उस कारक की खोज की जो बदलते वैश्विक तापमान के साथ औद्योगीकरण और ईंधन के उपयोग को जोड़ता है।जलवायु परिवर्तन व्यापक और तीव्र है जबकि कुछ रुझान अब अपरिवर्तनीय हैं, जैसा कि 2021 में जारी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट में कहा गया है। इस रिपोर्ट – ‘क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस’ – का उद्देश्य दुनिया भर के नीति निर्माताओं के लिए वैश्विक जलवायु परिवर्तन का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रदान करना है।केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष अगस्त में इस वैश्विक जलवायु परिवर्तन आकलन रिपोर्ट का स्वागत किया था। कई भारतीय वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट को बनाने में सहयोग दिया है, जिसके अनुसार विश्व अभूतपूर्व ग्लोबल वार्मिंग के द्वार पर खड़ा है जिसके लिए मनुष्य “स्पष्ट रूप से” दोषी है। भारत से संबंधित रिपोर्ट में एक अवलोकन दक्षिण एशियाई मानसून के पैटर्न को लेकर है। बढ़ते तापमान से अत्यधिक गर्मी और भारी वर्षा सहित परीसीमित घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि होगी।
ग्लोबल वार्मिंग 2 डिग्री सेल्सियस पार कर जाएगी
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पिछले साल अपने ट्वीट में कहा था कि, “कार्य समूह की रिपोर्ट चिंताजनक है जिसे नकारा नहीं जा सकता।” उन्होंने कहा कि हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत वैश्विक तापन के पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री ऊपर की सीमा के “बहुत निकट” हैं। UN महासभा में 21 जनवरी,2022 को अपनी इस वर्ष की प्राथमिकताओं पर टिप्पणी करते हुए गुटेरेस ने कहा, “1.5 डिग्री लक्ष्य को जीवित रखने की लड़ाई इस दशक में जीती या हारी जाएगी।”इस रिपोर्ट के अनुसार मानव गतिविधियों से पिछले 2,000 वर्षों में अभूतपूर्व दर से ग्लोबल वार्मिंग हुई है। 1850-1900 के बीच मानव क्रियाकलापों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगभग 1.1 डिग्री बढ़ा है। ऐसा भी अनुमान लगाया गया है कि अगले 20 वर्षों में औसतन वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री या उससे अधिक हो जाएगा।IPCC के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इक्कीसवीं सदी के दौरान ग्लोबल वार्मिंग 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगी। जब तक आने वाले दशकों में CO2 और अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में अत्यधिक कमी नहीं आती, पेरिस समझौते-2015 के लक्ष्यों को प्राप्त करना “हमारी पहुँच से बाहर होगा।” रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि हालांकि प्राकृतिक चालक मानव-जनित परिवर्तनों को संशोधित करेंगे, विशेष रूप से क्षेत्रीय स्तरों पर और निकट अवधि में, किंतु उनका दीर्घकालिक ग्लोबल वार्मिंग पर बहुत कम प्रभाव पड़ेगा।
इस बीच, विश्व मौसमविज्ञान संगठन (WMO) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 सात सबसे गर्म वर्षों में से एक था। हालांकि, 2020-2022 का औसत वैश्विक तापमान ‘ला नीना’ घटनाओं के कारण अस्थायी रूप से ठंडा हो गया था, फिर भी 2021 (WMO के द्वारा समेकित छह प्रमुख अंतरराष्ट्रीय डाटासेट के अनुसार) सात सबसे गर्म वर्षों में से एक था।यह छह अंतरराष्ट्रीय डाटासेट सबसे व्यापक आधिकारिक तापमान मूल्यांकन सुनिश्चित करते हैं। इनके आंकड़ों का प्रयोग वार्षिक जलवायु रिपोर्ट बनाने में किया जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को वैश्विक जलवायु संकेतकों के बारे में सूचित करती है। सभी WMO डाटासेट के अनुसार, 2021 लगातार सातवां वर्ष (2015-2021) है, जब वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1 डिग्री अधिक रहा है।ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वातावरण में गर्मी बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग और अन्य दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन के रिकॉर्ड स्तर जारी रहेंगे। वैज्ञानिक बताते हैं कि ‘अल नीनो’ और ‘ला नीना’ प्रशांत महासागर में जलवायु पैटर्न हैं जो दुनिया भर में मौसम को प्रभावित कर सकते हैं।
1980 के दशक से, प्रत्येक दशक पिछले दशक की तुलना में गर्म रहा है। यह रुझान जारी रहने की उम्मीद है। इस समयावधि में 2016, 2019 और 2020 सबसे गर्म वर्ष रहे हैं। 2016 में एक असाधारण रूप से प्रबल अल नीनो घटना हुई, जिसने इस वैश्विक औसत वार्मिंग में योगदान दिया।जहाँ तक जलवायु की परिसीमा का संबंध है, 2021 इसलिए इतिहास रच चुका है क्योंकि इस 1 वर्ष में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कई चरम बिंदुओं के साक्ष्य दर्ज हुए हैं। एक ओर कनाडा में लगभग 50°C तापमान (सहारा रेगिस्तान जैसी स्थितियां) मापी गई तो वहीं बाढ़ ने एशिया और यूरोप के कुछ हिस्सों को तबाह कर दिया, जबकि अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई क्षेत्रों में गंभीर सूखा पड़ा।
(लेखक को पीएमओ प्रोजेक्ट्स-एनएसबी मीडिया फेलोशिप-2022 के लिए चुना गया है)।
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