प्रस्तुति: महिमा वर्मा

कोविड काल अपने साथ जीवन में अनेक ‘न्यू नॉर्मल’ लेकर आया,सबसे बड़ा बदलाव शिक्षा पद्धति में आया या कहें कि करना पड़ा जिससे शिक्षा व्यवस्था का मूल स्वरूप ही बदल गया।लाइव क्लास रूम का स्थान कम्प्यूटर स्क्रीन ने ले लिया है,जो लंच टाइम हमउम्र साथियों के साथ शेयर किया जाता था वह अब घर पर हुआ। स्कूल लाइब्रेरी,खेल का मैदान,एक्सकर्शन और ऐसे ही साथ में की जाने वाली न जाने कितनी ही एक्टिविटीज सिर्फ पाठ्यक्रम ही नहीं शेयरिंग,केयरिंग,टीम भावना,आपसी तालमेल बहुत कुछ सिखाती थीं।शिक्षा व्यवस्था के इस बदले स्वरूप ने बच्चों के मानवीय पक्ष पर कितना प्रभाव डाला यह जाना उन मांओं से  जिनके बच्चे अभी स्कूल में पढ़ रहे हैं,  उन टीचर्स के भी विचार जाने जिन्होंने बच्चों को पहली बार ऑनलाइन पढ़ाया। एक्सपर्ट के तौर पर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापन के अलावा भी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभा चुकीं डॉ उषा गौर ने इस व्यवस्था की विवेचना की।

शिक्षकों का नजरिया

ऑनलाइन से नई तकनीक सीखी लेकिन बौद्धिक विकास उतना नहीं हुआ

डॉ दीपा मनीष व्यास (सहा. प्राध्यापक,श्री वैष्णव विधि संस्थान इंदौर)

संचार क्रांति के इस युग में  नित नई तकनीकें आ रही हैं और हम पूर्ण रूप से उनका उपयोग भी कर रहे हैं । आज जब वायरस ने चारों और अपना आतंक मचाया हुआ है ऐसे में ये  सोशल मीडिया ही और ऑनलाइन शिक्षा पद्धति ही हमारे लिए वरदान साबित हुई है । अगर हम आज की पीढ़ी की बात करें तो वे  इन  तकनीक के सहारे ही अपने भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं । कई उपलब्द्धियाँ इसी के माध्यम से प्राप्त कर  रहे हैं, पर फिर भी जहाँ एक ओर यह वरदान के रूप में सामने है वहीं दूसरी ओर मानवीय मूल्यों का पतन कर अभिशाप भी बनती जा रही है । आज बच्चे दिन भर ऑनलाइन क्लासेस के बहाने सोशल मीडिया पर व्यस्त रहते हैं  , हर वो साइट्स खोल कर देख रहे हैं जिनसे निश्चित ही उनका नैतिक पतन हो रहा है । ऑनलाइन होने वाली परीक्षाएं उतनी उपयोगी साबित नहीं हो रही जितनी होनी चाहिए , बच्चे घर में बैठकर नकल कर के परीक्षा उत्तीर्ण करते जा रहे हैं , फलस्वरूप उनमें सीखने की ललक कम हो रही है साथ ही मानसिक और बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो रहा है । समय रहते इन युवाओं को सही मार्ग पर लाना होगा और राष्ट्र का भविष्य स्वर्णिम बनाना होगा|”

ऑनलाइन अध्ययन विकल्प हो सकता है समाधान नहीं

रश्मि चौधरी ( शासकीय शिक्षक)

कोविड 19 महामारी के दौरान  शिक्षा के क्षेत्र में सभी भयंकर दौर से गुजरे। विद्यालय या तो बन्द ही रहे या 50% स्टूडेंट्स विद्यालय पहुंचे। जब विद्यालय पूरी तरह बंद थे तो ऑनलाइन शिक्षण एक विकल्प के रूप में  विद्यालयों में अपनाया गया परंतु ऑनलाइन अध्ययन समस्या का विकल्प हो सकता है समाधान नहीं, क्योंकि ऑनलाइन अध्ययन की प्रक्रिया में फायदों के साथ  कुछ नुकसान भी  सामने आए। सबसे बड़ा नुकसान जो दिखाई दिया वो  है बच्चों में नैतिकता खत्म हो रही है। बच्चे ऑनलाइन कक्षा को चालू कर कई बार दूसरे टैब में खेल खेलते रहते हैंं   शिक्षकों, माता पिता से वे छिपाते हैं और झूठ बोलते हैं। बच्चे नकल करना सीख रहे है वे गूगल सर्च इंजन पर आश्रित होते जा रहे हैं जिससे उनकी  समझ पर प्रश्न खड़ा हो रहा है। जिस तरह वास्तविक कक्षा में जो उत्साह और आनंद का वातावरण होता है उसे ऑनलाइन अध्ययन में नहीं देखा गया है। कुल मिलाकर बच्चे इंटरनेट पर ज्यादा समय देने से माता, पिता, भाई, बहन, पड़ोसी और दोस्तों से दूर होते जा रहे हैं। वे आभासी दुनिया को ही सच समझने लगे हैं। अतः अब शीघ्र वास्तविक कक्षाओं का लगाना आवश्यक है।

मानवीय मूल्यों का अधिगम ऑनलाइन कक्षाओं के चलते अवरुध्द हुआ

माधुरी व्यास ” नवपमा ” (चोइथराम फाउंटेन स्कूल, इन्दौर)

जीवन में मानवीय गुणों व मूल्यों के आधार का निर्माण बाल्यावस्था में ही हो जाता है। जिससे भविष्य में उत्तम व उत्कृष्ट व्यक्तित्व का निर्माण होता है , इस आधार निर्माण को लंबे समय से चली आ रही ऑनलाइन शिक्षा पद्धति ने प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है , जिसके परिणाम भविष्य में अप्रत्याशित तथा अप्रत्यक्ष रूप से समाज मे परिलक्षित होंगे। बच्चे लंबे समय से कक्षा शिक्षण से दूर रहे।  जब विद्यालय खुलने पर सीमित समय के लिए कक्षा में उपस्थित हुए तो  बातचीत का तरीका, रहन-सहन, उठना-बैठना, यहॉं तक कि अनुशासन के सामान्य नियमों की भी लगातार पुनरावृत्ति की आवश्यकता अनुभव हुई है। जिन मानवीय मूल्यों की सामाजिक लोकव्यवहार में महती भूमिका होती है उनका अधिगम ऑनलाइन कक्षाओं के चलते अवरुध्द हुआ है। आचरण व व्यहार के प्रत्यक्ष ज्ञान से विद्यार्थी लंबे समय से वंचित रहे हैं।नियमबद्ध दिनचर्या में परिवर्तन तथा मोबाइल व लैपटॉप जैसे उपकरणों का अति प्रयोग करने से स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएं भी आये दिन बढ़ने लगी हैं।ऑनलाइन शिक्षा पद्धति स्कूली से शिक्षा के नैतिक पक्षों पर भी असर पड़ रहा है। विशेषतौर पर प्राथमिक शिक्षा पर इसके दूरगामी दुष्प्रभाव अवश्य पड़ेंगे|

मांओं का कहना है:

शिक्षकों व विद्यार्थियों के बीच आपसी तालमेल में कमी आई

सपना सी.पी.साहू “स्वप्निल” (कवियत्री एवं बच्चों की सुपर मॉम)

ऑनलाइन शिक्षा  में  बच्चे घर या अपने मनपसंद स्थान पर बैठकर मोबाइल, कम्प्यूटर,   के माध्यम से अपनी सुविधानुसार शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसमें  बच्चे विद्यालयीन कक्षाओं की तरह अनुशासित नहीं रहते।   विद्यालयीन कक्षाओं में शिक्षकों को जितना सम्मान देते है, इस तरह की कक्षाओं में वे यथोचित सम्मान नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि शिक्षकों व विद्यार्थियों के बीच आपसी तालमेल में कमी आई है। विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति लगन की कमी, शिक्षकों के दिए गए कौशल व प्रायोगिक कार्यो के प्रति अनिष्ठा, गृहकार्य में अरूचि, लेखन पुस्तिका अपूर्ण रखना आदि वृत्तियाँ आम हो गई हैं। निरंतर पढ़ाई ना करने से बच्चों की याददाश्त कमजोर हुई ही है, बच्चे बिना पढ़े इंटरनेट का सहारा लेकर उत्तर पुस्तिका में उत्तर नकल करके लिखने लगे हैं। इंटरनेट खत्म होने पर बच्चे कक्षाओं के प्रति उदासीन रहते हैं, कई बार गेम खेलने के चक्कर में भी बच्चे डाटा बचाने के लिए अधूरी कक्षाएं छोड़ देते हैं। स्कूल में बच्चे जो शारीरिक व अन्य कलाओं से संबंधित गतिविधियाँ जैसे पीटी, योगा, एकल खेल व सामूहिक खेल, चित्रकला, गायन, वादन, भाषण,कलात्मक लेखन आदि  गतिविधियाँ करते है उसके प्रति भी उदासीन हुए हैं।

वर्चुअल क्लास में इंटरएक्शन और शेयरिंग संभव नहीं

गीता ठाकुर (शिपिंग कंपनी में कार्यरत एवं  सुपर मॉम)

ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली ने इस वैश्विक विपत्ति के समय पाठ्यक्रमजनित पढ़ाई  की ज्योत तो नहीं बुझने दी किन्तु इससे शिक्षा के अति महत्वपूर्ण मानवीय  पहलू को कहीं न कहीं बहुत चोट पहुंची है। बच्चों की एक नई पीढ़ी ने तो स्कूल क्या होता है यह अनुभव ही नहीं किया है। बच्चे शेयरिंग जैसी अनेक बातें सीखने से वंचित रह गए हैं जो घर पर अकेले रह कर नहीं सीखी जा सकती । स्कूल में शिक्षकों के प्रति   जो इंटरएक्शन आदर व  स्नेह भाव बच्चों के मन में पैदा करता है वह  वर्चुअल क्लास में नहीं हो पाता। हालांकि यह ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम समय की मांग थी टीचर्स की मेहनत को कम नहीं आँका जा सकता किन्तु सर्वांगीण विकास तो सबके साथ रहकर ही संभव हो पाएगा।समाज में रहने के लिए आवश्यक गुण सामाजिक होकर ही सीखे जा सकते हैं,अकेले नहीं जिसकी पहली पायदान तो स्कूल ही होती है|

स्कूल में  सामाजिक एवं मानसिक दायरा बढ़ता है

अदिति सिंह भदौरिया (लेखिका एवं सुपर मॉम)

कोरोना ने अपना कुप्रभाव हर क्षेत्र में डाला है । जीवन का कोई भी पहलू इससे अछूता नहीं रहा । आर्थिक तौर के बाद इसका सबसे अधिक प्रभाव शिक्षा पद्धति  पर पड़ा है। शैक्षणिक संस्थाओं ने अपने – अपने स्तर पर बच्चों की इस समस्या को सुलझाने का कार्य ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से करने की कोशिश की है परन्तु  उसकी कामयाबी पर कहीं ना कहीं प्रश्नचिन्ह है |शिक्षा मात्र शब्दों का आदान- प्रदान नहीं है , बल्कि  हमारे नैतिक,सामाजिक  जीवन की नींव को मजबूत करने वाला आधार है| स्कूल बच्चों को अपने साथियों के साथ बैठने – उठने एवं टिफिन शेयर करने के माध्यम से  सामाजिक दायरे को बढाने में सहयोग करते हैं | हर बढ़ती कक्षा में  समाज के साथ कैसे जुड़ना बच्चा अपने आप सीखता चला जाता है| बौद्धिकता के साथ- साथ मानसिक एवं  समाजिक स्तर पर बच्चों का दायरा बढ़ता है |स्कूल के खुले वातावरण को जब बंद कमरों  में कैद कर दिया जाए , तो सम्पूर्ण  विकास कैसे और कितना संभव होगा इस बात से हम जैसी मांएं  भली-भांति परिचित हैंं|

   एक्सपर्ट–

स्कूल में सर्वांगीण विकास,  ऑनलाइन शिक्षा से मात्र सैद्धांतिक विकास

डॉ. उषा गौर  (सेवानिवृत) ( 37 वर्ष कॉलेज में शिक्षक )

जब भी कोई नई पद्धति प्रभाव में आती है तो कुछ लाभ  के साथ-साथ कुछ दुष्प्रभाव भी  लाती है। ऑनलाइन शिक्षा में यह ज्यादा देखने में आया। महामारी से पहले कैसे ऊर्जा से भरे बच्चे क्लास में आते थे और शिक्षक उन्हें बार-बार शांत रहने के निर्देश देते थे अब यही बच्चे ऑनलाइन शिक्षा  घरों पर बैठे ले रहे हैं और सभी आराम होने के बावजूद  उदासीन और निरूत्साहित दिखते हैं|

ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के दो पहलू हैं‌ पहला आशावादी जिसमें घर बैठे बच्चों की शैक्षणिक समस्याओं का समाधान किया गया जिसमें बच्चों, पालकों और शिक्षकों सभी ने खूब मेहनत की पर कुछ समय बाद ही इसका दूसरा निराशावादी पहलू सामने आने लगा। लगातार तीन चार घंटे  स्क्रीन के सामने बैठने से‌ बच्चों में  कई समस्याएं प्रारंभ हो गई और वो शारिरिक और मानसिक रूप से प्रभावित होते दिखे। स्कूल में शिक्षण से विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होता है ऑनलाइन शिक्षा से मात्र सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त होता है। शिॅक्षकों द्वारा मिलने वाली नैतिक शिक्षा का ज्ञान एवं साथियों के साथ रहनेपर सामाजिक व्यवहार कोआत्मसात होने का अवसर नहीं मिलता । स्कूली  शिक्षा का अनुशासन घर में नहीं हो पाता जिससे उनमें उद्दंडता आने लगती है वो अनुशासनहीन हो जाते हैं ।  इसलिए अब यह  महत्वपूर्ण है कि बच्चों के शारिरिक व मानसिक पहलू पर ज्यादा ध्यान दिया जाए।

1 Comment

  • सपना सी.पी. साहू "स्वप्निल", February 15, 2022 @ 1:49 am Reply

    बहुत ही सटीक, सत्य, उम्दा प्रश्न, सराहनीय परिचर्चा।

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