अदिति सिंह भदौरिया
मानव जीवन का सबसे सुन्दर पहलू है नव जीवन का आरम्भ , परन्तु यदि नव जीवन डर और खौफ से भागकर शुरू किया जाए तो उस आतंक का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किलहै। इन दिनों पूरी दुनिया में अफगानिस्तान की चर्चाएं,विश्लेषण आदि हो रहे हैं। अफगानिस्तान से आम लोगों की पलायन की खौफनाक तस्वीरें जैसे इतिहास दोहरा रही हैं । 1947 में भारत अंग्रेजों से आजाद तो हुआ किंतु भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त भी पलायान की कुछ ऐसी मिली-जुली तस्वीरें, कहानियां हमने पढ़ीं और देखीं। अंतर इतना था कि उस वक्त लोगों को आजादी थी यह चुनने की कि उन्हें किधर जाना है। लेकिन उस दौर में भी आजादी के नाम पर नरसंहार या फिर कश्मीर से कश्मीरी पंडितो का पलायन खौफ से सना जीवन किसी के लिए भी सुखद अनुभव नहीं रहा होगा। निरंकुश शासन में जनता की भावनाओं का कोई स्थान नही होता है |
भागने को बना लेता भाग्य
अफगानिस्तान पर तालिबान की जीत इस बात का संकेत है कि दुनिया में प्रेम , अनुशासन की कमी लेकिन क्रूरता और वहशीपने की शुरुआत हो गई है | दिल दहल गया देखकर कि अपने कलेजे के टुकड़ों को उनके माता –पिता अपने से इसलिए दूर कर रहे हैं कि बच्चे तो जी जाएं भले वे वहशियों की गोली का शिकार बन जाएं। न जाने कितने लोग अपनी पूरी जमा-पूंजी छोड़कर पलायन करने पर मजबूर हुए कि बस जान बच जाए। अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा बिना लड़े हुआ है | अफगानिस्तान की सेना को अपने देश के लिए अपनी भावनाओं को रखने का मौक़ा ही नही मिला, क्योंकि उनका नेता ही उन्हें बिना अहसास दिलाए कि देश उनके लिए क्या मायने रखता है , वह लोगों को मौत की गर्त में छोड़कर भाग खड़ा हुआ। जिसे भागने की आदत हो जाती है, वह हर जगह से भागता है और आजीवन भागने को ही अपना भाग्य बना लेता है |
जिसकी बंदूक उसकी सत्ता
हर सैनिक के भीतर एक लड़ाका होता है, वह अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर करना जानता है,उसे उस देश के नेता का एक इशारा ही चाहिए होता है, फिर तो उस देश के भविष्य को निश्चित करने का हौसला रखते हैं। लेकिन जब लीडर ही लोगों को अनिश्चितता में छोड़ जाए तो सभी के जीवन पर प्रश्नचिंह लगना स्वाभाविक है | अफगानिस्तान में खौफनाक हकीकत को देखकर अहिंसा परमोधर्म मात्र शब्द ही लगते हैं| हाथ में गुलाब लेकर हम कितने आतंकियों के जीवन को बदल पाए या कितने तालिबानियों के मन को बदल पाएंगे , इस प्रश्न का उत्तर सब जानते हैं | जिसकी लाठी उसकी भैस तो सुना था, लेकिन अब जिसकी बंदूक उसकी सत्ता यह कहना चाहिए।
तालिबान ने विश्व को यह खूंखार सन्देश दिया है कि आज का युग हिंसा और डर का ही है, जो इसको जितना जल्दी समझ जाए उतना ही उसके लिए अच्छा होगा। लेकिन यह अंधकारमय जीवन बच्चों को क्या देगा ।कहते हैं डर के आगे जीत हैं , लेकिन अभी तो डर ही खत्म नहीं हो रहा है। एक ओर वायरस का डर तो दूसरी ओर आतंक का डर। ऐसी स्थिति की तुलना उस कश्ती से की जा सकती है जिसमें कई छेद तो हैं किंतु नौकावाहक मजबूत इरादों वाला हो तो बड़े से बड़े तूफानों से भी निकला जा सकता ही। बस इरादे मजबूत ओर हौसला बुलंद होना चाहिए |