महिमा वर्मा

( मनोविज्ञान एवं अंग्रेजी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएट, हिन्दी और अंग्रेजी पर समान अधिकार रखती हैं। 22 वर्ष देश के प्रमुख शहरों के प्रतिष्ठित  शिक्षण संस्थानों में कार्य कर चुकी हैं,  मुख्यतः चेन्नई में अंग्रेजी विषय की फैकल्टी रह चुकी हैं। विगत 9 वर्षों से ‘स्वास्थ्य रक्षक’ पत्रिका में ‘इंटीग्रेटेड वेलनेस’ से संबंधित विषयों पर नियमित लेखन कर रही हैं साथ ही विभिन्न समाचार पत्रों एवं न्यूज पोर्टल में सम-सामयिक विषयों पर सतत् लेखन जारी।)

-हमारा खानपान हमारी जलवायु के अनुसार है।त्यौहारों पर भी जो पकवान बनते हैं उनका भी स्वास्थ्य और सीज़न की दृष्टि से महत्व है।

त्यौहार के समय में  बनने वाली स्पेशल  मिठाइयाँ,नमकीन जरूर बनाएं,खाएं।जीवन को कार्बोहाइड्रेट,फैट को जोड़ते,गुणा करते, गिनते बिता दें।

कोरोना काल में खुशियों की परिभाषा बदल गयी है। अच्छी हेल्थ और अपनों का साथ ही सही हैप्पीनेस दे सकता है।कोरोना की दूसरी लहर डरावना मंजर दिखा रही है,साधारण सर्दी-खांसी या गले में खराश पेनिक अटैक लाने के लिए काफी है।पर याद रखिये हर छोटी-मोटी स्वास्थ्य संबंधी  परेशानी के लिए ओवर द काउंटर दवाइयों की जरूरत नहीं हैं,हमारी दादी-नानी के नुस्खों को फिर से जीवन में जगह दीजिये,सीज़न में उपलब्ध लोकल ग्रोन फल,सब्जियां खाइए और ये आपके अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी बनेंगी।और हाँ, त्यौहार के समय में  बनने वाली स्पेशल  मिठाइयाँ,नमकीन जरूर बनाएं,खाएं।जीवन को कार्बोहाइड्रेट,फैट को जोड़ते,गुणा करते, गिनते न बिता दें। हमारा खान-पान हमारी जलवायु के अनुसार है।त्यौहारों पर भी जो पकवान बनते हैं उनका भी स्वास्थ्य और सीज़न की दृष्टि से महत्व है।

यह होली के समय का सीज़न चेंज गले की तकलीफें और कफ़ और खांसी की तकलीफें लगभग हर घर में क्या बच्चे और क्या बड़े सभी को घेर लेता है।इससे बचने के लिए एक बहुत अच्छा घरेलू उपाय है जो सदियों से हमारी दादी-नानी अपनाती आयी हैं वह है मुलैठी। इस  बात से शायद हर कोई परिचित न हो कि मुलैठी सिर्फ सर्दी खांसी ही नहीं अनेकों अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव में भी सहायक है साथ ही इम्यून सिस्टम को भी सपोर्ट करती है।

मुलैठी(लिकोरिस)- मुलैठी से हम सब भली-भांति परिचित हैं।यह एक झाड़ीनुमा पेड़  होता है।इसकी जड़ सर्वाधिक उपयोगी होती है|ताजी जड़ मीठी होती है जो कि सूखने के बाद कुछ तिक्त स्वाद की हो जाती है।आयुर्वेद में इसका उपयोग प्राचीन काल से ही व्यापक रूप से होता आ रहा है।मुलैठी में ग्लाइसीमिक एसिड और कैल्शियम अधिक होता है।इसके गुण जड़ उखाड़ने के बाद भी दो वर्षों तक बरकरार रहते हैं। इसमें कई पोषक तत्वों व फ़्लेवोनोइड्स की विस्तृत श्रृंखला शामिल है यह विटामिन ‘बी’ एवं विटामन ‘ई’ का अच्छा स्त्रोत  है।  इसमें फास्फोरस,कोलीन,आयरन,मैग्नेशियम,पोटेशियम,सेलेनियम,सिलिकोन एवं जिंक जैसे खनिज भी पाए जाते हैं।साथ ही इसमें कई आवश्यक फाइटोन्यूट्रीएन्ट्स भी पाए जाते हैं|मुलैठी श्वसन संबंधी समस्याओं,सर्दी-खाँसी,कफ़,पाचन संबंधी रोगों,त्वचा रोगों,आँतों की समस्याएँ और यूरिन इन्फेक्शन की समस्या के निदान में भी लाभकारक है।यह लिम्फोसाइट्स एवं मैक्रोफेज़ के उत्पादन में वृद्धि करने में मददगार है जिससे इम्यून सिस्टम में सुधार हो और माइक्रोबियल हमले को रोका जा सके।मुलैठी शरीर को वायरस,बैक्टीरिया और अन्य संक्रमणों से मुक्त रखने के लिए एक मजबूत,स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

ये सब जानकारियाँ हमारी धरोहर हैं जो एक समय में हमारे जीवन का हिस्सा होती थीं।सो कॉल्ड प्रगति की दौड़ में हम अपने ही खजाने को भुला बैठे।आज जब सम्पूर्ण विश्व कोरोना काल में इस धरोहर से लाभ पा रहा है तो हम भी इस भूली हुई विरासत को फिर से जीवन में स्थान दें और अच्छे  स्वास्थ्य की ओर कदम बढायें|

और हाँ एक जरूरी बात और इस होली गुझिया  बनाना-खाना न भूलें,और कांजी वडा वह तो बहुत जरूरी है।बस इतनी सी बात है यदि कांजी वडा कहेंगे थो थोड़ा ‘कूल’ कम लगेगा और ‘प्रोबायोटिक्स’ कहेंगे तो बढ़िया इम्प्रेशन पड़ेगा।

तो साथियों इसी कामना के साथ कि ये होली वाकई हैप्पी वाली होली हो।मास्क और वैक्सीन ही  कोरोना से जंग में हमारे साथी होंगें।हेल्थ और हैप्पीनेस से हमारा जीवन फिर से जगमगाए।

 Email- mahima8@gmail.com

मो. 7974454830 ,9425154843(what’s app)

 

2 Comments

  • shubhangi, March 27, 2021 @ 2:46 am Reply

    बहुत उम्दा जानकारी महिमा जी।मुलैठी और दालचीनि मे प्रमुख अन्तर बताए ।

  • Aditi singh, March 27, 2021 @ 10:10 am Reply

    सही जानकारी देते हुए आपके शब्द , कलम को नमन।

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