सपना सी.पी.साहू✍
सर्वश्रेष्ठ,अद्भुत वो जीवनसाथी,
संसार में विख्यात उनकी ख्याती।
वो भोले शंभू व अतिसुंदर पार्वती,
अराधकों को देते धन-धान्य,गति-मति।
वे दोनों हर प्रशंसा से परे,
निस्वार्थ प्रेम की परिभाषा गड़े।
शिव ने जब खोई अपनी सती,
पुनः जन्म लिए बनी वो पार्वती।
उमा ने तपस्या की चौदह हजार बरस,
तब दर्शन दिए प्रभु महादेव ने सहर्ष।
कपाली वो गिरीश्वर,राजपुत्री वो आद्या,
मिलकर किया परिस्थिति का सामना।
महलों की ना अंबिका ने परवाह की,
वो कैलाशवासी संग हुई पर्वतवासिनी।
भेंट की गिरिश ने गिरिजा को सोने की लंका,
शिव के बदले त्यागी,भक्त को दे दी वह लंका।
तभी उपासक बजाते मैय्या के नाम का डंका,
जगजननी हर प्रार्थना सुनती ना कोई शंका।
अंबिकानाथ ने अंबिका को दिया दुलार,
अपने में समाहित कर किया अंगीकार।
अर्धनारीश्वर हो शिव की शिवा माना,
अपनी अराध्या शक्ति गौरी को जाना।
एक दूजे बिन दोनों की बातें आधी,
दोनों की प्रीत दीपक और प्रेम बाती।
दोनों जैसे अधरों पर मोहक अनुमोदन,
साथ रहे पुष्पों से आच्छादित भीनी सुगंध।
महाशिवरात्री पर परिणय सूत्र में सुखद बंधन बंधे,
भक्तगण प्रसन्नचित हो “उमापति हर-हर महादेव” कहे।।
इंदौर (म.प्र.)
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