उनका परिचय एक वाक्य या एक शब्द में नहीं दिया जा सकता क्योंकि उनमें गुण एक से ज्यादा हैं। इंदौर की सौम्या व्यास में विविधताएं हैं।अभी तो उनकी प्रतिभा ने राह में कदम रखा है, लेकिन उनके रास्ते खुलते जा रहे हैं। सौम्या रंगमंच की कलाकार तो हैं ही, वेबसीरीज, फिल्मों में भी अभिनय कर चुकी हैं।उनके एकल अभिनय ने भी उन्हें एक अलग पहचान दी है।
युवा रंगकर्मी-फिल्म अभिनेत्री सौम्या व्यास से सुषमा व्यास राजनिधि की बातचीत
— आप अपना परिचय दें? शिक्षा और आपके कार्यक्षेत्र के बारे में बताएं?
…-मैं सौम्या व्यास, इंदौर में ही जन्मी, पली-बढ़ी। डेज़ी डेल्स हायर सेकेंडरी स्कूल से स्कूलिंग करने के बाद मैंने रेनेसां कॉलेज से बी.कॉम. ऑनर्स किया। स्कूल में ही पढ़ाई के दौरान रचनात्मक गतिविधियों में हिस्सा लेती रही। कथक सीखा। मैं पिछले पांच सालों से नाटकों, फिल्मों और अब वेबसीरीज़ के लिए भी अभिनय कर रही हूं। विश्वविख्यात नाटककार अंतोन चेखव और हेनरिक इब्सन, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती जैसे बेहतरीन नाटककारों के नाटकों में मुख्य भूमिकाएं अभिनीत की। इन नाटकों के इंदौर, उज्जैन की कालिदास अकादमी, भारत भवन भोपाल में शोज़ भी हुए और अच्छी समीक्षाएं छपीं। इसके बाद मैंने कुछ शॉर्ट फिल्मों में काम किया जिन्हें कुछ अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में दिखाया भी गया। फिल्म स्टार अक्षय कुमार की फिल्म पेडमैन में उनकी बहन की भूमिका निभाई। यह मेरे लिए बड़ी उपलब्धि थी।
—अभिनय, रंगमंच और फिल्म के क्षेत्र में आपकी रुचि कैसे जागृत हुई?
-हमारे परिवार में साहित्य-संगीत-रंगमंच और सिनेमा के प्रति गहरी दिलचस्पी रही है। मेरे दादा पं. सखाराम व्यास ने बरसों हिंदी-मराठी रंगमंच किया। उन्हें साहित्य- संगीत में गहरी दिलचस्पी थी। पिता रवीन्द्र व्यास को भी साहित्य-संगीत-चित्रकारी-सिनेमा में दिलचस्पी रही है। भाई मनस्वी व्यास भी रचनात्मक गतिविधियों में गहराई से संलग्न हैं। लिहाज़ा परिवार में मुझे साहित्य-कला का एक सहज और प्रेरणादायी माहौल मिला। कॉलेज में यूथ फेस्टिवल के दौरान माइम, स्किट और प्ले किए। यहीं से नाटकों और फिल्मों में दिलचस्पी पैदा हुई। इंदौर-उज्जैन की नाट्य संस्था अभिनव रंगमंडल की एक्टिंग वर्कशॉप में हिस्सेदारी का मौका मिला। इसी वर्कशॉप में मुझे अंतोन चेखव के नाटक द मैरिज प्रपोज़ल की मुख्य भूमिका के लिए मुझे चुन लिया गया। इसके बाद यह सिलसिला चल पड़ा। फिर मैंने प्रयास थ्री डी संस्था के लिए मोहन राकेश के नाटक लहरों के राजहंस में सुंदरी की मुख्य भूमिका की। इसके बाद मोहन राकेश स्मृति सम्मान से पुरस्कृत हृषीकेश वैद्य के नाटक मॉर्फोसिस में मुख्य भूमिका की। विश्व रंगमंच दिवस सन् 2019 में यह नाटक सूत्रधार ने मंचित करवाया था और बाद में फिर इसका मंचन भारत भवन में किया गया। इसके बाद हेनरिक इब्सन के नाटक एन एनिमी ऑफ द पीपुल में अभिनय किया। धर्मवीर भारती के अंधायुग में मैंने गांधारी की भूमिका की और द सेवन सिन्स में भी भूमिका की। शहरयार जो होता कोई और मुख्तलिफ नाटकों में भी प्रमुख भूमिकाएं की। इसके अलावा सूत्रधार की ऑनलाइन एकांकी स्पर्धा में मुझे आधी बेवा नाटक के लिए पुरस्कृत भी किया गया।
–-आपको इस क्षेत्र में क्या चुनौतियां मिली?
-रंगमंच, फिल्मों और वेबसीरीज़ में अभिनय करने में मेरी अभी शुरूआत हुई है। मैं अपने को सौभाग्यशाली मानती हूं कि अपने कॅरियर की शुरूआत में ही मुझे कुछ अच्छे नाटकों, शॉर्ट फिल्म्स, फिल्म और वेबसीरीज़ में अभिनय करने के मौके मिल गए। लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं कि हर तरह के क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र में स्पर्धा बहुत है और चुनौतियां भी। लेकिन मैंने पूरी ईमानदारी से मेहनत की। शहर के रंगकर्मियों के साथ नियमित रिहर्सल की। जो भूमिकाएं मिलीं, उन्हें तमाम कोणों से समझने-महसूस करने की कोशिश की। वरिष्ठ रंगकर्मियों के मार्गदर्शन में मैंने बेहतर अभिनय किया। फिल्म शूटिंग के दौरान टेक के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता था। अपनी ताज़गी बनाए रखना होती थी। रोल भले ही छोटा हो, उसके लिए बहुत मेहनत की। दर्शकों और समीक्षकों ने मेरे अभिनय को सराहा, यह मेरे लिए ऊर्जाभरा और प्रेरणादायी रहा। मैंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) नई दिल्ली में एडमिशन के लिए कड़ी मेहनत की थी और उसकी फाइनल वर्कशॉप में सिलेक्शन हो गया था लेकिन आरक्षण की वजह से मेरा वहां फाइनल सिलेक्शन नहीं हो पाया जबकि मुझसे कम मार्क्स लाने के बावजूद 13 स्टूडेंट्स राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में प्रशिक्षिण ले रहे हैं।
–इस क्षेत्र में आपको आगे बढ़ाने में किसका योगदान रहा? आपके प्रेरणास्त्रोत कौन है?
-प्रथमत: तो मुझे आगे बढ़ाने में मेरे पिता रवीन्द्र व्यास और मां मंजु व्यास की भूमिका रही है क्योंकि उन्होंने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया, आत्मविश्वास बढ़ाया और मुझे घर में सेहतभरा रचनात्मक माहौल दिया। जहां तक प्रेरणा की बात है, हमारे जीवन में हर दौर में अलग-अलग लोग और शख्सियतें प्रेरणा का काम करती हैं। मैंने अपने दादा पं. सखाराम व्यास से प्रेरणा ली है।
– लड़कियों और महिलाओं को इस क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए क्या करना चाहिए?
..मुझे लगता है कोई भी क्षेत्र हो, इसमें आपकी मेहनत और प्रतिभा ही काम आती है। मैं ज़्यादा बड़ी बड़ी बातें तो नहीं करना चाहती लेकिन यह बहुत विनम्रता से कहूंगी कि यह मायने नहीं रखता कि आप लड़की हैं, महिला या पुरुष हैं, रचनात्मक क्षेत्रों में तो आपकी प्रतिभा और योग्यता ही काम आती है। हां, यह हो सकता है कि किसी को अच्छे अवसर मिलें और किसी को ना मिलें लेकिन सिर्फ प्रतिभा ही आपको आगे ले जा सकती है। रंग-रूप और जेंडर मायने नहीं रखता। और अब तो इतने सारे प्लेटफॉर्म्स हैं कि आपमें योग्यता है तो आपके लिए अवसर के हज़ार मौके हैं।
– आप आगे और क्या लक्ष्य हासिल करना चाहती है?
. लक्ष्य तो मेरा यही है कि चाहे रंगमंच हो या फिल्म्स हों या वेबसीरीज़, मैं बेहतर से बेहतर काम करना चाहती हूं क्योंकि काम मिलेगा तो ही आप अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं। फिल्मों के प्रति अपने आकर्षण को मैं छिपाना नहीं चाहती। चाहती हूं कि मुझे फिल्मों में काम करने के मौके मिलें।