विचारणीय…
माया कौल
अब उस समाचार को बताने का कोई औचित्य मुझे नजर नहीं आता.. लड़की का नाम कुछ भी हो सकता था और घटना भी कहीं भी हो सकती थी। चिंता तो इस बात की है कि एक 23 साल की पढ़ी- लिखी लड़की अपने उन्नत मस्तिष्क और निरोग स्वस्थ शरीर की दुश्मन कैसे हो सकती है।
और उस पर सितम ये कि बाकायदा वीडियो बनाकर पूरी बात की,मां पापा खूब अनुरोध करते रहे सब सुना सबका जवाब भी दिया,और फिर ऐसा निर्णय नदी में कूद कर अपनी जान दे दी..क्यों। यह उसकी हार या मानसिक दुर्बलता या निराशा कि अब कुछ नहीं हो सकता…।
हमारी युवा सोच तो पत्थर से भी पानी निकाल लेने में ,अतिशय गंभीर परिस्थिति को भी बदलने में सक्षम मानी जाती रही है,उसको क्या होता जा रहा है।
हमारी भावनाएं इतनी आहत हो जाती हैं कि न मां पापा की चिंता करे न उनके भरोसे की न उनके प्यार की,इस पर गम्भीर विचार करने की आवश्यकता है।विपरीत परिस्थितियां हर एक के जीवन में आती हैं और समाज कितना ही उन्नत क्यों न हो परिस्थितयों का तो सामना सबको करना होता है,,,दरअसल वो हमें मानसिक रूप से सक्षम बनाती है।युवा जीवन का चला जाना परिवार को तोड़ देता है।
तो जरूरी यह है कि पढ़ाई के साथ- साथ हमें युवाओं को मानसिक रूप से सक्षम बनाने का कोर्स भी अनिवार्य रूप से प्रारंभ करना होगा ताकि फिर आयशा सी कोई बच्ची स्वयम अपनी जान लेने की कल्पना भी न करे भले ही कितनी भी विपरीत परिस्थिति क्यों न हो।
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