लोकसभा टीवी और राज्यसभा टीवी का अब मर्जर कर दिया गया है। संसद की कार्यवाही का प्रसारण अब ‘संसद टीवी’ चैनल पर किया जाएगा । 2011 में राज्यसभा टीवी की जब शुरुआत हुई तब प्रखर पत्रकार राजेश बादल उससे जुड गए थे। करीब सात साल तक वे वहां रहे। अब जब राज्यसभा टीवी बंद होने की खबर आई तो उन्होंने राज्यसभा टीवी की यादों को साझा किया जो वे पूर्व में व्यक्त कर चुके थे…
यह टिप्पणी मैने राज्य सभा टीवी चैनल के दो बरस पूरे होने पर लिखी थी
छोटे परदे पर नए चैनल के दो साल
वो एक सरकारी कोठी थी । ठीक –ठाक से पांच कमरे और एक दो छोटे –छोटे बरामदे । आगे एक छोटा और पीछे थोड़ा बड़ा सा लॉन । चार छह कुर्सियां ,दो चार पुरानी मेज़ें और एक टेलिफ़ोन । दो कम्प्यूटर भी थे । हम तीन लोग थे । यहाँ से हमें भारत की संसद के लिए दूसरे चैनल की शुरुआत करनी थी।दिन बीते..फाइलें सरकने लगीं । यूं तो कई नए चैनल शुरू करने और उन्हें आकार देने का अवसर मिला था,लेकिन संसद के लिए एक सिस्टम से बंधे चैनल को जन्म देने की प्रसव पीड़ा का जो अनुभव मिलने जा रहा था,उसकी तो हमें कल्पना भी नहीं थी ।
चंद रोज़ बीते । फाइलों को पंख लगे । प्रस्ताव उड़ने लगे । हमें ज़रुरत थी एक ऐसी टीम की,जो पेशेवर होने के साथ चैनल की गंभीरता और सरोकारों को समझती हो । नियम और क़ानून हमें इस टीम के चुनाव में अपने तेवर दिखा रहे थे । फिर भी आख़िरकार बाज़ार में विज्ञापन आ ही गया । हज़ारों आवेदन । उन्हें छांटने का काम ऐसा था,मानो हज़ारों गुलाब के फूलों में से हर फूल की खुशबू की अलग अलग पहचान करना । आवेदन छांटे गए ।कुछ पदों पर कई दिन तक साक्षात्कारों का सिलसिला चला।लेकिन कुछ पद ऐसे भी थे जिन पर संख्या इतनी अधिक थी कि साक्षात्कार संभव ही नहीं थे । लिहाज़ा कई स्कूलों में बाक़ायदा लिखित परीक्षा हुई ।हज़ारों आवेदक बैठे ।कम्प्युटर के ज़रिए मूल्यांकन हुआ । भारतीय टेलिविजन पत्रकारिता के इतिहास में संभवतया यह पहला टेस्ट था ।
मुट्ठी भर लोग थे उन दिनों । बमुश्किल साठ – सत्तर । एक चैनल चलाने के लिए यह संख्या कोई मायने नहीं रखती । लेकिन ज़िद थी कि ज़िम्मेदार पत्रकारिता और सरोकारों को लेकर संवेदनशील चैनल जल्द से जल्द शुरू करें। अगस्त दो हज़ार ग्यारह के आख़िरी हफ्ते में एक दिन हम सब अपने बारह वर्ग फुट वाले कमरे में ठसाठस भरे मैराथन मंथन कर रहे थे ।हमसे पूछा गया था कि क्या हम एक महीने में चैनल शुरू कर सकते हैं । सारे के सारे हैरान । न कैमरे न एडिटिंग न ग्राफिक्स न स्ट्रिंगर नेटवर्क न टेक्निकल सपोर्ट न बैठने की व्यवस्था ,न गाड़ियां न स्टूडियो यहाँ तक कि चाय और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं भी एक चैनल जैसीं नहीं थीं । ज़्यादातर लोग संसाधनों और कठिनाइयों की बात कर रहे थे । कहते हैं –जहाँ चाह वहां राह और टीम से चर्चा कर मैंने हाँ कर दी । देखते ही देखते सब साथियों ने अपनी अपनी भूमिका खुद तय कर ली और एक महीना पूरा होने से पहले ही धड़कते दिल से हमने दो घंटे का प्रसारण शुरू कर दिया । तय तो यह हुआ था कि सिर्फ़ पन्द्रह मिनट का ही समाचार बुलेटिन निकालेंगे ,लेकिन पहले ही दिन यह आधा घंटे निकल गया । हम सब पीसीआर में खड़े खुशी के मारे करीब करीब चीखने लगे थे ।हमने तय किया कि अब आधा घंटे ही बुलेटिन जाया करेगा ।चंद रोज़ में ही यह चार घंटे और फिर आठ घंटे का प्रसारण शुरू हो गया । देखते ही देखते कब यह चौबीस घंटे का हो गया ,पता ही नहीं चला ।
मैं जानता हूँ । बताऊंगा तो आप यकीन नहीं करेंगे कि यह चैनल हमने किराए की पांच कैमरा यूनिटों ,पांच एडिटिंग मशीनों से शुरू किया था । ग्राफिक्स मशीने तो थी ही नहीं । दो कम्प्यूटर में कुछ ग्राफिक्स सॉफ्ट वेयर डाले थे । बस । शायद सात आठ गाड़ियां और एक किराए का स्टूडियो । मौटे तौर पर यही बुनियादी संरचना थी । समय पंख लगाकर उड़ता रहा और हमारा चैनल भी अपने छोटे छोटे नरम –नए –नवेले पंखों से उड़ान का अभ्यास करता रहा । कुछ नए शो शुरू करने का फ़ैसला हुआ । रोज़मर्रा की देश विदेश की घटनाओं पर देश देशांतर और अंगरेजी में बिग पिक्चर चल निकले । लाइव करते थे ।फीडबैक अच्छा मिला । मीडिया की भूमिका और उसके सरोकारों पर केन्द्रित मीडिया मंथन भी दर्शकों ने सराहा । हिंदी और अंग्रेज़ी की सांस्कृतिक पत्रिकाओं –सिलसिला और कलर्स आफ इंडिया को भी लोगों ने हाथों हाथ लिया । बाद में लगा कि हिंदी में सिलसिला अलग से दिखाने के बजाए इसी चरित्र के नए कार्यक्रम क्यों न दर्शकों के लिए लाए जाएँ । इस तरह आज चैनल के बेहद लोकप्रिय दो नए कार्यक्रम –शख्सियत और गुफ़्तगू परदे पर नज़र आने लगे ।
टीम इतने उत्साह में थी कि उन्ही संसाधनों में किसी तरह अपने दर्शकों के लिए नए नए कार्यक्रम पेश करने के बारे में दिन रात बहस हुआ करती थी । हमें लग रहा था कि देश के दर्शक शायद राज्यसभा की कार्यवाही दिखाए जाने को एक नीरस प्रसारण मानेंगे ,लेकिन ये हमारा भ्रम था । जब न केवल कार्यवाही ,बल्कि संसद में होने वाले कामकाज को लेकर बनाए गए कार्यक्रम बेहद पसंद किए गए । लोगों को पता चला कि जब संसद का सत्र नहीं होता तो भी भारत के राष्ट्रीय विषयों पर सदन की अनेक समितियां लगातार मंथन करतीं हैं । संसद के साठ साल पूरे होने पर विशेष कार्यक्रमों की श्रंखला काफ़ी लोकप्रिय रही । बहुत से दर्शकों को पहली बार पता चला कि संसद अपने नए सांसदों की ख़ास ट्रेनिंग भी कराती है । राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया को देश ने पहली बार परदे पर देखा । राज्यसभा टेलीविजन के कैमरों की आँखों के ज़रिए ।इस दौरान दोनों शिखर पदों पर काम कर चुके महान राजनेताओं पर केन्द्रित श्रंखला को लोग अभी तक याद करते हैं । जब हम संसद के रिकॉर्ड से निकालकर वर्षों पुरानी बहसें दिखाते हैं तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक – दर्शकों की मिली जुली प्रतिक्रियाएं मिलतीं हैं ।
भले ही संसाधन सीमित हैं ,लेकिन हमारे हौसलों की उड़ान असीमित है । आज दो दर्ज़न से ज्यादा शो और ख़ास प्रोग्राम राज्यसभा टेलिविजन की पहचान बन चुके हैं । यू टयूब के साथ हमारे करार ने समन्दर पार लोकप्रियता की मिसाल कायम की है । अमेरिका, कनाडा, योरप,आस्ट्रेलिया और अनेक अफ्रीकी देशों से हमें मिल रही प्रतिक्रियाएं इसका प्रमाण हैं । लेखकों,कवियों,शायरों और पत्रकारों के बारे में श्रृंखला – उनकी नज़र उनका शहर ख़ासी चर्चित है ।( यह बाद में विरासत हो गई ) अभी तक इसमें रस्किन बांड,साहिर लुधियानवी, मजरूह सुल्तानपुरी नीरज,महाकवि प्रदीप ,खुशवंत सिंह,राजेन्द्र माथुर,सुरेन्द्र प्रताप सिंह और अमृता प्रीतम जैसी विभूतियों पर ख़ास प्रोग्राम हो चुके हैं । यू – टयूब पर लाखों की तादाद में इसे देखा जा रहा है । अन्य पसंदीदा कार्यक्रमों में तरकश,सरोकार,इट्स माय लाइफ़ ,स्पेशल रिपोर्ट , महामहिम राज्यपाल ,टु द पाइंट ,संसदीय वाद विवाद , क्वेस्ट ,स्टेट आफ द इकॉनोमी,पॉलिसी वाच ,जनसंसद और गोष्ठी शामिल हैं । गोष्ठी तो राज्यसभा टेलिविजन का एक ऐसा कार्यक्रम है जो कम्युनिटी रेडिओ नेटवर्क के साथ मिलकर किया जाता है । अपने ढंग का यह अनूठा प्रयोग है ।
हमारा रात आठ बजे का न्यूज बुलेटिन गाँवों ,क़स्बों और शहरों में समान रूप से पसंद किया जाने लगा है ।इस बुलेटिन में पहली खबर पर लोगों की प्रतिक्रिया इतनी सकारात्मक थी कि अगले दिन सुबह हमें इस हिस्से को दोबारा दिखाने का फ़ैसला लेना पड़ा । भारतीय चैनल इंडस्ट्री में शायद ही ऐसा कोई दूसरा उदाहरण हो ,जब खबर का अगले दिन पुन:प्रसारण किया जाता हो । रात के बुलेटिन के बाद सुबह के बुलेटिन की मांग होने लगी । सुबह के बुलेटिन में कुछ बुनियादी बदलाव किए गए । आज यह बुलेटिन घर घर में देखा जाने लगा है । प्रतियोगी परीक्षाओं में क़ामयाब अनेक नौजवान जब अपनी सफलता का श्रेय राज्यसभा टेलिविजन को देते हैं तो न्यूजरूम में हमारे साथी उत्साहित और खुश होते हैं । इसी उत्साह का नतीज़ा है कि राज्यसभा टेलिविजन ने अपने चुनावी कवरेज को बहुरंगी और निष्पक्ष बनाया है। उत्तरप्रदेश , हिमाचल,पंजाब,गुजरात, मेघालय, नगालेंड ,त्रिपुरा और कर्नाटक राज्यों से हमारा चुनाव कवरेज सराहा गया है । लोगों के सामने इन राज्यों के वास्तविक मुद्दे उभर कर आए और राजनीतिक दलों ने उन पर ध्यान दिया।रचनात्मक आलोचना में यह चैनल कभी पीछे नहीं रहा । हमारे पेशेवर पत्रकार बिना फ़िक्र किए विश्लेषण करते हैं । समाचारों और सम सामयिक कार्यक्रमों में दर्शक पक्ष और प्रतिपक्ष की तीखी आलोचना का आनंद उठाते हैं । कई बार सुनने को मिलता है कि आप यूपीए का पक्ष लेते हैं तो दो चार दिन बाद यह संदेश भी मिलता है कि आप तो एनडीए के साथ हैं । इसका अर्थ हम यही लगाते हैं कि इस तरह की राय चैनल की निष्पक्षता का सुबूत है ।बहरहाल पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक बार फिर हमारी टीम तैयार है । इसके बाद लोकसभा चुनावों में भी दर्शक धमाकेदार चुनावी कवरेज देखेंगे ।
अब तक के ब्योरे से अगर आप यह सोच रहे हैं कि हम खुद अपनी पीठ थपथपा रहे हैं तो माफ़ कीजिए आप ठीक नहीं सोच रहे हैं । निवेदन यह है कि एक सप्ताह लगातार इस चैनल को देख लीजिए । फिर आप पाएंगे कि जो हमने कहा है ,वो सच है । हाँ हम किसी सतयुगी आदर्श चैनल का दावा भी नहीं करते । गलतियाँ भी हम करते हैं । हमारे पेशेवर पत्रकारों में भी गलाकाट प्रतिस्पर्धा है और हमारी न्यूज रूम पालिटिक्स भी ज़बरदस्त है । ऐसे ऐसे दांव पेच चलते हैं कि आप दंग रह जाएं –क्यों न हों । आखिर हम भारतीय लोकतंत्र की सर्वोच्च पंचायत के चैनल हैं , जहाँ हमारे तमाम दलों के राजनेता इन दांव पेंचों को सीखते हैं और आजमाते हैं । इतनी छूट तो हमें मिलनी ही चाहिए । हाँ यह वादा हम ज़रूर करते हैं कि दर्शकों के प्रति हम अपने सरोकारों को नहीं भूलेंगे । बस हमारे साथ रिश्ता बनाए रखिए ।
राजेश बादल
कार्यकारी निदेशक (राज्य सभा टेलिविजन)
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और… वह विदाई पत्र ,जो चैनल से अलग होते समय लिखा था
नमस्ते ! राज्य सभा टीवी
एक न एक दिन तो जाना ही था ।हाँ थोड़ा जल्दी जा रहा हूँ ।सोचा था जून जुलाई तक और उस चैनल की सेवा कर लूँ , जिसे जन्म दिया है ।लेकिन ज़िंदगी में सब कुछ हमारे चाहने से नहीं होता।कोई न कोई तीसरी शक्ति भी इसे नियंत्रित करती है ।आप इसे नियति,क़िस्मत,भाग्य या भगवान–कुछ भी कह सकते हैं ।सो यह अवसर फ़रवरी में ही आ गया ।
अजीब सा अहसास है ।सात साल कैसे बीत गए,पता ही नहीं चला।लगता है कल की ही बात है ।कुछ भी तो नहीं था ।शून्य से शुरुआत ।कितनी चुनौतियाँ ,कितने झंझावात । कभी लगता –चैनल प्रारंभ नहीं हो पाएगा ।लोग हँसते थे – संसद के चैनल में क्या दिखाओगे ? सदन की कार्रवाई ? कौन देखेगा ? राज्यसभा टीवी में नया क्या होगा ? कितनी आज़ादी मिलेगी ? वग़ैरह वग़ैरह ।
मैं और मेरे साथी निजी क्षेत्र के चैनलों या अख़बारों से आए थे ,इसलिए संसद की कार्रवाई के कवरेज का अनुभव तो था ,लेकिन संसद के नियमों के मुताबिक़ अन्दरूनी कामकाज में अनाड़ी ही थे । फिर भी क़ायदे – क़ानून की मर्यादा और सीमित संसाधनों से आग़ाज़ तो कर ही दिया । यह पहले दिन से ही साफ़ था कि हम संसद के चैनल हैं । सदन में जिस तरह सभी दलों को अपनी आवाज़ रखने का अधिकार और अवसर मिलता है ,उसी तरह हमने राज्यसभा टीवी को भी सच्चे अर्थों में संसद का चैनल बनाने का प्रयास किया ।हर राजनीतिक दल को समुचित प्रतिनिधित्व दिया और बिना किसी पूर्वाग्रह के हर लोकतांत्रिक आवाज़ को मुखरित किया ।
अनेक साथी पत्रकारिता में सौ फ़ीसदी निष्पक्षता की बात करते हैं ।पर मेरा मानना है कि सौ फ़ीसदी निष्पक्षता नाम की कोई चीज़ नहीं होती ।निजी चैनलों में भी नहीं । ऐसा कौन सा चैनल या अख़बार है ,जिसका कोई मैनेजमेंट न हो । अगर मैनेजमेंट है तो उसके अपने हित होंगे ही । कोई भी समूह अख़बार या चैनल धर्मखाते में अपनी कमाई डालने के लिए शुरू नहीं करता । राज्यसभा टीवी के मामले मे भी ऐसा ही है । हाँ सबको आप कभी संतुष्ट नहीं कर सकते । जिस दल की सरकार होती है ,उसके सदनों मे नेता होते हैं , प्रधानमंत्री होते हैं –उन्हें आपको अतिरिक्त स्थान देना ही होता है । चाहे यूपीए की सरकार रही हो या फिर एनडीए की ।यही लोकतंत्र का तक़ाज़ा है । हाँ अगर आप सिर्फ़ बहुमत की बात करें और अल्पमत को स्थान न दें तो यह भी लोकतांत्रिक सेहत के लिए ठीक नहीं है । हमने भी यही किया और लोगों के दिलों में धड़के ।आप सब लोगों ने इस चैनल पर अपनी चाहत की बेशुमार दौलत लुटा दी ।
अब जब मुझे इस चैनल से विदा होने का फ़ैसला भारी मन से लेना पड़ रहा है तो दुख के साथ एक संतोष भी है । इस चैनल को जिस ऊँचाई तक पहुँचा सका वह भारत के टेलिविज़न संसार का एक बेजोड़ नमूना है । हमने अच्छे कार्यक्रम बनाए , अच्छी ख़बरें दिखाईं और सार्थक तथा गुणवत्ता पूर्ण बहसें कीं । न चीख़ पुकार दिखाई और न स्क्रीन पर गलाकाट स्पर्धा मे शामिल हुए । चुनावों को हमने हर बार एक नए ढंग से कवरेज किया । कभी मुझे कट्टर कांग्रेसी कहा गया तो कभी अनुदार राष्ट्रवादी और दक्षिणपंथी । मुझे ख़ुशी है कि मैंने अपने को सिर्फ़ एक प्रोफ़ेशनल बने रहने दिया ।
अभी भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोचा है । आपको मेरी नई पारी के लिए शायद कुछ दिन प्रतीक्षा करनी पड़े । इसलिए अपना प्यार बनाए रखिए । मैं अभी कुछ दिन ख़ामोश रहना चाहता था,मगर मीडिया में लगातार आ रही ख़बरों के कारण आपसे दिल की बात कहना ज़रूरी समझा । आपके दिल और दिमाग़ में जगह मिलती रहेगी तो मुझे ख़ुशी होगी । राज्यसभाटीवी के बारे में कुछ और अच्छी बातें आगे भी करता रहूँगा ।
आप सभी के प्रति अत्यंत सम्मान के साथ !
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