–मध्य प्रदेश की राज्य मछली है महाशीर मछली (‘टाइगर ऑफ वाटर’)
–स्व. अनिल माधव दवे के बाद पद्मश्री भालू मोंढे इस प्रजाति को बचाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं
बेहद खूबसूरत और ‘टाइगर ऑफ वाटर’ कही जाने वाली महाशीर मछली की विश्व में 47 प्रजातियां हैं, इसमें भारत में 15 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भी कुछ विलुप्त प्राय: हो चुकी हैं। महाशीर की खास बात यह है कि ये मछली जलीय जैव विविधता संतुलन बनाने की सबसे अधिक क्षमता रखती है। पूर्व पर्यावरण मंत्री स्व. अनिल माधव दवे ने व्यक्तिगत रुचि लेकर महाशीर के संरक्षण की योजना बनाई थी, लेकिन उनके निधन के बाद यह योजना कारगर नहीं हो पाई। स्वर्गीय दवे के अधूरे कार्य को पूरा करने का जिम्मा जाने माने पर्यावरणविद नेचर वालेंटीयर्स के संस्थापक अध्यक्ष पद्मश्री भालू मोंढे ने उठाया है। उनके इसी अभियान को लेकर पद्मश्री भालू मोंढे से विजय रांगणेकर की विशेष बातचीत ……….
प्रश्न–महाशीर को राज्य मछली का दर्जा क्यों दिया गया है। ऐसी क्या खासियत है इस मछली में?
जवाब–महाशीर मछलियां (Mahseer Fish) जलीय जैव विविधता संतुलन बनाने की सबसे अधिक क्षमता रखती है। महाशीर नर्मदा नदी में सबसे अधिक देखी जाती हैं
प्रश्न–महाशीर के निरंतर घटने के क्या कारण है?
जवाब–बिगड़ते पर्यावरण और नर्मदा नदी के प्रवाह में आई कमी के कारण महाशीर को प्रजनन के लिए पर्याप्त माहौल नहीं मिल सका। इसी वजह से महाशीर की संख्या लगातार कम होती गई। दूषित पानी में यह जिंदा नहीं रह पाती है। महाशीर मछली प्रवाहित स्वच्छ जल धाराओं में ही प्रजनन करती है। नर्मदा में लगातार होने वाला रेत खनन, नदियों में मछली के अवैध शिकार, मछलियों को पकड़ने के लिए बिस्फोटकों का प्रयोग और बनने वाले बाँध भी महाशीर की संख्या घटने की एक वजह है।
प्रश्न–क्या महाशीर को बचाने के लिए प्रदूषण का आकलन किया जाता है?
जवाब–मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर छह माह में नर्मदा के प्रदूषण का आंकलन करता है। आकलन में नर्मदा के जल को कई स्थानों पर ‘ए ‘ ग्रेड और बिना किसी उपचार के पीने योग्य बताया गया है। लेकिन उक्त जल में भी महाशीर का अस्तित्व नहीं बच पाया है। यदि जल वाकई साफ होता तो महाशीर के अंडे पानी में जरूर नजर आते।
प्रश्न–महाशीर की संख्या बढ़ाने के लिए आपकी क्या योजना है?
जवाब–महाशीर की आबादी नर्मदा में सन् 1950 में कुल मछलियों की 30 प्रतिशत थी जो अब घटकर मात्र 2 प्रतिशत रह गई है। यह मछली सुनहरे पीले रंग की होती है, इसका वजन 15 से 50 किलो व लम्बाई एक फीट से तीन फीट तक होती है। महाषीर का प्रजनन काल अप्रैल से सितम्बर तक होता है। पर्यावरणविद्, प्राणी शास्त्री और विशेषज्ञ इस मछली को बचाने में जुटे हैं। बड़वाह के निकट पीताम्बली ग्राम के पास नर्मदा नदी में कृत्रिम और प्राकृतिक प्रजनन का माहौल देकर महाशीर को बचाने और वृद्धि की हमारी योजना है। प्राकृतिक प्रजनन से महाशीर के हजारों अंडों में से बच्चे होने पर करीब तीन माह बाद इन्हें नर्मदा नदी के मुख्य प्रवाह में छोड़ा जाएगा।
प्रश्न–क्या स्थानीय मछुआरे और रहवासी महाशीर के महत्व से परिचित हैं और आपके अभियान में उनका भी सहयोग मिलेगा?
जवाब–काफी हद तक। और इसके संरक्षण, संवर्धन, और प्राकृतिक स्थलों की सुरक्षा से उनकी आजीविका भी बेतार हो सकेगी।
प्रश्न–क्या ग्रामीण क्षेत्र में महाशीर का धार्मिक मान्यता भी है?
जवाब–जलीय तंत्र में इसका विशेष महत्व है। कुछ ग्रामीण इसकी पूजा भी करते हैं। इसीलिए क्षेत्र में महाशीर के संरक्षण और पर्यावरण सुधार के लिए नर्मदा किनारे बसे साधु–संतों को भी इस अभियान से जोड़ा जाएगा।
प्रश्न–महेश्वर किले की दीवारों पर महाशीर अंकित है, क्या प्राचीन समय में भी इसका अस्तित्व था?:
जवाब–महाशीर मछली का इतिहास अनूठे ढंग से दर्ज है। नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर स्थित अहिल्या घाट और किले की दीवारों पर इस महाशीर मछली की आकृति को बड़ी खूबसूरती से उकेरा गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि लगभग 2500 साल पहले नर्मदा नदी में महाशीर प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी।
प्रश्न–शासन से इस अभियान में आप किस प्रकार के सहयोग की अपेक्षा रखते है?
जवाब–रेत के अवैध खनन पहाड़ों की कटाई से जहां नर्मदा के किनारों का सौंदर्य प्रभावित हुआ है वहीं महाशीर के अस्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इसे रोकने और नर्मदा नदी व अन्य सहायक नदियों में समय–समय पर मछली के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाता है तो इस अभियान को और गति प्राप्त होगी।
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