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हलाली नदी के साथ दोस्त मुहम्मद खान का नाम जुड़ा हुआ है जिसने भोपाल शहर बसाया था. दोस्त मुहम्मद एक अफगान था. सन् 1703 में वह मुगल सेना में भर्ती हुआ। बाद में वह मालवा यानी इंदौर, देवास इलाके का नायब बना.
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राजपूतों की हत्या के खून से रंग गई थी हलाली नदी
इतिहास की कलंक कथाओं से संबंधित नामों को बदलने की मांग जोर पकड़ रही है।शहरों, चौराहों, सड़कों के नाम बदले जा रहे हैं। हाल ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा के तट पर बसे जिला मुख्यालय होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम करने की घोषणा की है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के दो स्थान लालघाटी और हलाली डैम का नाम परिवर्तित करने की भी मांग उठी है। लालघाटी भोपाल के नवाब खानदान से जुड़े और पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव शहरयार खान ने हलाली और दोस्त मोहम्मद खां की छल कपट और क्रूर कथाओं को अपनी पुस्तक ‘द बेगम्स ऑफ भोपाल’ में वर्णन किया है, उसका सार-
देश के अन्य भागों की तरह मध्यप्रदेश के भी कुछ शहरों और स्थानों के नाम बदलने की मांग की जा रही है। नर्मदापुरम का नाम हमलावर होशंग शाह के नाम पर होशंगाबाद हुआ था किंतु इसके साथ ही राजधानी भोपाल के रक्तरंजित इतिहास से जुड़े कुछ और नामों को परिवर्तित करने की मांग उठी है। सांसद प्रज्ञा ठाकुर, उमा भारती और मध्यप्रदेश विधानसभा के कार्यकारी अध्यक्ष रामेश्वर शर्मा ने भी शहर के इतिहास के इन काले धब्बों को मिटाने की मांग की। इनमें हलाली डैम और लाल घाटी का नाम प्रमुखता से शामिल है। उर्दू में हलाल का मतलब काटना या कुर्बानी देना होता है। ये दोनों नाम विदेशी लड़ाके दोस्त मोहम्मद खान से जुड़े घटनाक्रम पर आधारित हैं। दोस्त मोहम्मद खान अफगानी लड़ाका था जिसकी सेवाएं राजा और सामंत-सरदार किराए पर हासिल करते थे। वह अफगानिस्तान से मुगल सेना में शामिल हुआ जिसके बाद देश के दक्षिण की तरफ बढ़ा और भोपाल आ गया। यहां उसकी सेवाएं जगदीशपुर की रानी भोपाल की रानी कमलापति ने लीं। इतिहास के कुछ संकेत वह लोकोक्ति कहती हैं कि उसने रानी कमलापति को भी बाद में धोखा दिया था जिसके बाद उन्होंने तालाब में कूदकर आत्महत्या कर ली थी।
मैत्री भोज आयोजन के नाम पर दिया धोखा
भोपाल–विदिशा–बैरसिया मार्ग पर हलाली बांध ऐसे ही एक बड़े धोखे से संबंधित है। यह भोपाल के इतिहास की कलुषित कहानी है। शहरयार खां लिखते हैं – ‘अपने राज्य के विस्तार और सुदृढ़ीकरण के लिए दोस्त मोहम्मद के अभियान में एक घटना घटी। वह पड़ोसी राजपूत सामंत नरसिंह राव चौहान से एक संधि करने के लिए सहमत हुआ। दोनों पक्षों के बीच बैरसिया के दक्षिण में 20 मील दूर जगदीशपुर में मिलने की सहमति हुई। हर पक्ष से 16 लोग शामिल किए गए। दोस्त मोहम्मद ने थाल नदी के किनारे तंबू लगवाए और एक शानदार मैत्री भोज का आयोजन रखा। इसमें जैसे ही इत्र और पान के बीड़े सजाए गए, दोस्त के उन सैनिकों के लिए तंबुओं में घुसने का इशारा मिल गया जो पास की झाड़ियों में छुपे थे। वे निकले, तंबुओं की रस्सियां काटी और संशयरहित राजपूतों की हत्या कर दी। यह नरसंहार इतना वीभत्स था कि नदी बहते हुए खून से लाल हो गई। राजपूतों की हत्या के खून से रंगी यह नदी इस दिन से हलाली नदी कहलाने लगी। दोस्त मोहम्मद ने इसके बाद जगदीशपुर का नाम इस्लामपुर इस्लामनगर कर दिया।
हलाली नदी
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मालवा तक किया सत्ता का विस्तार
एक अन्य घटना शक्तिशाली राजपूत सरदार और मुगल सूबेदार, जो गवर्नर के बराबर माना जाता था, दिए बहादुर के साथ हुई। दिए बहादुर ने दोस्त मोहम्मद की सेना को हरा दिया था और यह सेना अपने नेता को ही छोड़कर भाग गई थी। गिने-चुने वफादार इस राजपूत सेना से लड़ने के लिए शेष बचे थे। दोस्त ने इस युद्ध में अपने भाई को भी खो किया। वह भी बुरी तरह घायल हुआ। उसे बंदी बना लिया गया। लेकिन राजपूत परंपरा के अनुसार उसके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया गया । दोस्त मोहम्मद की बहादुरी से प्रभावित होकर दिए बहादुर ने पूछा कि क्या वह उसकी सेना में शामिल होना चाहेगा? दोस्त ने आभार जताते हुए इनकार कर दिया। तब दिए बहादुर ने कहा कि यदि मुक्त कर दिया जाए तो कैदी क्या चाहेगा? दोस्त ने कहा- मैं आपकी सेना से फिर लड़ना चाहूंगा। इस अप्रत्याशित उत्तर से दोस्त को आशंका थी कि उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा लेकिन दिए बहादुर ने मुस्कुराते हुए बोला- ठीक है। तुम एक बहादुर व्यक्ति हो मैं तुम्हें मुक्त करता हूं और 40 दिन के भीतर हम फिर युद्ध करेंगे। दोस्त को एक घोड़ा दिया गया जिस पर उसने आभार जताते हुए सवारी की। कुछ महीनों बाद दोस्त ने सेना खड़ी की और एक मुठभेड़ में दिए बहादुर को हरा दिया। इस कठिन अभियानों से दोस्त की दु:साहसी सेनानायक की बनती गई। दोस्त लिखता है- मालवा में उभर रहे राजपूत विद्रोहियों का दमन करने के लिए दिल्ली से एक सेना की टुकड़ी भेजी गई थी। दोस्त मोहम्मद मुगलों के प्रति वफादारी और स्थानीय राजपूत सरदारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बीच झूल रहा था। अंततः उसने राजपूतों का पक्ष लेने का फैसला किया। इस लड़ाई में वह घायल हो गया और उसकी चेतना लुप्त हो गई। अपने सरदार को मरा हुआ समझकर उसके लोग भाग गए। जब उसे चेतना आई तो एक आदमी की आवाज सुनी जो पानी मांग रहा था। दोस्त ने अपनी मसक में बचा हुआ पानी उसको पिलाया। वह सैयद हुसैन अली बारहा था जो दिल्ली में मुगल बादशाहों के खासमखास थे। दोस्त मोहम्मद खान ने सैयद हुसैन अली बाबा के साथ मिलकर अपनी खोई हुई सत्ता को प्राप्त किया। दोनों मित्र हो गए। सैयद हुसैन अली ने उसे और उसके भाई को इलाहाबाद का राज्यपाल बनाने का न्योता दिया लेकिन दोस्त ने यह कहकर उसे खारिज कर दिया कि उसकी जड़ें मालवा में हैं। दोस्त भोपाल के पास मंगलगढ़ आ गया, जहां वह रानी के संरक्षण में रहता था। मंगलगढ़ लौटने पर रानी ने उसे पुत्र की तरह गोद ले लिया था क्योंकि उनके बेटे का निधन हो चुका था। दोस्त ने रानी के खजाने पर कब्जा कर लिया। दोस्त ने अपनी सत्ता का दोराहा, सीहोर, इछावर, आष्टा, शुजालपुर तक विस्तार किया।’
धोखे से किया भोपाल पर आधिपत्य
‘संभवत: उसके पूरे जीवन का सबसे मुश्किल संघर्ष विदिशा के गवर्नर मोहम्मद फारुख के विरुद्ध था। विदिशा के समीप लड़ी गई इस लड़ाई में फारुख के साथ 40000 मराठा और राजपूत सैनिक थे जबकि दोस्त के पास सिर्फ 5000 वफादार अफगानी सैनिक। युद्ध में दोस्त की सेना हार गई वह झाड़ियों में छिप गया। जब फारूक की सेना जश्न में डूबी थी तब दोस्त ने विजेता सैनिकों की वेशभूषा छीनकर पहन ली और उनकी सेना के हाथी पर सवार होकर फारूक के नजदीक पहुंच गया। दोस्त ने फारुख को भाला मार दिया और जब उसकी सेना विजय उन्माद में डूबी थी तब फारूक के हाथी ने विदिशा किले में प्रवेश किया। हाथी पर फारुख का मृत शरीर बैठाया गया था। तभी दोस्त ने अपनी विजय की घोषणा की। अंत में दोस्त मोहम्मद ने भोपाल पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।
(इंडिया डेटलाइन)
मध्य प्रदेश सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भोपाल के नजदीक हलाली डेम को प्रमोट कर रही है। लेकिन हलाली डेम के नाम को लेकर कंट्रोवर्सी खड़ी हो गई है। भाजपा नेता उमा भारती का कहना है कि हलाली डेम, हलाली नदी पर बना है जिसका मतलब है कत्ल की नदी क्योंकि एक वक्त ये नदी लोगों के खून से लाल कर दी गई थी।
- 20 March, 2023

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