एक जमाना था प्रेम का इजहार खुशबू बिखेरते गुलाबी कागज पर उकेरे काले अक्षरों से होता था। दिल धड़क जाता था जब कंपकंपाती उंगलियां हौले से खत को खोलती थीं।उन प्रेम से भरे पत्रों को जाने कितनी बार आंखें पढ़ती थीं सीने से लगा वो खत जैसे धक-धक की गिनती कर रहा हो। पहले फोन, फिर मोबाइल और अब ई-मेल ने सनलिट बॉंन्ड के कागजों पर लिखे प्रेम-पत्रों की दुनिया ही उजाड़ कर रख दी। मगर पुराने लोगों की धड़कनों में अब भी धड़कते हैं ये खत। ऐसे ही मोहब्बत से भरे कुछ बेहद खास खतों के मजमून आपकी नजर

( प्रस्तुति — संध्या  रायचौधरी )

–आवारा मसीहा की वो आवारगी

(आवारा मसीहा के रचनाकार विष्णु प्रभाकर का पत्र पत्नी को )

”मेरी रानी, तुम अपने घर (मायके) पहुंच गयी होगी। तुम्हें रह-रहकर अपने मां-बाप, अपनी बहन से मिलने की खुशी हो रही होगी। लेकिन मेरी रानी, मेरा जी भरा आ रहा है। आंसू रास्ता देख रहे हैं। इस सूने आंगन में मैं अकेला बैठा हूं। ग्यारह दिन में घर की क्या हालत हुई है, वह देखते ही बनती है। कमरे में एक-एक अंगुल गर्दा जमा है। पुस्तकें निराश्रित पत्नी सी अलस उदास जहां-तहां बिखरी हैं। अभी-अभी कपड़े संभालकर तुम्हें ख़त लिखने बैठना हूं, परंतु कलम चलती ही नहीं। दो शब्द लिखता हूं और मन उमड़ पड़ता है काश….कि तुम मेरे कंधे पर सिर रखे बैठी होती है और मैं लिखता चला जाता…पृष्ठ पर पृष्ठ। प्रिये, मैं चाहता हूं कि तुम्हें भूल जाऊं। समझूं तुम बहुत बदसूरत, फूहड़ और शरारती लड़की हो। मेरा तुम्हारा कोई संबंध नहीं, लेकिन विद्रोह तो और भी आसक्ति पैदा करता है, तब क्या करूं? मुझे डर लगता है। मुझे उबार लो। मेरे पत्रों को फाड़ना मत।

  वो..खुदगरज मांग 

(अमृता प्रीतम का खत इमरोज के नाम)

इमरोज़, तुम्हारे और मेरे नसीब में बहुत फर्क है। तुम वह खुशनसीब इंसान हो, जिसे तुमने मुहब्बत की, उसने तुम्हारे एक इशारे पर सारी दुनिया वार दी। पर मैं वह बदनसीब इंसान हूं जिसे मैंने मुहब्बत की, उसने मेरे लिए अपने घर का दरवाजा बंद कर लिया। दर्द केवल इस बात का है कि मुझे उसने भी नहीं समझा, जिसने कभी मुझसे कहा था, मुझे जवाब बना लो, सारे का सारा। मुझे अगर किसी ने समझा है तो वो तुम्हारी मेज की दराज में पड़ी हुई रंगों की बेजुबान शीशियां हैं, जिनके बदन मैं रोज पोंछती और दुलारती थी। तुम एक दिन अपनी मेज पर काम करने लगे थे कि तुमने हाथ में ब्रश पकड़ा और पास रखी हुई रंग की शीशियों को खोला। मेरे माथे ने न जाने तुमसे क्या कहा, तुमने हाथ में लिए ब्रश पर थोड़ा सा रंग लगाकर मेरे माथे से छुआ दिया। न जाने वह मेरे माथे की कैसी खुदगरज मांग थी।”

–खत या हवा में तिरती खुश्बू

( साहित्यकार धर्मवीर भारती का पत्र पत्नी को)

”सामने सड़क के सुदूर छोर पर चांद निकल रहा था। पीला, थोड़ा कटा हुआ और बादल पीछे के तीतरपंखी थे और चांदनी कहीं-कहीं धुंआ-धुंआ-सी बादलों के बीच झांक रही थी और अच्छा लग रहा था साइकिल चलाना। उधर मेरी निगाह उठी और मैंने जो देखा उसे शायद कभी नहीं भूल पाऊंगा। चांद बादलों में आधा निकला। उसी क्षण जैसे बिजली की तरह यह बात मन में कौंध गई..। पता नहीं वह बात, वह अनुभूति किन शब्दों में व्यक्त करूं! उफ कितने आयाम हैं तुम्हारे प्यार के भारती-वधू! उस दिन जैसे किसी अनदेखे बन्द दरवाजे की भांति वह क्षण खुल गया और मैंने देखा तुम्हारे प्यार का सर्वथा नया आयाम.. कैसे बताऊं। उस समय मुझे सचमुच लगा जैसे ये चांद जहां जगमगा रहा है, वहां इन कटे-कटे बादलों के बीच से सीढ़ियां जाती हैं- जहां ले जाती हैं वहां सब कुछ स्वच्छ रुपहला है पर सब अपार्थिव है, धूमतरल है। वहां धुएं में से ही एक दुग्ध धवल सेज सजी है और तुम हो जूड़ा बनाये और जूड़े में लापरवाही से सफेद बेले की माला लपेटे-और सुगन्ध-सुगन्ध-सुगन्ध.. और फिर और भी-बादलों की परतों के पार सड़कें हैं, राजमार्ग हैं, भवन हैं, मीनारें हैं, चन्दन-द्वार हैं और राज मेरे वह सब तुम हो! तुम हो वे राजमार्ग जिन पर मैं उस चांद-लोक में चलता हूं। तुम हो वह भवन जिसमें मैं रहता हूं। तुम हो वह सेज जिस पर मैं सोता हूं। तुम हो वह द्वार जिसे मैं खोलता हूं, तुम हो वह जादू जिसमें मैं डूबता हूं..।”

–मैं तुम्हारे दोनों हाथों को चूमता हूं

(महान रूसी कहानीकार चेखव का प्रेम पत्र पत्नी ओल्गा के लिए )

”माय डियर लव ”पत्र के लिए धन्यवाद! यद्यपि तुम यह कहकर मुझे डराना चाहती हो कि तुम जल्दी ही मर जाओगी और मुझे ताना मारती हो कि मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, फिर भी तुम्हें धन्यवाद! मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम मरोगी नहीं और कोई तुम्हें छोड़ेगा नहीं। मैं याल्टा में हूं और खूब मजे कर रहा हूं। नाटकों की रिहर्सल देखने और खूबसूरत फूलों से भरे बगीचों में अपना ज्यादातर वक्त बिताता हूं। भरपेट, मनपसंद खाना खाता हूं और संगीत सुनता हूं। प्यारी, याल्टा में बसंत देखना अलग ही अनुभव है… तुम्हारी याद मुझे आती है लेकिन मैं उदास नहीं हूं। तुम अगर पत्र डालकर मेरी आदत बिगाड़ना चाहो तो पत्र मिलिखोव भेजो। मैं यहां के बाद वहीं पहुंचूंगा और वादा करता हूं कि तुम्हारे पत्रों का जवाब दूंगा। मैं तुम्हारे दोनों हाथों को चूमता हूं।”

–आबाद करके न करो वीरान

(इमरोज का पत्र अमृता के नाम )

जीती, तुम जिन्दगी से रूठी हुई हो। मेरी भूल की इतनी सजा नहीं, आशी। यह बहुत ज्यादा है। यह दस साल का वनवास। नहीं-नहीं मेरे साथ ऐसे न करो। मुझे आबाद करके वीरान मत करो। वह मेज, वह दराज, वे रंगों की शीशियां, उसी तरह रोज उस स्पर्श का इंतजार करते हैं, जो उन्हें प्यार करती थी और इनकी चमक बनती थी। वह ब्रश, वे रंग अभी भी उस चेहरे को, उस माथे को तलाश करते हैं, उसका इंतजार करते हैं जिसके माथे का यह सिंगार बनकर ताजा रहते थे, नहीं तो अब तक सूख गए होते। तुम्हारे इंतजार का पानी डालकर मैं जिन्हें सूखने नहीं दे रहा हूं, पर इनकी ताजगी तुम्हारे साथ से ही है, तुम जानती हो। मैं भी तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। रंगों में भी जिंदगी में भी।’

 

3 Comments

  • अनुराधा मिश्रा, February 14, 2021 @ 6:12 am Reply

    प्रेम तो बस एक अनुभूति है.कब कहाँ. कैसे.किसके लिए धड़क उठेगा ये दिल कोई नहीं जानता।बस वह अनुभूति छोड़ जाती है हृदय में अपने चिन्ह. जिन्हें सहला कर हम सांस ले पाते हैं

  • Tasleem Maqubool, February 14, 2021 @ 5:42 pm Reply

    बहुत खूब …….थैंक यू संध्या…… कितने खूबसूरत अंदाज़ है सभी मोहब्बत करने वालों के।जब इंसान मोहब्बत करता है हर छोटी छोटी चीज़ में वो अपने मेहबूब को ही देखता और खोजता है

  • Tasneem Maqubool, February 14, 2021 @ 5:44 pm Reply

    बहुत खूब …….थैंक यू संध्या…… कितने खूबसूरत अंदाज़ है सभी मोहब्बत करने वालों के।जब इंसान मोहब्बत करता है हर छोटी छोटी चीज़ में वो अपने मेहबूब को ही देखता और खोजता है

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