पुस्तक नवलोकांचल गीत का लोकार्पण
विशेष-
50 बोलियां गीत व कविता रूप में संकलित
हिंदी की पांच उप भाषाएँ 18 बोलियाँ और 10 उप बोलियाँ समाहित
हिंदी और बोलियों का तारतम्य बताने वाले विचार 10 विचार भी
लोकगीत उसे कहते हैं जो शताब्दियों से गाए जा रहे हैं जो जनमानस के अंतर्मन में रच बस गए हैं । उनको किसने लिखा हमें नहीं मालूम । लोक बोलिया नदियों की तरह होती हैं वे संस्कृति की संवाहक भी हैं,बोलियों के संरक्षण के लिए सार्थक प्रयास जरूरी है। ये मिले-जुले विचार पुस्तक नव लोकांचल गीत के लोकार्पण पर अतिथियों ने व्यक्त किए।इस अवसर पर डॉ आदित्य चतुर्वेदी, भोपाल ने बुंदेली एवं साधना श्रीवास्तव ने मालवी गीत की प्रस्तुती देकर सभी का मन मोह लिया ।
इंदौर। पिछले दिनों अवनि सृजन कला मंच द्वारा हिन्दी साहित्य समिति में पुस्तक नव लोकांचल गीत का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कवि डॉ.सरोज कुमार ने कहा कि लोकभाषा को जीवित रखने के लिए आपसी संवाद, व्याख्यान परिचर्चाएँ जरूरी है तभी वह जीवित रह सकेंगी । मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि लोक बोलिया नदियों की तरह होती है । साथ-साथ अपने संस्कार भी बहाती चली जाती हैं । लोक बोलियों को जीवित रखने के लिए ऐसे प्रयास होते रहना चाहिए।उन्होंने पुस्तक की एक पंक्ति को इंगित कराया कि धुनें पारंपरिक हो सकती हैं पर गीत सभी मौलिक हैं।
मुख्य वक्ता ख्यात प्लास्टिक सर्जन डॉ. निशांत खरे ने कहा कि बोलियों के मरने से मात्र भाषा ही खत्म नहीं होती, बचपन मरता है, संस्कृति मरती है । बोलियाँ संस्कृति की संवाहक है । संस्कृति को जीवित रखना है तो बोलियों को जीवित रखना होगा । वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.हरेराम वाजपेयी ने कहा कि आज जब भाषाएं समृद्ध होने की बजाय अपना अस्तित्व खो रही हैं तब बोलियों और भाषाओं को सम्मान देने का का प्रयास जहां एक और जोखिम भरा है वही भाषाई एकता को संजीवनी देने का काम करेगा । अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में भोज शोध संस्थान, धार के निदेशक डॉ. दीपेन्द्र शर्मा ने कहा कि विविधता ही हमारी शक्ति है । इसी तरह भाषाएँ बोलियाँ खत्म होती रही तो हम बहुत कमजोर हो जाएंगे । बोलियों के संरक्षण के लिए सार्थक प्रयास जरूरी है । बदलते परिवेश में बोलियां भी संक्रमण का शिकार हो सकती थी यदि आप जैसे लेखक विचारक और संरक्षक ना होते आपका प्रयास स्तुत्य है यह प्रकाशन प्राण तत्व हो , शुभ भाव व मंगलकारी मंगल कामनाएं हैं।
लगभग सभी बोलियों को समाहित करने का प्रयास किया
पुस्तक की संपादक मीना गोदरे ने बताया कि कृति में विभिन्न क्षेत्रों की 50 बोलियों के स्वरचित मौलिक कविताओं एवं गीतों को संकलित किया गया है । इस पुस्तक को निकालने का उद्देश्य लुप्त होती बोलियों का संरक्षण और उनको जीवंत रखना है क्योंकि इनमें हमारी लोक चेतना परंपराएँ और संस्कृति विद्यमान है । पाठकों के लिए पुस्तक को सरल बनाने के लिए रचनाओं के साथ संदर्भ और शब्दार्थ दिए गए हैं , चार्ट और तालिका बनाई है उसे छह खंडों में विभाजित किया है जिसमें हिंदी की पांच उप भाषाएँ 18 बोलियाँ और 10 उप बोलियाँ समाहित है इसके साथ ही एक खंड में चार अन्य भाषाओं की 10 बोलियों भी को लिया गया है इस तरह इस पुस्तक में कुल 50 बोलियां लोकगीत और कविताओं के रूप में संकलित की गई है । इस पुस्तक में हिंदी और इन बोलियों का तारतम्य बताने वाले विचार 10 विचार भी कवर पेज के अंदर दिये गए हैं ।
रचनाकारों को सम्मान पत्र
कार्यक्रम की शुरूआत डॉ. चंद्रा सायता ने शारदे वंदना से की।अतिथियों एवं सभी रचनाकारों को संरक्षक मुकेश गोदरे ने सम्मान पत्र प्रदान किए।कार्यक्रम का संचालन अर्पणा तिवारी एवं मुकेश इंदौरी ने किया आभार आशा जाखड़ ने माना । लोकापर्ण में प्रभा जैन, डॉ ज्योति सिंह, अचला गुप्ता, मनोरमा जोशी ,आशा जाकड़, डॉ अंजुल कंसल, वंदना अर्गल देवास, प्रतभा चंद्र देवास, हिमानी भट्ट, हेमलता शर्मा रजनीश दवे , दिनेश शर्मा,रमेश प्रसाद शर्मा, रशीद अहम शेख, अनिल ओझा, डॉ अंशु खरे आदि उपस्थित थे ।