अभी भी जो पूरी तरह स्वतंत्र हैं, आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र हैं, सामाजिक रूप से  भी स्वतंत्र है, तब भी मौन की अपनी अहमियत है।  हमको समझना होता है कि जहां हमको समझ नहीं आता है वहां हम मौन ही रहे। “इंटरफेयर” नामक शब्द है वह मौन का ही प्रतिरूप है। महिलाओं के लिए तो इंटरफेयर नहीं करना यानी मौन रहना…

माया कौल

मौनी अमावस्या के दिन मौन रहते हैं। कहते हैं कि आज के दिन मौन रहने से सब पाप कट जाते हैं। एक तो मौन ऊपर से अमावस्या के दिन का मौन। पर ये मौन मुझे बहुत मुखर बना देता है। मैं मौन रह ही नहीं पाती हूं बच्चे भी बहुत ताना से मारते है कभी कभी मां कितनी बातें करती हो?? आपके पेट में बात पचती ही नही।

और यह सुनते ही अंदर कुछ झंझावात सा चलता रहता है जो मुझे मौन रहने ही नहीं देता है। बचपन में हमेशा सुनती आई थी  चुप रहा करो, धीरे चला करो, धमक कर मत चला करो पैरों की आवाज आती है, खाना धीरे खाया करो चपर चपर की आवाज आती है ये आवाजें ठीक नहीं होती अच्छी नहीं होती दूसरे घर जाओगी तो देख लेना यही सब लक्षण तुमको वापस घर में ले आएंगे । ये नानी का तकियाकलाम रहता था । दिन में दो या तीन बार तो बोल ही लेती थीं।

वो जब तमाखू बनाती(गुस्से में खुद बनाती थी वर्ना तो मैं ही बनाती थी)तो निरंतर मेरी मुखरता को चुप करती चलती।इस मौन शब्द से  मुझे तभी से घृणा हो गई थी। जितना मौन रहने को कहा जाता मैं उनकी पीठ पीछे उतनी मुखर होती जब चुप रहने को कहा जाता  तो उस दौरान मन में आवाजों के पहाड़ बनते रहते वह पहाड़ अठारह उन्नीस बीस साल और भी आगे अनवरत सालों तक बनते रहे।

बाद जब हम दूसरे के घर गए तो मौन की प्रति छाया बनने लगी जो उससे भी गहरी थी।  दूसरे के घर तो मौन का म्यूटेशन होने लगा जैसे आजकल करोना वायरस का होने लगा है, पहले किसी और रूप में दिखा, फिर किसी दूसरे रूप में दिखा। तो उस दूसरे  घर में तो मौन ने अपने अनेकों रूप रख लिये। बोलना तो था ,बोलने की पूरी आजादी भी थी पर अगर सामने वाला बोल रहा है और उसके विचार आपके विचारों से मेल खाते हैं तो आप उन पर बहुत आराम से बिंदास बोल सकते हो पर अगर  सामने वाला जो बोल रहा है, उसके विचार आपके विचारों से तनिक भी मेल नहीं खाते हैं तब आपका बोलना आपको बहुत भारी पड़ेगा। उस वक्त आपको चुप रहने को कहा जायेगा जो मौन का प्रतिरूप होगा। आपको मौन रहने के लिए कहा जाएगा कभी बाहर से कभी अपने अंतर्मन से कभी समाज के भय से कभी लड़ाई के भय से कभी वातावरण खराब ना हो उस भय से। हम बहुत अच्छे संस्कारों वाले घर से आए हैं इसलिए हम विरोध प्रकट नहीं करेंगे हम खुश रहेंगे। खुश रहने में मौन की बहुत बड़ी भूमिका थी और है।  धीरे-धीरे वह चुप रहना हमें अपना कर्तव्य जान पड़ने लगेगा। उसी में हमारी तारीफ भी होने लगेगी।

मौन के पहाड़ बनते गए …

बस ऐसे ही अंदर  मौन के पहाड़ बनते गए  और पहाड़ जाने कब ग्लेशियर में बदलते गए। अभी भी जो पूरी तरह स्वतंत्र हैं, आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र हैं, सामाजिक रूप से  भी स्वतंत्र है, तब भी मौन की अपनी अहमियत है।  हमको समझना होता है कि जहां हमको समझ नहीं आता है वहां हम मौन ही रहे। “इंटरफेयर” नामक शब्द है वह मौन का ही प्रतिरूप है। महिलाओं के लिए तो इंटरफेयर नहीं करना यानी मौन रहना।

तो ये बहुरूपिया  मौन अलग-अलग रूप में घटित होता है। मेरे जीवन में मैंने बहुत बार अपने आप को बदला है।  मौन हमेशा ही मौन नहीं रहा है वह कभी विरोध रहा तो मौन रहना पड़ा। कभी बोलना नहीं है इसलिए मौन रहना पड़ा। कभी बात को टाल देना है इसलिए मौन रहना पड़ा ।और कभी समाज को कहीं हमारी ऊंची आवाज ना सुनाई देगा इसलिए मौन रहना पड़ा। और भी विभिन्न कारण थे जो शायद अब मुझे याद भी नहीं है पर हां इतना याद है कि मौन हमारे अंदर बहुत बड़े पहाड़ रख गया है और वह पहाड़ इतने ठंडे हो गए हैं कि वो अब ग्लेशियर बन गए हैं।  बूंद बूंद  रिसने है नदी बनने को आतुर है।

जितना  बड़ा ग्लेशियर अंदर  है उतना ही मौन मेरा बाहर मुखर है। मैं समझ नहीं पाती कि  इतना क्यों बोलती हूं जहां एक बात बोलना होता है वहां दस बात बोलती हूँ। और शाम को उसी बात पर खीजती हूं अपने आप से नफरत सी करती हूं, कि अब कल से कम ही बोला करूंगी । मैंने वह करके  भी देखा, चलता कहां है कम बोलो तो गलत समझ लिया जाता है। नहीं बोलो और गंभीर बने रहो तो आपने जो किया है उस पर मिट्टी डलती जाती है और आप एक उपेक्षित प्राणी से रह जाते हैं तो उपेक्षा को  बुहारकर बाहर फेंकने में मुखर होती जाती हूं।

आज मन ने बहुत प्रपंच रच डाले अमावस्या बाहर प्रतीक्षा करती रही और हम पिछली गली से निकलकर किसी के फेंके हुए कंचे बीनने में व्यस्त है। अंदर के  ग्लेशियर  का पहाड़ भी नदी बन बहने में व्यस्त से गुनगुना रहा है।

2 Comments

  • मंजुला भूतड़ा, February 12, 2021 @ 10:59 am Reply

    वाह! सुन्दर विचार
    मन की बात सरीखे

  • Jyoti, February 13, 2021 @ 7:12 am Reply

    Amazing way of expressing our internal thoughts

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