नई दिल्ली. इंडिया डेटलाइन. देश की जानी-मानी पत्रकार और एनडीटीवी की पूर्व एंकर निधि राजदान हॉवर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनाए जाने के नाम पर जबर्दस्त साइबर ठगी की शिकार कैसे हो गईं? एक पत्रकार तथ्यों को बिना पूरी तरह चैक किए नौकरी कैसे छोड़ देती हैं? वह भी तब जबकि अमेरिका की इस अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय में ऐसा कोई पद ही नहीं है। उन्हें लेकर सोश्यल मीडिया पर विरोध व समर्थन-सहानुभूति के संदेशों की बाढ़ आ गई है।
राजदान के साथ हुई धोखाधड़ी सोश्यल मीडिया में ज़बरदस्त चर्चा का विषय है। इसे लेकर निधि कई सवालों के घेरे में है। राजदान ने एनडीटीवी के अपने ब्लॉग में I am Nidhi Rajdan, Not a Harvard professor, but.. शीर्षक से लिखा कि उन्हें 2019 में पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के हॉवर्ड केनेडी स्कूल में भाषण देने के लिए बुलाया गया था। इसमें से एक आयोजक नेने पत्रकारिता के पद के खाली होने की चर्चा की। कुछ सप्ताह बाद उनका नब्बे मिनट का ऑनलाइन साक्षात्कार लिया गया। यह सब बहुत प्रोफ़ेशनल तरीके से किया गया। इसके बाद उन्होंने गूगल में खोजा तो पाया कि हॉवर्ड के दूरस्थ शिक्षा विभाग में पत्रकारिता का कोर्स कराया जाता है। दूरस्थ शिक्षा के पाँच सौ में से सत्रह फ़ैकल्टी पत्रकारिता के हैं।
दूसरी तरफ, पत्रकारिता विभाग की वेबसाअइट बनाने वाले जोशुआ बेंटन ने बताया कि हॉवर्ड में न तो कोई पत्रकारिता विभाग है और न ही हॉवर्ड फ़ैकल्टी ऑफ आर्टिस्ट एंड साइंस में कोई पत्रकारिता प्रोफेसर होता है।
राजदान अपने ब्लॉग में लिखती हैं कि जनवरी में उन्हें हॉवर्ड की आधिकारिक दिखने वाली ईमेल आईडी से वहाँ के मानव संसाधन विभाग की ओर से कथित ऑफ़र लेटर व एग्रीमेंट मिला। इस पर हस्ताक्षर असली से दिख रहे थे। एक मेल उनकी संस्था एनडीटीवी को भी मिला। इस नई नौकरी को देखते हुवे राजदान ने जून 2020 में एनडीटीवी की नौकरी छोड़ दी।
निधि लिखती है कि उन्हें बताया गया कि उनका वर्क वीज़ा बन चुका है जो यात्रा के पहले उन्हें भेज दिया जाएगा। उनकी यात्रा को कोविड की वजह से कुछ समय के लिखे टाल दिया गया था। जनवरी में इस बारे में उन्होंने यूनिवर्सिटी के डीन पत्र लिखा तो वहाँ से बताया गया कि उनकी नियुक्त का कोई रिकॉर्ड नहीं है और जो व्यक्ति अपने को एचआर से संबंधित बता रहा है, वैसा कोई व्यक्ति उनके एचआर डिपार्टमेंट में नहीं है। तब निधि को इल्म हुआ कि वे साइबर अपराधियों द्वारा ठगी गई हैं।
किसी छद्म नाम,व्यक्ति या संगठन-संस्था के नाम का दुरुपयोग कर की गई साइबर ठगी फ़िशिंग कहलाती है। इस तरह की धोखाधड़ी करके ठग किसी व्यक्ति की प्रोफ़ाइल, बैंक, मेडिकल रिकॉर्ड्स,पासपोर्ट डिटेल्स, ईमेल्ड व अन्य दस्तावेज व जानकारियाँ हासिल कर लेते हैं। निधि ने अपने ब्लॉग में इसे स्पष्ट किया है। वे लिखती हैं-ताकि इससे दूसरे सबक सीखें।