राजनीति प्रसाद

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जीतू पटवारी का रास्ता रोकना चाहते हैं। उन्हें इस युवा नेता के आगे बढ़ने में अपने बेटे की राजनीतिक राह कठिन नजर आ रही है। यह चर्चा दिल्ली के गलियारों में है। कमलनाथ ने हाल में दिल्ली यात्रा कर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चुनने के संबंध में आलाकमान से बातचीत की। नेता प्रतिपक्ष के पद के यूँ कई दावेदार है किंतु दावेदारों में सबसे युवा और मुखर जीतू पटवारी को माना जा रहा है। कमलनाथ उनके पक्ष में नहीं हैं इसलिए वे आलाकमान के सामने आदिवासी नेता को इस पद पर चुनने की दलीलें देकर आए।
अब शहरी निकायों में पैर जमाने की जुगत में
अब भारतीय जनता पार्टी का फोकस नगर निकायों के जरिये पैर फैलाने पर है। हैदराबाद नगर निगम में उसे मनचाही जीत मिल गई है। जम्मू-काश्मीर में वह जिला परिषदों के आठ चरणों में चल रहे चुनावों में उज्ज्वल भविष्य देख रही है तो केरल में चल रहे पंचायत चुनावों में भी उसे बड़ी उम्मीद है। ये राज्य ऐसे हैं जिनमें उसका आधार नहीं है। राजस्थान में पंचायत चुनाव में उसकी बढ़त की खबरें यह स्तंभ लिखते वक्त आ रही हैं। इसी रणनीति के तहत अब वह पंजाब के नगरीय निकायों के चुनाव की व्यूहरचना में जुट गई है। पंजाब में अकाली दल के एनडीए से अलग होने के बाद उसे अपनी अलग पहचान बनानी है। नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी इन निकायों वाले शहरों का दौरा कर रहे हैं।

मौक़ा तलाशते मोदी विरोधी
मोदी विरोधियों को मौके की तलाश रहती है। विपक्ष की पार्टियाँ सबसे ज्यादा छटपटाती हैं। कोई मुद्दा मिला नहीं कि एकजुट होने और एक मंच बनाने का ख़ुमार चढ़ जाता है। दो-चार महीनों में यह ख़ुमारी टूट जाती है सो फिर नए अवसर की तलाश रहती है। यही हाल, उन लोगों का है जिनकी रोज़ी-रोटी-गोटी मोदी सरकार में छिन गई है। वे भी मोदी सरकार की चूलें हिलाने की कोशिशों में शामिल हो जाते हैं। इनमें दो नाम हाल के किसान आंदोलन में खासतौर पर शुमार हैं। एक खालिस्तानी और दूसरे ग़ैर सरकारी संगठन अर्थात एनजीओ। एनजीओ मोदी सरकार में बहुत दुखी हैं। एक तो सरकारी ख़ैरात पर कई पाबंदियाँ-जाँचे बैठा दी गई हैं, दूसरे विदेशी फंडिंग, परिवारजनों के निदेशक मंडल में शामिल होने आदि की रोक-टोक कर दी गई है। सो कई एनजीओ की दुकान बंद है। एक प्रतिष्ठित और मोदी विरोधी अखबार की रिपोर्ट ने बताया कि किसान आंदोलन में बहुत एनजीओ बढ़-चढ़कर शिरकत कर रहे हैं।
विपक्षी एकता की खिचड़ी अब अकाली चूल्हे पर
भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों का मोर्चा बनाने की कोशिश इस बार भाजपा का सबसे पुराना और निकटतम सहयोगी अकाली दल कर रहा है। इसके पहले जनता दल, तृणमूल कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता ऐसी कोशिश कर चुके हैं। इसके पहले तक इन कोशिशों के केंद्र में कांग्रेस को रखा जाता था लेकिन टीआरएस और ममता बनर्जी ने बिना कांग्रेस के नया गठबंधन खड़ा करने का प्रयास शुरू किया। अकाली दल भी इसी लाइन पर चल रहा है। दल के नेता प्रेम सिंह चंदूमाजरा अलग-अलग दलों से मुलाकात कर रहे हैं और उनका दावा है कि जल्दी ही इन दोनों की तरफ से एक संयुक्त अपील जारी की जाएगी।
बंगाल में ममता पर सवाल उठाते तृणमूल के नेता
बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के भीतर यह स्वर मजबूत होता जा रहा है कि ममता बैनर्जी कई नेताओं को साइडलाइन कर रही हैं। प्रदेश के एक बड़े और प्रभावशाली नेता शुभेंदु अधिकारी के बाद अब राज्य के मंत्री राजीब बैनर्जी ने इस तरह का आरोप लगाना शुरू कर दिया है। लेकिन यह सिलसिला यहीं नहीं रुकता। राज्य उपभोक्ता मामलों के मंत्री साधन पांडे, पूर्व मंत्री मदन मित्रा, विधायक शीलभद्र दत्ता भी विधायक जाटू लाहिड़ी और विधायक वैशाली डालमिया की श्रंखला में जुड़ गए हैं। ममता ने शुभेंदु को मनाने के लिए तीन वरिष्ठ नेताओं को भेजा था। जिनसे बात करने के बाद सिंगूर के इस क़द्दावर नेता ने ठेंगा दिखा दिया। अब राजीब की मान-मनौव्वल की जा रही है।
राहुल पर सवाल को लेकर बवाल
आपने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की टिप्पणी पढ़ी ही थी जिसमें उन्होंने राहुल गांधी को अपरिपक्व व अस्थिर नेता कहा था। लेकिन इस विदेशी नेता की तरह जब देसी नेता ने इसी तरह की बात कह दी तो बवाल मच गया। महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) में राहुल गांधी को लेकर तू-तू-मैं-मैं शुरू हो गई। दोनों ही दल महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के घटक हैं। महिला बाल विकास मंत्री यशोमती ठाकुर के बाद बालासाहेब थोराट ने शरद पवार को आड़े हाथों लिया। यशोमती ने नाम नहीं लिया और कहा कि पवार को गठबंधन धर्म निभाते हुए साथी दलों को कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए तो थोराट ने कहा कि पवार को राहुल गांधी को समझना चाहिए। वे बहुत मजबूती से उभरे हैं।
फूट डालो और राज करो
किसान आंदोलन को तेरह दिन हो गए। समर्थन मूल्य की शर्त की बात करते-करते वे केंद्र सरकार के तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने की माँग करने लगे हैं। केन्द्र मानता है कि यह उसके विरोधी राजनीतिक दलों की शह पर किसान संगठन अड़ रहे हैं। न अड़ते तो अब तक समझौता हो जाता। सो केन्द्र के चाणक्य ने आंदोलनकारियों को विभाजित करने की रणनीति शुरू की। बुधवार को किसान संगठनों से प्रस्तावित छठवें दौर की बातचीत के ऐन पहले मंगलवार की रात को गृह मंत्री ने तेरह किसान संगठनों को बुलाकर बात की। इसमें शामिल राकेश टिकैत पहले फिसलते दिखे लेकिन बाद में मामला अटक गया। इस प्रतिनिधि मंडल के नेता तो आख़िर बंगाल की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हन्नान मोलाह हैं। लेकिन भाजपा के एक सूत्र ने कहा-आगे -आगे देखिए।

अन्ना का अनशन: बड़ी देर कर दी
किसानों के आंदोलन को ग्यारह दिन हो गए तब अनशन वाले बाबा यानी अन्ना हज़ारे जागे और अनशन पर बैठ गए। प्रसिद्ध पत्रकार व लेखिका मृणाल पांडे ने ट्वीट किया-‘बड़ी देर कर दी हुज़ूर आते-आते।’
